मुख्य बातें-
श्रमायुक्तों को शक्तियां देकर रिकवरी
की गई आसान
अब श्रम आयुक्त खुद ही कर सकेंगे रिकवरी
पर फैसला
शिकायतें निपटाने के लिए छह सप्ताह का
समय मिला
अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने
अपने ताजा आदेश में 23 अगस्त की सुनवाई के दिन उपस्थित चार
राज्यों के श्रमायुक्तों को वेजबोर्ड लागू करवाने और शिकायतकर्ताओं की सुनवाई
स्वयं करने के आदेश जारी किए हैं। वहीं 20जे के मामले में उत्साहित कर्मियों को इन आदेशों से निराशा जरूर हुई
है, मगर कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगली
सुनवाई के दिन यानि 04 अक्तूबर, 2016 को इस पर प्रबंधन का पक्ष सुनने के बाद निर्णय दे दिया जाएगा।
हालांकि सुनवाई के दौरान जिस प्रकार से जज ने जागरण प्रबंधन के वकील को 20जे के संबंध में स्पष्ट कर दिया है, उससे यह बात साफ हो चुकी है कि अब अगली बार 20जे पर फैसला कर्मचारियों के पक्ष में ही रहेगा।
फिलहाल इस ताजा फैसले की सबसे बड़ी बात
यह है कि कोर्ट ने शिकायतकर्ताओं को लेबर
इंस्पेक्टरों या डीएलसी के चक्करों से छुटकारा दिलाते हुए सीधे लेबर
कमीश्ररों को एक्ट की धारा 17 के तहत मामलों की सुनवाई करके निपटाने
की शक्तियां प्रदान की हैं। कोर्ट ने यूपी के लेबर कमीश्रर की रिपोर्ट के अनुसार
मजीठिया वेज बोर्ड देने वाले अखबारों से जुड़े अवमानना मामलों को बंद करने की
घोषणा तो की है, मगर साथ में यह भी साफ कर दिया है कि
श्रमायुक्त कार्यालय अपने इस दावे को प्रमाणित करने के साथ ही ताजा आदेशों के तहत
कार्रवाई करे। वहीं यूपी के जिन समाचार पत्रों ने मजीठिया वेज बोर्ड को अधूरा लागू
किया है, उन्हें इसे पूरी तरह लागू करने को कहा
है।
इन आदेशों में आगे लिखा गया है कि कोर्ट
के पिछले एक आदेश के अनुसार, जिसमें शिकायतकर्ताओं ने भारी संख्या
में इंटरलोकेटरी एप्लीकेशन, याचिकाएं व अन्य अर्जीयां लगाईं थीं
उन्हें कोर्ट के लिए एक-एक करके जांचना संभव नहीं है। कोर्ट ने इन अर्जियों को
ध्यान में रखते हुए प्रत्येक राज्य के श्रम आयुक्त को इन्हें जांचने की अथारिटी दी
थी, जिन्हें वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के तहत
कार्रवाई करने का कानूनी अधिकार पहले से ही प्राप्त हैं। कोर्ट ने इन ताजा आदेशों
में भी इस बात को दोहराते हुए पहले पांच राज्यों यूपी, हिमाचल, उत्तराखंड, नागालैंड व मणिपुर के श्रम आयुक्तों को कोर्ट के प्राधिकारी के तौर
पर विचारधीन चल रहे मामलों में ऐसी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं जिससे कोर्ट
पूरा और प्रभावी निर्णय सुनाने की योग्य हो पाए। कोर्ट ने इन श्रमायुक्तों को दिए
गए निर्देशों की व्याख्या इस प्रकार से की है:
क. लेबर कमीश्रर ने कोर्ट के समक्ष
प्रस्तुत अपने शपथपत्र / रिपोर्ट में जिन समाचारपत्र प्रतिष्ठानों में मजीठिया
वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू न किए जाने की बात कही है, उनके संबंध में श्रमायुक्त विस्तृत तथ्यों के आधार पर प्रभावित
पार्टी को पक्ष रखने का मौका देने के बाद निकले अपने निष्कर्ष को कोर्ट के समक्ष
प्रस्तुत करेंगे।
ख. लेबर कमीश्नर, मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने से जुड़े उचित मामले
में, अगर वे इसे जरूर मानते हैं, तो खुद की संतुष्टि के लिए स्वयं समाचार पत्र प्रतिष्ठान के परिसर का
निरीक्षण कर सकते हैं।
ग. प्रत्येक प्रभावित कर्मचारी को इस
बात की खुली छूट होगी कि वह मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के तहत देय राशि की डिटेल
राज्य सरकार / श्रम आयुक्त के समक्ष प्रस्तुत कर सके। यह क्लेम उसे मिल रहीं
मौजूदा प्राप्तियों से अधिक राशि का होगा, जो उसे वेजबोर्ड के तहत मिलनी चाहिए थी। अगर ऐसी राहत प्रदेश सरकार /
श्रम आयुक्त से मांगी जाती है, तो संबंधित अथारिटी को एक्ट की धारा 17 के तहत उचित न्यायप्रक्रिया अपनाने और इसके परिणामस्वरुप आदेश जारी
करने की पूरी शक्तियां होंगी।
इन आदेशों में कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के
श्रमायुक्त, जो कोर्ट में उपस्थित हुए थे को निर्देश
दिए हैं कि वे उपरोक्त प्रक्रिया को प्राथमिकता के आधार पर तुरंत शुरू करके कोर्ट
के उपरोक्त दिशानिर्देशों के आधार पर पूरा करें और अपने निष्कर्ष व परिणामों की
रिपोर्ट छह सप्ताह में कोर्ट को सौंपे। मामला चार अक्टूबर को देखा जाएगा।
इसके बाद हिमाचल प्रदेश के संबंध में
आदेश जारी करते हुए लिखा है कि कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के लेबर कमीश्रर अमित कश्यप
द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट / शपथपत्र को देखा, जो पूरी तरह चिपकाई गई रिपोर्ट की तरह है और यह इस बात का खुलासा
नहीं करती, जिसमें मजीठिया वेजबोर्ड को लागू किए
जाने को लेकर इस कोर्ट ने आदेश जारी किए थे। कोर्ट इस शपथपत्र के बेसिक फैक्ट तक
नहीं समझ पाया है। यह रिपोर्ट/शपथपत्र बहुत ही साधारण तरीके से फाइल किया गया है
और लेबर कमीश्रर ने उन्हें सौपे गए दायित्व का अस्वीकार्य तरीके से निर्वाह किया
है। उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में जारी किए गए निर्देश हिमाचल प्रदेश के लेबर
कमीश्रर भी प्रभावी तरीके से लागू करेंगे। वे चार सप्ताह बाद इस संबंध में एक
रिपोर्ट कोर्ट को सौंपंगे और तो चार अक्टूबर को जब मामला कोर्ट के समक्ष होगा तो
वे व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में मौजूद रहेंगे।
इसके अलावा कोर्ट में नागालैंड व मणिपुर
के लेबर कमीश्ररों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। नागालैंड के लेबर कमीश्रर को
चार अक्टूबर को उपस्थित होने को लेकर छूट दी गई है, जबकि मणिपुर के लेबर कमीश्रर को चार अक्टूबर को उत्तर प्रदेश व
हिमाचल की तरह ही निर्देशों का पालन करके रिपोर्ट के साथ उपस्थित होने को कहा गया
है।
वहीं उत्तराखंड के लेबर कमीश्रर व उनके
वकील के उपस्थित न होने पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए यह मामला प्रदेश
के मुख्य सचिव के ध्यान में लाने के निर्देश दिए गए। साथ ही मुख्य सचिव को उत्तर
प्रदेश के मामले में जारी निर्देशों का पालन करके रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा
गया है। वहीं उत्तराखंड के लेबर कमीश्रर की गिरफ्तारी के जमानती वारंट जारी करते
हुए चार अक्टूबर को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
इसके बाद अगली सुनवाई की तिथि यानी चार
अक्टूबर को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, महाराष्ट्र और झारखंड राज्यों के लेबर
कमीश्ररों को मजीठिया वेजबोर्ड लागू करने से संबंधित रिपोर्ट लेकर व्यक्तिगत तौर
पर उपस्थित होने के आदेश जारी किए गए हैं।
आदेश के अंतिम पैराग्राफ में लिखा है कि
कोर्ट ने पत्रकार व गैरपत्रकार कर्मियों की ओर से उपस्थित सीनियर काउंसिल कोलिन
गोन्साल्विस के उस मुद्दे को सुना, जिसमें उन्होंने पूछा है कि क्या मजीठिया वेजबोर्ड ठेके पर रखे गए
पत्रकार व गैरपत्रकार कर्मियों पर भी लागू होगा। साथ ही कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड
के क्लाज 20जे पर भी उनकी बात सुनी। अगली तिथि को
कोर्ट इन मुद्दों पर प्रबंधन का पक्ष सुनेगा और इसके बाद उचित विचार के बाद आर्डर
पास किया जा सकता है।
कई केस वापस किए गए तो कुछ बंद हुए
इस ताजा आदेश के प्रारंभ में ही कुछ
शिकायतकर्ताओं द्वारा केस वापस लिए जाने की बात लिखी गई है। शायद ये वे साथी हैं, जिनका संस्थान के साथ समझौता हो गया होगा। वहीं कोर्ट ने उत्तर
प्रदेश की रिपोर्ट के आधार पर भी मजीठिया वेजबोर्ड देने वाले संस्थानों को अवमानना
से मुक्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश श्रमायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर कौन-कौन से
संस्थान अवमानना से मुक्त हुए हैं, यह बात देखने वाली है, क्योंकि यूपी से बहुत कम लोग मजीठिया की लड़ाई में शामिल हैं। अमर
उजाला जैसे अखबार से तो शायद एक भी केस नहीं हुआ है। ऐसे में अगर अमर उजाला को
श्रमआयुक्त की रिपोर्ट का फायदा हुआ है तो इस अखबार के कर्मियों के लिए चिंता की
बात है। लिहाजा अभी भी देरी नहीं हुई है। इस संस्थान में कार्यरत साथी या फिर छोड़
चुके या निकाले जा चुके कर्मचारी एकजुट होकर श्रम आयुक्त के समक्ष रिकवरी का दावा
पेश करके मजीठिया के नाम पर की गई गड़बड़ी का भंडाफोड़ करें।
-रविंद्र अग्रवाल, धर्मशाला (हिप्र)
9816103265
ravi76agg@gmail.com
No comments:
Post a Comment