A.F.R.
Neutral Citation No. 2024:AHC:63949
Reserved on 28.02.2024
Delivered on 12.04.2024
Court No. - 51
Case :- WRIT - C No. - 292 of 2024
Petitioner :- The Indian Express Pvt. Ltd.
Respondent :- Union of India
साथियों, इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी खबर आई है। उच्च न्यायालय ने नोएडा लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ लगाई इंडियन एक्सप्रेस की याचिकाओं को खारिज कर दिया है। ये आदेश देशभर में मजीठिया का केस लड़ रहे साथियों को कानूनी रूप से काफी मददगार साबित होगा। आप सभी इस फैसले को अपने एआर और वकीलों को उपलब्ध करवा दीजिए।
इंडियन एक्सप्रेस के साथियों ने कोरोना काल में 11 महीने की वेतन कटौती के खिलाफ dlc नोएडा के यहां केस लगाया था। जिसे dlc ने लेबर कोर्ट को रेफर कर दिया था। वर्करों का तर्क था कि कोरोना काल में जब अखबार बंद नहीं हुआ और छपाई का काम सुचारू रूप से चलता रहा और वर्कर अपनी ड्यूटी प्रबंधन के दिशानिर्देशों अनुसार पूरी करते रहे तो उनके वेतन में कटौती क्यों की गई। लेबर कोर्ट में कर्मचारियों की तरफ से उनके एआर राजुल गर्ग ने तर्क रखे। लेबर कोर्ट ने अपना फैसला वर्करों के पक्ष में सुनाया। जिसके बाद प्रबंधन ने हाईकोर्ट का रुख किया।
प्रबंधन ने HC में लगाई अपनी याचिकाओं में कई मुद्दे उठाए थे। जो इस प्रकार है...
1. कंपनी का तर्क था कि उक्त वाद वर्करों द्वारा व्यक्तिगत रूप से लगाए गए हैं, जबकि औद्यौगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 2a के अनुसार व्यक्तिगत रूप से केवल डिस्चार्ज, डिसमिसल व टर्मिनेशन के वाद ही लगाए जा सकते हैं, इसके अलावा अन्य सभी तरह के वाद यूनियन के माध्यम से ही दायर किए जा सकते हैं। हाईकोर्ट ने इस तर्क को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट (WJA) एक विशेष एक्ट है। इसमें सेक्शन 17 में बकाया वेतन या अन्य धनराशि की वसूली का विशेष प्रावधान दिया गया है।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि wja में दिए गए फॉर्म सी को कोई भी वर्कर व्यक्तिगत रूप से भर कर अपना क्लेम प्रस्तुत कर सकता है और इसका प्रावधान खुद फार्म सी में ही है।
2. कंपनी का दूसरा तर्क था कि लेबर कोर्ट ने ऑर्डर को प्रकाशित करने के लिए राज्य सरकार को नहीं भेजा। जिस पर अदालत ने इस तर्क को भी खारिज करते हुए कहा कि wja के sec 17(3) में कहीं भी अवॉर्ड नहीं लिखा है। 'decision' शब्द का उल्लेख है और 'अवार्ड' शब्द का उल्लेख पूरे WJA में कहीं नहीं है। इसलिए लेबर कोर्ट के डिसीजन को अवार्ड मानकर उसे राज्य सरकार को प्रकाशित कराने की आवश्यकता नहीं है।
3. कंपनी का तीसरा तर्क था कि dlc को रेफरेन्स को सीधे लेबर कोर्ट को भेजने का अधिकार नहीं था। इसे राज्य सरकार को भेजा जाना चाहिए था, उसके बाद राज्य सरकार इसे लेबर कोर्ट को रेफर करती। उच्च न्यायालय ने इस तर्क को भी पुराने फैसलों के आधार पर खारिज कर दिया और कहा कि sec 17 सिंगल स्कीम है, जिसे अलग करके नहीं पढ़ा जा सकता। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना दिनांक 12-11-2014 के माध्यम से लेबर अथारिटिज को धारा 17 (WJA) में दी गई अपनी शक्तियां प्रतिनिधित्व (delegate) की गई है।
4. कंपनी का एक तर्क ये भी था कि कोरोना काल में केंद्र सरकार की अधिसूचना दिनांक 29-03-2020 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने फाईक्स पैक्स (प्रा.) लि. के आदेश में बल ना देने को कहा और प्रबंधन व कर्मचारियों के बीच वेतन कटौती को लेकर आपसी सहमति बनाते हुए समझौता करने के लिए जोर दिया।
इस तर्क को भी उच्च न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि इस केस में ना तो कंपनी पार्टी थी और ना ही केस के तथ्य प्रतिवादी कंपनी पर लागू होते हैं।
उच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील मनमोहन सिंह ने वर्करों की तरफ से तर्क रखे। इंडियन एक्सप्रेस की कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष नंदकिशोर पाठक जोकि शुरू से इस केस का नेतृत्व कर रहे हैं ने इस फैसले पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि ये फैसला वर्करों के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
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