Wednesday, 30 October 2019

जागरण के 20 जे की निकली हवा, ग्वालियर श्रम न्यायालय ने एक माह में दस कर्मचारियों को 2 करोड़ 39 लाख के भुगतान का दिया आदेश

ग्वालियर श्रम न्यायालय में चल रहे मजीठिया मामले में नईदुनिया जागरण के दस कर्मचारियों के पक्ष में न्यायालय ने 2 करोड 39 लाख रुपए के अवार्ड पारित किए हैं। ये अवार्ड नवंबर 2011 से लेकर सितंबर 2017 तक की अवधि के हैं। माननीय विद्वान न्यायाधीश श्री केसी यादव ने कर्मचारियों को आगे भी निरंतर मजीठिया के तहत वेतन देने के आदेश दिए हैं। आदेश के मुताबिक जागरण को एक माह के अंदर कर्मचारियों को पूरा भुगतान करना है। प्रत्येक कर्मचारी को दो-दो हजार रुपए वाद व्यय के रूप में भी देने के आदेश माननीय विद्वान न्यायाधीश ने दिए हैं। इस पूरे मामले को लंबित करने के उद्देश्य से प्रबंधन ने श्रम न्यायालय में चल रहे मामले की सुनवाई पर रोक लगाने के लिए भरसक प्रयास किए। इसके चलते प्रबंधन दो बार उच्च न्यायालय की शरण में भी पहुंचा लेकिन यहां से भी उसे कोई राहत नहीं मिली।
20 जे की निकली हवा, कोर्ट ने कहा फर्जी दस्तावेज प्रबंधन ने तैयार किए
20 जे के आधार पर मजीठिया वेतनमान लागू करने से बच रहे प्रबंधन को इन मामलों में सबसे तगड़ा झटका 20 जे पर ही लगा है। विद्वान न्यायाधीश्ा ने 20 जे को लेकर प्रबंधन के सभी दावों की अपने आदेश के माध्यम से हवा निकाल दी। जागरण के 20 जे के दस्तावेज को कोर्ट ने फर्जी बता दिया। कोर्ट के सामने प्रबंधन की पोल खुल गई। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि 20 जे का दस्तावेज फर्जी प्रमाणित है और प्रबंधन ने स्वयं तैयार किया है। इसके अलावा विद्वान न्यायाधीश्ा श्री केसी यादव ने एक्ट और न्याय के प्रतिपादित सिद्धांतों की बखूबी व्याख्या की है। साथ ही बताया है कि किस प्रकार न्यूनतम वेतन या केंद्र सरकार द्वारा तय वेतनमान से कम वेतन देने का करार किस प्रकार शून्य है। माननीय न्यायाधीश्ा ने अपने फैसले में स्पष्ट व्याख्या कर बताया है कि 20 जे आखिर क्या है। किस प्रकार अखबार प्रबंधन इसकी गलत व्याख्या कर रहे हैं और किस तरह 20 जे को लेकर कर्मचारियों को कोर्ट में अपना पक्ष रखना है। इस फैसले को पढ़कर विशेषरूप से 20 जे पर जागरण के कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलने वाली है।
यूनिट नहीं संस्थान का सकल राजस्व माना जाएगा
जागरण की ओर से कोर्ट को भ्रमित करने के लिए केवल ग्वालिया नईदुनिया की बैलेंस शीट कोर्ट में पेश की गई थी लेकिन न्यायालय ने अपने आदेश में केवल ग्वालियर यूनिट का सकल राजस्व मानने से इंकार कर दिया। विद्वान न्यायाधीश्ा श्री केसी यादव ने बताया कि किस तरह अलग-अलग यूनिट यदि वे किसी एक कंपनी के अधीन हैं तो उनके सकल राजस्व की गणना ही की जाएगी। इसलिए कंपनी के सभी यूनिटों की बैलेंस शीट सकल राजस्व की गणना के लिए आवश्यक है। केवल यूनिट की बैलेंस शीट को कोई औचित्य नहीं है।
कर्मचारियों के गणना पत्रक को सही माना
मामले में कर्मचारियों की ओर से मजीठिया वेतनमान की अनुशंसा के मुताबिक गण्ाना पत्रक न्यायालय में पेश किए गए थे, जबकि प्रबंधन की ओर से कोई गणना पत्रक पेश नहीं किया था। ऐसे में विद्वान न्यायाधीश्ा श्री केसी यादव ने कर्मचारियों के गणना पत्रक की जांच की ओर ब्याज की राशि छोड़कर मजीठिया वेतनमान के बकाया राशि का अवार्ड पारित कर दिया। इस मामले में कर्मचारियों की ओर से श्रम मामलों के जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री जेएस सेंंगर ने पैरवी की। 24 अक्टूबर को खुले न्यायालय में दस अवार्ड सुनाए गए। अब एक माह में प्रबंधन को कर्मचारियों को मजीठिया का बकाया देना है साथ ही आगे भी मजीठिया के मुताबिक वेतन देना होगा।

नीचे देखें किसे कितने लाख मिले।
Anil samadhiya 2754022
Sandip pathak 2608785
Milind bhindwalwe 3116690
Shiromani singh 2423887
Prabhat Bnahtnagar3236160
Subhash DX 720210
Ganesh kulshreshth 2378422
Sarvesh 2645569
Mayaram mishra 1430937
Anamika 2622526

Tuesday, 29 October 2019

IFWJ Observes its 70th Foundation Day as the ‘Pledge Day’

The 70th Foundation day of the IFWJ was celebrated all over the country by the journalists and other media employees. In Delhi it was observed as the ‘pledge day’ for securing the new Wage Board, Amendment in the Working Journalists Act and also for introducing the special provisions to ensuring the safety and security of the media persons. The Secretary-General Parmanand Pandey informed that the IFWJ has written to Shri Bhartruhari Mahatab, the Chairman of the Parliamentary Committee on Labour opposing the move of the government to abrogate the Working Journalists Act and integrate it with other 11 existing Acts, which have nothing in common with the Working Journalists Act. It may be noted here that the government is planning to repeal the Working Journalists Act and subsuming the other Acts under the ‘Occupational Safety, Health and the Working Conditions Code 2019’.

Although the it has been proposed to include employees of the electronic and web etc in the Code, yet the Working Journalists Act is to be clubbed with the other Acts like Mines Act, Plantation Act etc. which have no common ground with the Working Journalists Act. It defies all logic to put other Acts having no common denominator with a distinct Working Journalists Act.

IFWJ has reminded the government that the Working Journalists Act was passed by Parliament in 1955 after a great deal of efforts by the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ). Among others who spoke on the occasion to make the IFWJ strong were Rinku Yadav, Treasurer IFWJ, AS Negi President of the DUWJ, C.K. Pandey and Ashok Sharma etc.

The IFWJ has decided to launch and awaken the journalists as well as general public about the need to retain the Working Journalists Act and its comprehensive amendment to help benefit the employees of the print, electronic and other digital media.

Parmanand Pandey
Secy-Gen: IFWJ

Monday, 28 October 2019

भास्कर ग्रुप के हवाले की गई 61 हजार स्क्वायर फीट जमीन का आवंटन रद्द

दैनिक भास्कर समूह का एक और कांड सामने आया है। सन 2004 में इन्दौर की महापौर परिषद ने तमाम नियमों को दरकिनार करते हुए 61 हज़ार स्क्वायर फ़ीट महंगी जमीन मात्र 81 लाख में भास्कर के नाम कर दी थी। हाईकोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर भास्कर को पटखनी मार दी है।
61000 स्क्वेयर फीट की बेशकीमती जमीन का शासकीय लैंड यूज गार्डन और पार्क के लिए था। तत्कालीन महापौर परिषद् ने बिना मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 के नियमों-कानूनों का पालन किए और बिना किसी अधिकार के उपरोक्त 61 हजार स्क्वेयर फीट की बेशकीमती जमीन दैनिक भास्कर ग्रुप की उपरोक्त कंपनी के नाम कर दी थी।

[साभार भड़ास4मीडियाडॉटकॉम]

देखें इस संबंध में छपी एक खबर….

Thursday, 24 October 2019

मजीठिया: जागरण को दीवाली से पहले बड़ा झटका, लेबर कोर्ट ने 20 जे को बताया फर्जी, पारित किया 2 करोड़ 40 लाख का अवार्ड


ग्‍वालियर। मध्‍यप्रदेश के ग्‍वालियर से मजीठिया मामले में बहुत बड़ी खबर आ रही है। अब तक कर्मचारियों को 20जे की आड़ में वेजबोर्ड देने से बचते रहे जागरण प्रकाशन लिमिटेड को यहां के लेबर कोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। लेबर कोर्ट ने 20जे पर जागरण प्रकाशन लिमिटेट की सभी दलीलों को खारिज करते हुए इसे फर्जी बताया और नई दुनिया के 10 कर्मचारियों के पक्ष में 2,39,37,208 रुपये का अवार्ड पारित किया। लेबर कोर्ट ने ये आदेश 2017 तक के हिसाब से दिया और साथ ही कंपनी को इसी तरह आगे का वेतन भी देने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही लेबर कोर्ट ने कंपनी को केस पर खर्च के रूप में प्रति कर्मचारी दो-दो हजार रुपये देने का भी आदेश दिया है। लेबर कोर्ट में सुनवाई के दौरान जागरण ने हर ह‍थकड़े अपनाए और इसकी कार्यवाही में बाधा डालने के लिए कई बार हाईकोर्ट भी पहुंचा। परंतु उसे हर बार वहां मुंह की खानी पड़ी। इस आदेश के बाद मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे देशभर के पत्रकारों के बीच खुशी की लहर दौड़ पड़ी है।
नई दुनिया के विजेता साथियों के नाम इस प्रकार है-

Anil samadhiya - 2754022
Sandip pathak - 2608785
Milind bhindwalwe - 3116690
Shiromani singh - 2423887
Prabhat Bnahtnagar - 3236160
Subhash DX - 720210
Ganesh kulshreshth - 2378422
Sarvesh - 2645569
Mayaram mishra - 1430937
Anamika maidam - 2622526


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लो, अमर उजाला प्रबंधन भी कमीना निकला


संवाद न्यूज एजेंसी के नाम से छाप रहा खबरें
राजुल महेश्वरी फेर रहे अतुल जी के सपनों पर पानी
कई जगह अंतिम सांसें गिन रहा है अमर उजाला

अमर उजाला ने पत्रकारिता के मेरे करियर को नया मोड़ देने का काम किया। मैंने दिल्ली और चंडीगढ़ संस्करण में आठ साल अमर उजाला में विभिन्न पदों पर काम किया। मेरी धारणा थी कि अमर उजाला के मालिक दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर के मालिकों की तुलना में कम खराब हैं, लेकिन अब यह धारणा बदल गई है। अमर उजाला का बेड़ा गर्क करने में शशि शेखर का बड़ा हाथ रहा है। अमर उजाला में 2005 तक बहुत अच्छी और काबिल टीम रही। कई दिग्गज नामी पत्रकार अमर उजाला में थे, लेकिन शशि शेखर ने एक-एक करके सभी अच्छे पत्रकारों को संस्थान छोड़ने पर विवश कर दिया। शशि शेखर हिन्दुस्तान अखबार का बेड़ा गर्क कर चुका है। हिन्दुस्तान में आज एक भी पत्रकार नहीं है, सब कर्मचारी हैं। सब गुलाम हैं। अमर उजाला राजुल महेश्वरी के नेतृत्व में काम कर रहा है।

अतुल जी की मौत के बाद राजुल इस ग्रुप को अच्छा प्रबंधन नहीं दे पाए हैं और विफल साबित हो रहे हैं। अमर उजाला के कई एडिशन घाटे में चल रहे हैं और कई प्रसार की होड़ में भी पिछड़ रहे हैं। ऐसे में अमर उजाला ने स्थायी कर्मचारियों पर अधिक दबाव देना शुरू कर दिया था। पहले काम ठेके पर दिया और अब आउटसोर्सिंग होने लगी है। कई संस्करणों में बकायदा पत्रकारों की खबरों को संवाद न्यूज एजेंसी का नाम दिया जा रहा है। जो स्टाफर हैं जो कि अब बहुत कम रह गए हैं, उनके नाम के आगे ही अमर उजाला ब्यूरो दिया जा रहा है। तो भाई लोगों जो भी अमर उजाला में काम कर रहे हैं, अब ठिकाना तलाशना शुरू कर दो।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Monday, 21 October 2019

मजीठिया: पटियाला में दैनिक जागरण का बैंक खाता अटैच कर बैंक ने 310248 रुपये का ड्राफ्ट बना भेजा collector को



पटियाला (पंजाब)। दैनिक जागरण की ऊल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। पटियाला में दैनिक जागरण में कार्यरत बिजय कुमार ठाकुर जिसे जागरण ने मजीठिया मांगने पर नौकरी से निकाल दिया था तो बिजय कुमार ठाकुर ने लेबर विभाग में नौकरी से निकले जाने का केस फाइल किया। यहां जब बात नहीं बनी तो केस लेबर कोर्ट रेफर हो गया। काफी संघर्ष के बाद बिजय कुमार ठाकुर के फेवर में पटियाला की लेबर कोर्ट ने 26-04-2019 को फैसला सुनाया। जिसमें उसे 50 फीसदी back wages के साथ-साथ नौकरी पर रखने के आदेश लेबर कोर्ट ने दिए थे और साथ ही लेबर कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी लिखा कि यदि जागरण प्रबंधन फैसले की अवेहलना करता है तो उसे जब से अवार्ड पास किया गया है तब से 6% ब्याज देना होगा।

जब बिजय कुमार ठाकुर जागरण प्रबंधन के पास लेबर कोर्ट का हवाला दे नौकरी मांगने गया तो जागरण ने बाहने मारने शुरू कर दिए और नौकरी पर नहीं रखा। उसके बाद बिजय कुमार ठाकुर ने लेबर कमीश्नर के यहां लेबर कोर्ट के फैसले को अमल करवाने के लिए एपलिकेशान लगाई। Assistant Collector Grade-I Patiala ने दैनिक जागरण प्रबंधन को इस बाबत कई बार नेटिस भेजे लेकिन प्रबंधन के कान पर कोई जूं नही रेंगी।

Labour Inspector Grade-I, Patiala ने बिजय कुमार ठाकुर द्वारा उपलब्ध करवाए गए दैनिक जागरण के बैंक अकाऊंट नम्बर और उसकी संपत्ति के ब्यौरे के आधार पर बैंक को जागरण का खाता ATTACH कर बिजय कुमार ठाकुर द्वारा किए गए क्लेम 3,10,248/- रूपये का भुगतान करने के आदेश दिए उसके बाद बैंक ने उपरोक्त राशि का ड्राफ्ट बना collector को भेज दिया। उसके बाद बिजय कुमार ठाकुर ने पैसा Release करवाने की अर्जी लेबर कमीश्नर के यहां लगाई है जिस पर नोटिस जारी कर दैनिक जागरण को पेश हो अपना जबाव देने को कहा है।

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Friday, 18 October 2019

मजीठिया: जागरण को पटना हाईकोर्ट से झटका, कहा- 20j बाध्यकारी नहीं, साथ ही दिया रोजाना सुनवाई का आदेश


पटना। जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में पटना हाईकोर्ट ने जागरण प्रबंधन को जोर का झटका दिया है। पटना हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट को निर्देश दिया है कि इस मामले की रोजाना सुनवाई करें। यही नहीं, जागरण प्रबंधन द्वारा वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 20 जे को हाईकोर्ट में संज्ञान में लाते हुए अपने बचाव का प्रयास किया गया जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया। दैनिक जागरण में कार्यरत पंकज कुमार और अन्य के मामले में यह आर्डर पटना हाईकोर्ट ने दिया है।

इस केस में हाईकोर्ट ने कहा है कि 17 (1)में लेबर विभाग के अधिकारियों को अधिकार नहीं है कि वह मजीठिया वेज बोर्ड का बकाया अपने आदेश के तहत दे सकें। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि लेबर विभाग को 17 (2) के अंतर्गत मामला अदालत को प्रेषित कर देना चाहिए यानी कि रिफरेंस बनाकर भेजना चाहिए।

पंकज कुमार का पक्ष पटना के वरिष्ठ अधिवक्ता जे एस अरोड़ा ने अदालत में पक्ष रखा। अरोड़ा के जूनियर गौरव प्रताप और मनोज कुमार अधिवक्ता थे। वहीं, गया के वरिष्ठ अधिवक्ता मदन कुमार तिवारी पटना उच्च न्यायालय में अरोड़ा के साथ हर तारीख पर मजीठिया वेजबोर्ड को लेकर अपडेट कर रहे थे। जहां जरूरत पड़ी मदन तिवारी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट से संबंधित आदेश जेएस अरोड़ा के माध्यम से अदालत में पेश किए। दैनिक जागरण की ओर से वरीय अधिवक्ता आलोक कुमार सिन्हा पेश हुए।

20 जे को लेकर पटना जागरण द्वारा किए गए फर्जीवाड़ा को जेएस अरोड़ा ने अदालत में रखा। कैसे एक व्यक्ति का सीरियल नंबर अलग-अलग पृष्ठों पर अलग क्रमांक पर दर्शाया गया था। कुल मिलाकर आदेश 20j को केंद्र में रखकर आया है। जस्टिस शिवाजी पांडेय ने अपने आदेश के पैरा नंबर 33 में दैनिक जागरण द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में आब्जर्वेशन को गलत तरीके से व्याख्या करने पर करारा झटका देते हुए साफ कर दिया है कि आब्जर्वेशन को फैसले से नहीं जोड़ा जा सकता है।

इस संबंध में न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय के आदेश में पैरा 38 में 20j पर सर्वोच्च न्यायालय और स्वयं के आदेश की बहुत ही सटीक व्याख्या करते हुए 20j को मीडियाकर्मियों पर बाध्यकारी नहीं होने को लेकर स्पष्ट आदेश दिया है।

एडवोकेट उमेश शर्मा के मुताबिक पटना हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि 20जे लेबर कोर्ट के सामने मान्य नहीं होगा क्योंकि वेजबोर्ड की रिपोर्ट कहती है कि 1 महीने के अंदर ही साइन होना चाहिए। 1986 के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कागज पर अगर प्रबंधक ने साइन कराए हैं तो वह मान्य नहीं होगा।

आदेश की कापी देखने-पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- patna highcourt order
https://drive.google.com/file/d/1-OQh_5qFjfPxojXZ7LKbJphVsICbPWFj/view

शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
9322411335


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