Wednesday, 22 May 2024

बिहार वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के प्रयास से नवभारत टाइम्स के रिटायर्ड पत्रकारों की शानदार जीत

1995 में बंद होने के बाद पटना संस्करण के "नवभारत टाइम्स" से अलग हुए दो पत्रकारों - हरेंद्र प्रताप सिंह और शरद रंजन कुमार, पटना उच्च न्यायालय से उनके वेतन और अन्य लाभों के भुगतान के संबंध में बड़ी राहत मिली है। अपने हालिया फैसले में, पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए अभिषेक रेड्डी की एकल बेंच ने 2008 में दिए श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा है, प्रबंधन (एम/एस बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड) को उन्हें उचित रूप से बहाल करने और उनके वेतन और अन्य लाभों के खिलाफ बकाया का भुगतान करने का निर्देश दिया है, उन्हें माना जाता है कि वे 2008 में दिए गए श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार सेवा में रहना, छंटनी की तारीख से जारी रखना।


पटना हाईकोर्ट ने "नवभारत टाइम्स" के पटना संस्करण को 1995 में बंद करने को अवैध घोषित किया है। समाचार पत्र का प्रकाशन औपचारिक रूप से बंद करने से पहले प्रबंधन द्वारा कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। नवभारत टाइम्स के सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने श्रम न्यायालय, पटना में इसके बंद होने के बाद अपील की थी और उन्हें 2008 में राहत मिली थी, लेकिन प्रबंधन ने इसे पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, इसके तुरंत बाद 16 साल के लंबे इंतजार के बाद इसका फैसला आया। उच्च न्यायालय ने प्रबंधन को निर्देश दिया है कि हरेंद्र प्रताप सिंह और शरद रंजन कुमार दोनों को छंटनी की तारीख के बाद से सभी बैकलॉग वेतन और अन्य लाभों का भुगतान उनकी स्थिति के अनुसार करें। अवकाश प्राप्ति की आयु प्राप्त करने के मामले में, वे अवधि के दौरान अर्जित सभी प्रकार के बकाये के खिलाफ वित्तीय लाभ प्राप्त करने के हकदार होंगे। हाईकोर्ट ने प्रबंधन को आदेश का पालन चार सप्ताह में भुगतान और अन्य लाभ देकर करने के निर्देश दिए हैं। बिहार कार्य पत्रकार संघ (बीडब्ल्यूजेयू) द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों और सहायता के बाद नवभारत टाइम्स के पटना संस्करण के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की यह एक बड़ी जीत थी। इस महान क्षण में BWJU पटना हाईकोर्ट से बड़ी राहत पाने वालों को बधाई देता है। BWJU पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए वास्तविक मांगों को बढ़ाता रहेगा।

Monday, 20 May 2024

अडानी समझौता: मजीठिया क्रांतिकारी पत्रकारों ने हाईकोर्ट में भास्कर के वकील की बोलती बंद


डीबी पॉवर की याचिका में दैनिक भास्कर ने हाईकोर्ट में लगा दिया अपने मैनेजर का शपथपत्र, पत्रकार तरुण भागवत व अरविंद आर. तिवारी ने बहस के दौरान खुली कोर्ट में बेनकाब किया अखबार का झूठ, देखें वीडियो...


दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों को अलग-अलग यूनिट और डीबी कॉर्प. लि. के दूसरे धंधों का अलग अस्तित्व बता रही वकील की बोलती हुई बंद 


दैनिक भास्कर के हजारों कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान की लड़ाई में मिलेगी मदद 


इंदौर। मजीठिया वेतनमान देने की जगह अपने कर्मचारियों को कोर्ट के चक्कर लगाने के लिए मजबूर करने वाला दैनिक भास्कर अखबार मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में अपने ही दांव में उलझ गया है। अडाणी समूह को डीबी पॉवर कंपनी बेचने पर लेबर कोर्ट से लगी रोक हटवाने के चक्कर में दैनिक भास्कर ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। पत्रकारों के एक आवेदन के जवाब में डी.बी. कॉर्प समूह की कंपनी डी.बी. पॉवर ने हाईकोर्ट में अपनी ओर से प्रस्तुत किए जवाब में दैनिक भास्कर अखबार के मैनेजर राजकुमार साहू का शपथ पत्र लगा दिया।


शुक्रवार को आवेदन पर बहस के दौरान मजीठिया क्रांतिकारी व पत्रकार तरुण भागवत और अरविंद आर. तिवारी ने हाईकोर्ट में दैनिक भास्कर की यह करतूत उजागर कर अपने तर्कों से साबित कर दिया कि डीबी पॉवर भी दैनिक भास्कर की ही इकाई है। याचिका में गलत शपथ-पत्र और पत्रकारों के तर्कों पर डीबी पॉवर की वकील निरुत्तर हो गई और बहस ही बंद कर दी। इस तरह कर्मचारियों के लिए खोदी कानूनी खाई में अब दैनिक भास्कर समूह स्वयं ही गिरता हुआ नजर आ रहा है। इस केस के फैसले का लाभ केस लड़ रहे पत्रकारों के अलावा दैनिक भास्कर के हजारों कर्मचारियों को भी मिल सकता है। 


दरअसल, साल 2022 में अडानी ग्रुप ने दैनिक भास्कर समूह से उसकी छत्तीसगढ़ में स्थित थर्मल पॉवर प्लांट कंपनी डीबी पॉवर के अधिग्रहण का सौदा सम्पूर्ण कैश में करने का सौदा किया था। दैनिक भास्कर समूह से मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों तरुण भागवत और अरविंद आर. तिवारी ने इस सौदे की खबर लगते ही अडाणी समूह, डीबी पॉवर और दैनिक भास्कर ग्रुप के समक्ष आपत्ति जताई और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को भी शिकायत कर दी। पैसे और पॉवर के मद में चूर दैनिक भास्कर समूह और अडाणी ग्रुप ने इस आपत्ति पर घमंड से भरा हुआ दम्भपूर्ण जवाब दिया, वहीं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने पत्रकारों की आपत्ति को गंभीरतापूर्वक लेते हुए अडाणी ग्रुप और भास्कर समूह को नोटिस जारी कर दिए। इससे मजबूर होकर अडाणी ग्रुप ने नोटिसों का जवाब देने का जिम्मा 100 साल से ज्यादा पुरानी लॉ फर्म खेतान एंड कंपनी को सौंप दिया।


100 साल से ज्यादा पुरानी लॉ फर्म खेतान एंड कंपनी भी नहीं दिलवा सकी राहत


खेतान एंड कंपनी ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को भेजे जवाब की कॉपी डीबी पावर कंपनी और पत्रकारों की ओर से नोटिस जारी करने वाले अधिवक्ता श्री केतन विश्नार को ई-मेल पर भेजी। अडाणी ग्रुप की ओर से बेहद अहंकारयुक्त जवाब दिया गया। इस पत्राचार के दौरान भी अडाणी और डीबी कॉर्प ग्रुप अपनी डील आगे बढ़ाते रहे। हालांकि अडाणी ग्रुप डीबी पॉवर को अधिग्रहित नहीं कर सका। इसी दौरान पत्रकारों ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में डील कैंसिल करवाने के लिए रिट लगा दी।


उच्च न्यायालय ने रिट निराकृत कर दी कि पहले लेबर कोर्ट में आवेदन करें, वहां राहत नहीं मिले तो हाई कोर्ट का रुख करें। पत्रकारों ने इसके तुरंत बाद डीबी पावर और अडाणी की डील पर रोक के लिए लेबर कोर्ट में आवेदन किया। तत्कालीन पीठासीन अधिकारी निधि श्रीवास्तव ने प्रस्तुत आवेदन, साक्ष्यों और पत्रकारों के तर्कों से सहमत होकर अडाणी पावर द्वारा अधिग्रहित की जा रही दैनिक भास्कर समूह की डीबी पावर कंपनी की डील पर रोक लगा दी। अडानी पावर और डीबी पावर के बीच यह डील 7017 करोड़ रुपए में होने वाली थी।  


डीबी पॉवर ने गुमराह किया, हाईकोर्ट के स्टाफ ने भी की बड़ी गलती


7 हजार करोड़ की डील पर लेबर कोर्ट के स्टे से तिलमिलाए दैनिक भास्कर समूह ने आव देखा न ताव और स्टे लेने की जल्दी में असत्य कथनों और अधूरे तथ्यों से ओत-प्रोत रिट याचिका से हाई कोर्ट को गुमराह कर एकपक्षीय स्टे ले लिया। लेबर कोर्ट के स्टे पर कैवियट के बावजूद रिट याचिका की बिना अग्रिम सूचना मिले सुनवाई हो जाने से पत्रकार भी अचंभित रह गए। उन्होंने पड़ताल की तो पता चला ना केवल दैनिक भास्कर समूह ने असत्य कथनों से हाईकोर्ट को गुमराह किया है बल्कि हाईकोर्ट के स्टाफ ने भी कैवियट की जांच में गलती की है। 


शपथ-पत्र में असत्य कथन प्रस्तुत करने पर 7 साल जेल 


मामले में पत्रकार स्वयं पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने भास्कर समूह के मालिकों द्वारा हाईकोर्ट को गुमराह करने के साथ ही शपथ-पत्र पर झूठे कथन प्रस्तुत करने की शिकायत कर प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की गुहार भी लगाई है। इन पत्रकारों की मानें तो दैनिक भास्कर समूह के कर्ताधर्ताओं का यह कृत्य आईपीसी के तहत दण्डनीय अपराध है। इसमें दोष सिद्ध होने पर अधिकतम 7 साल तक की जेल और कड़ा आर्थिक जुर्माना दोनों हो सकता है। 


भास्कर की वकील अनुपस्थित थी तो शपथ-पत्र कैसे आया?


पत्रकारों के मुताबिक हाईकोर्ट में विचाराधीन रिट याचिका में अडाणी समूह और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को पक्षकार बनाए जाने के आवेदन पर बहस हो चुकी है। जिस पर इसी हफ्ते फैसला आने वाला है। चूंकि पत्रकारों के उक्त आवेदन के जवाब में डी.बी. पॉवर ने दैनिक भास्कर अखबार के मैनेजर राजकुमार साहू का शपथपत्र लगा दिया है, जिस पर डी.बी. कॉर्प के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता की सील भी लगी हुई है।


ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अपने सभी संस्करणों और उद्योग-धंधों को अलग-अलग इकाई बताने वाले दैनिक भास्कर समूह के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता का शपथ-पत्र डीबी पावर की ओर से कैसे फाइल हो गया? जबकि दोनों ही कंपनियों की पैरवी अलग-अलग महिला वकील कर रही हैं। दैनिक भास्कर की वकील तो डेढ़ साल में सिर्फ दो-तीन सुनवाई में ही कोर्ट में उपस्थित हुई है और जिस दिन डी.बी. पॉवर की ओर से दैनिक भास्कर अखबार के मैनेजर राजकुमार साहू का शपथपत्र प्रस्तुत किया उस दिन भी डी.बी. कॉर्प की महिला वकील अनुपस्थित थी।

Wednesday, 15 May 2024

बड़ी खबरः हाईकोर्ट के आदेश के बाद सहारा ने दो कर्मियों को सौंपे 3-3 लाख के डीडी




साथियों, नोएडा से एक बड़ी खबर आ रही है। सहारा मीडिया को दो महिला उप-संपादकों को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद तीन-तीन लाख के डीडी सौंपने पड़े हैं।

मालूम हो कि सहारा मीडिया ने कई कर्मचारियों को अवैध रूप से नौकरी से निकाल दिया था। सहारा के प्रिंट में कार्यरत गीता रावत और रमा शुक्ला भी उन कर्मचारियों में शामिल थीं, जिन्होंने अपने पिछले कई महीनो का बकाया वेतन और मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने की मांग की थी।

जिसके बाद इन्होंने नोएडा डीएलसी में अवैध सेवा समाप्ति को लेकर वाद दायर किया था और वहां से केस नोएडा लेबर कोर्ट को रेफर हो गया। लेबर कोर्ट ने 20 अक्टूबर 2023 को दोनों कर्मचारियों को पुरानी सेवा की निरन्तरता के साथ पूर्व पूर्ण वेतन व अन्य समस्त हित लाभ समेत अवार्ड प्रकाशन के एक माह के अंदर सेवा में बहाल करने का आदेश दिया था।

इस अवार्ड के खिलाफ सहारा प्रबंधन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें इस अवार्ड को चुनौती दी गई थी और उसपर अमल करवाने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना। जिसके बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पहले प्रबंधन 15 दिन के भीतर गीता रावत और रमा शुक्ला को नौकरी पर बहाल करे और ज्वाइनिंग के समय दोनों को 3-3 लाख रुपये का डीडी दे, इसके बाद स्टे प्रभावी होगा।

सहारा प्रबधन ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद दोनों कर्मियों को तीन-तीन लाख का डीडी सौंप दिया है।

लेबर कोर्ट में गीता रावत और रमा शुक्ला की तरफ से एआर राजुल गर्ग ने मजबूत तर्क रखे। वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील मनमोहन सिंह इनकी तरफ से लड़ रहे हैं।