Saturday, 29 July 2023

पत्रकार साथियों के नाम एक खुली पाती


आज हम सभी को आत्म मंथन की जरूरत है। ऐसा क्या हुआ कि यूनियनें कमजोर से कमजोर होती चली गईं। क्यों नहीं यूनियनों को मजबूत करने पर ध्यान दिया गया। प्रबंधन हर मामले में एकजुट होता रहा और यूनियनें टूटती-बिखरती गईं। तकनीक के विकास के साथ मालिकन ने तालमेल बिठाया, परंतु यूनियनों का ढर्रा बदला नहीं। पुरानी यूनियनें संख्याबल से कर्मचारी हित में लंबी-लंबी लड़ाईयां लड़ती थी और जीत हासिल करती थीं। ना आज संख्याबल है और ना ही लड़ाई का वह जज्बा बचा है। आज भी यूनियनें नहीं चेती तो जो बची खुची हैं उनको भी सिमटने में वक्त नहीं लगेगा। 

आजतक के सारे वेजबोर्ड पुरानी यूनियनों की लडाई का ही नजीता है। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट और मजीठिया वेजबोर्ड को बचाने की सुप्रीम कोर्ट में जंग भी इन्हीं यूनियनों ने लडी है और जीत हासिल की। फिर भी ऐसा क्या है कि यूनियनों में संख्या बल लगातार घटता जा रहा है।

 इसके पीछे ज्यादातर यूनियनों की दकियानूसी सोच, उनके कई पदाधिकारियों की निष्क्रियता, उनकी दूरदर्शी सोच में कमी, जयचंदों की बढती फौज। इन सबके बीच मजीठिया वेजबोर्ड की वजह से कर्मचारियों पर चला इतिहास का सबसे बड़ा दमनचक्र। हर वेजबोर्ड में 20जे था, परंतु इस बार कंपनियों ने इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया और कर्मचारियों के वकीलों की फौज कुछ भी नहीं कर पाई और अवमानना याचिका में मात्र एक वकील के इर्दगिर्द घूमता केस और उस वकील का ये कहना कि मालिकों को जेल भेजकर क्या होगा, मालिकों के दमनकारी हौंसलों को और उड़ान दे गया। आज यूनियनें कह रही हैं कि संख्याबल नहीं बढ़ रहा। क्या उन्होंने इस पर मंथन किया है वे तभी आगे बढ़ सकते हैं जब वे कर्मचारियों की समस्याओं के निदान के लिए दिल से आगे आएं, उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध करवाएं। मजीठिया की वजह से आज हजारों पत्रकार-गैर पत्रकार अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए लड़ रहे हैं, क्या यूनियनें उनकी मदद के लिए आगे आईं, क्या उन्होंने न्याय दिलवाने में कोई योगदान दिया। इन सबका उत्तर है नहीं। जब नौकरी सुरक्षित नहीं होगी तो कोई कर्मचारी कैसे यूनियन से जुड़ेगा। लाखों रुपये अपने कार्यक्रमों में एक दिन में ही फूंकने का सामर्थ्य रखनेवाली यूनियनें चाहें तो ईमानदार वकीलों का एक पैनल तैयार कर सकती हैं, जो कर्मचारियों को न्याय दिलवाने में मदद कर सकते हैं, क्योंकि जल्द न्याय न मिलना भी कर्मचारियों का यूनियनों से दूरी बनाने का एक विशेष कारण है।


यूनियनें चाहें तो सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल के माध्यम से कर्मचारियों के हित में कई निर्णय करवा सकती हैं, परंतु वे आज के समय में केवल तमाशा देख रही हैं, कर्मचारियों की बर्बादी का। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र में नागपुर की डबल बेंच के wja के सेक्शन 17 के मामले में एक निर्णय ने पूरे राज्य में चल रहे मजीठिया की रिकवरी के केसों का बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। ऐसे में क्या खुद यूनियनों को कर्मचारियों के हित में आगे नहीं आना चाहिए, उनके जुड़े वकीलों को वहां के हजारों कर्मचारियों के हित में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटना चाहिए। ये केवल सेक्शन  17 का ही मामला नहीं है जहां कर्मचारी एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट में भटकता है। उसके अलावा भी रेफेरेंस में डीएलसी की गलती और कई मुद्दे है जिसपर सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश उनकी अदालती लड़ाई की अवधि को कम कर सकते हैं। इस पर विस्तार से मंथन करना होगा और रणनीति बनानी होगी। 

एक संदेश, मजीठिया की लडाई लड़ रहे कर्मचारियों के लिए भी। उनको भी यूनियनों के साथ आना होगा, वे भी ये कह नहीं बच सकते कि यूनियनों ने उनके लिए किया क्या है, इन यूनियनों की वजह से ही तो मजीठिया से लेकर कई वेजबोर्ड धरातल पर आए हैं। उस लड़ाई के दौरान तो आप कहीं भी नजर नहीं आते थे। आप अपने उन नेताओं को भी पहचाने जो आपको कहते हैं, कि मजीठिया लेने के बाद हमें आगे कुछ नहीं करना है, हम क्यों यूनियनों का साथ दें। ऐसे नेता या तो उम्रदराज हो गए हैं या कहीं ना कहीं मालिकों से मिले हुए हैं। आपमें से बहुत से साथियों की नौकरी का एक लंबा काल बचा हुआ है और उस काल को आत्मसम्मान से जीने के लिए यूनियनों का साथ देना ही होगा। पुराने और नए को एकमंच के नीचे आकर नई सोच और ऊर्जा के साथ मालिकों को हर क्षेत्र में मात देनी होगी।

(वरिष्ठ पत्रकार की कलम से)

Friday, 28 July 2023

मीडिया संगठनों में अवैध छंटनी के खिलाफ संसद पर प्रदर्शन नौ को

अखबार, टीवी चौनल और अन्य मीडिया प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों को अवैध तरीके से निकाले जाने के विरोध में कन्फेडरेशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजेंसी इम्पलाइज आर्गनाइजेशन ने नौ अगस्त को संसद भवन पर बड़ा प्रदर्शन करने की घोषणा की है।

कन्फेडरेशन की जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार इस प्रदर्शन में देश भर से मीडियाकर्मियों के संगठनों के नेता और प्रतिनिधि शामिल होंगे। प्रदर्शन के साथ ही उस दिन वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की बहाली और पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपे जाएंगे।

कन्फेडरेशन के अध्यक्ष रास बिहारी, महासचिव एम एस यादव और कोषाध्यक्ष एम एल जोशी ने बयान में कहा कि पूरे देश में जगह-जगह अखबार और समाचार चैनलों से पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों को बड़े पैमाने पर नौकरी से निकाला जा रहा है। इससे पहले कोरोना काल में महामारी के बहाने लाखों कर्मचारियों को मीडिया प्रतिष्ठानों से बिना मुआवजा दिए निकाला गया था। उन्होंने बताया कि कन्फेडरेशन की तरफ से वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की बहाली और पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग लगातार उठायी जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों के कारण अखबारों, संवाद समितियों और चैनलों के समक्ष आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है। इस कारण बड़ी संख्या में अखबार बंद हो रहे हैं। संवाद समितियों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।

कन्फेडरेशन से संबद्ध नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स-इंडिया के महासचिव प्रदीप तिवारी, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन के अध्यक्ष श्रीनिवास रेड्डी, महासचिव बलबिन्दर जम्मू, इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के महासचिव परमानंद पांडे, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पीटीआई इम्पलाइज यूनियन के अध्यक्ष भुवन चौबे, यूएनआई वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव एम एम जोशी, ऑल इंडिया न्यूजपेपर्स इम्पलाइज फेडरेशन सचिव सी के नायडू, द ट्रिब्यून इम्पलाइज यूनियन चंडीगढ़ के अध्यक्ष अनिल गुप्ता और नेशनल फेडरेशन ऑफ न्यूजपेपर्स इम्पलाइज के अध्यक्ष ने बयान में कहा है कि दिल्ली में प्रदर्शन से पहले देश भर में मीडियाकर्मियों के मुद्दों पर जगह जगह बैठकें आयोजित की जाएंगी।

नहीं रहे वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया


वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया नहीं रहे। टिल्लन जी का पूरा नाम शिव शंकर दयाल रिछारिया है। टिल्लन रिछारिया अपने पीछे पत्नी पुष्पा, पुत्र रवि, बहू और नाती को छोड़ गए हैं। टिल्लन रिछारिया ने धर्मयुग, महान एशिया, ज्ञानयुग प्रभात, करंट, बोरीबंदर, हिंदी एक्सप्रेस, वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि, कुबेर टाइम्स आदि में काम किया था।


राजू मिश्र-

टिल्लन रिछारिया नहीं रहे। सुनकर बड़ा अजीब सा लगा। वह उज्जैन जा रहे थे। बचपन से ही उनका सान्निध्य रहा। चित्रकूट से जब भी वापसी होती, भाभी के बनाये पराठे और आचार खिलाकर ही कुतुब एक्सप्रेस में बैठने देते। हम दोनों ने बहुत यात्राएं भी की। वह जिन-जिन अखबार या पत्रिकाओं में रहे, हमको बराबर स्थान दिलवाते रहे।

परसों सुनील दुबे पर केंद्रित पुस्तक में लेख छपा देख फोन किया तो बहुत खुश हुए थे। ‘मेरे आसपास के लोग’ किताब में उन्होंने लंबी संगत का जिक्र भी किया है। अभी मुकुंद के फोन से यह मनहूस जानकारी मिली तो सहसा विश्वास नहीं हुआ। परमात्मा शिव शंभु दयाल रिछारिया उपाख्य टिल्लन रिछारिया को अपने श्रीचरणों में सबसे निकट स्थान प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।

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PANKAJ SWAMY

सातवें-आठवें दशक में जबलपुर के चर्चित अखबार ज्ञानयुग (पूर्व में हितवाद) के सह संपादक टिल्लन रिछारिया (पूरा नाम श‍िवशंकर दयाल रिछारिया) का गत दिवस निधन हो गया। वे मूलतः चित्रकूट के रहने वाले थे लेकिन यायावरी तबियत के होने के कारण उनका जबलपुर आना हुआ था। उनकी किसी भी किस्म की रचनात्मकता में समय, समाज और सभ्यता का स्पष्ट वेग रहा।

टिल्लन रिछारिया हिन्दी पत्रकारिता में उन चुनिंदा पत्रकारों में से एक रहे जिन्होंने संभवतः सर्वाधि‍क अखबारों व मैग्जीन में काम किया। हिन्दी पत्रकारिता में टिल्लन रिछारिया कांसेप्ट, प्लानिंग, लेआउट और प्रेजेंटेशन अवधारणा को शुरु करने वालों में से रहे। इसका भरपूर प्रवाह राष्ट्रीय सहारा के ‘उमंग‘ और ‘खुला पन्ना‘ में 1991 से 1995 तक देखने को मिला। भाषा की रवानी, कथ्य की कहानी, आकर्षक फोटो और ग्राफिक्स से सजे धर्मयुग, करंट, राष्ट्रीय सहारा के उमंग और खुला पन्ना के वे पन्ने हालांकि इतिहास के झरोखे से उन लोगों के जेहन में अभी भी झांकते हैं जो उस दौर के हिन्दी-प्रवाह के साथ आँख खोल कर चले और आज भी अतीत की उस श्रेष्ठता को सराहने में झेंपते नहीं।

टिल्लन रिछारिया इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप मुम्बई के हिन्दी एक्सप्रेस, करंट, धर्मयुग, पूर्वांचल प्रहरी (गुवाहाटी) वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि (नई दिल्ली) में स्थानीय सम्पादक, दैनिक भास्कर (नई दिल्ली) में वरिष्ठ सम्पादक, आईटीएन टेली मीडिया मुम्बई, एन सी आर टुडे के एसोसिएट एडिटर व प्रबंध सम्पादक रहे। फिलहाल आयुर्वेदम पत्रिका के प्रधान संपादक थे।

टिल्लन रिछारिया जबलपुर से बहुत प्यार करते थे। वे कहते थे कि जबलपुर प्रेम व आनंद का सिद्ध तीर्थ है। उनको भी इस रस राग और तिलिस्मात से भरे शहर ने अपनी छांव में कुछ समय रहने का मौका दिया। टिल्लन पूरी दुनिया घूम लिए लेकिन उनका कहना था कि गहन आत्मीयता से भरा जबलपुर शहर पल भर में ही अपना दीवाना बना लेता है। उन्होंने कभी लिखा था-‘’ हमें आये अभी एक दो दिन ही हुए थे कि दफ्तर के पास की चाय पान की दुकान में देखिए दिलफरेब स्वागत होता है।

साथियों से नाम सुनते ही पान वाले बोले... अरे टिल्लन जी आप आ गये। बम्बई से पूनम ढिल्लन जी का फोन था कि भाई साहब का ख्याल रखना। इस शहर में आपका स्वागत है, हम हैं न।.... अरे हां, राखी भेजी है आप के लिए, अभी लाकर देता हूँ।.... जबलपुर ज्यादा देर आपको अजाना नहीं रहने देता।‘’ जबलपुर में टिल्लन रिछारिया के यारों के यार में राजेश नायक, चैतन्य भट्ट, राकेश दीक्ष‍ित, ब्रजभूषण शकरगाए, अशोक दुबे थे। टिल्लन रिछारिया को श्रद्धांजलि।

9425188742

pankajswamy@gmail.com

(Source: Bhadas4media.com)

Tuesday, 25 July 2023

मजीठियाः नोएडा में दैनिक जागरण फिर लगा झटका, 24 कर्मियों को देना होगा 5.79 करोड़, देना होगा 7% ब्याज


साथियों, नोएडा से फिर एक और बड़ी खबर आ रही है। यहां के श्रम न्यायालय ने 21 जुलाई को मजीठिया के 24 मामले में कर्मियों के पक्ष में फैसला दिया है। ये राशि दो माह के भीतर देय तिथि से 7 प्रतिशत ब्याज के साथ देनी होगी। इन 24 कर्मियों की बकाया राशि 5,78,90,729 रुपये बनती है। 

7 नवंबर 2022 को 57 कर्मियों के मजीठिया की रिकवरी केस हारने के बाद से जागरण प्रबंधन की हार का सिलसिला लगातार जारी है। इसी महीने की 13 तारीख को जागरण प्रकाशन लिमिटेड के नई दुनिया मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू लेबर कोर्ट ने धनंजय सिंह को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों का अधिकारी मानते हुए उसके पक्ष में 10.38 लाख की राशि का अवार्ड पारित किया था, अदालत ने साथ ही 9 प्रतिशत ब्याज का आदेश भी दिया था। इस तरह जागरण के लिए इसी महीने में ये दूसरा झटका है। नोएडा लेबर कोर्ट के इस आदेश के बाद अब तक नोएडा के 118 और दिल्ली का एक मामला मिलाकर 119 कर्मियों के पक्ष में फैसला आ चुका है। अदालत से इन कर्मियों के पक्ष में 19 करोड़ से अधिक का अवार्ड पारित हो चुका है। जिस पर प्रबंधन को ब्याज भी देना होगा।

हर बार की तरह जागरण प्रबंधन ने इन मामलों को भी लंबा खींचने की कोशिश की, लेकिन कर्मचारियों के प्रतिनिधि राजुल गर्ग ने अदालत के समक्ष पक्ष रखते हुए उसकी इस कोशिश को भी नाकाम कर दिया। 

अवार्ड की राशि निम्न अनुसार है....

1 मुरारी शरण 3609022

2 सुरेंद्र प्रताप सिंह 1770271

3 कृष्ण मोहन त्रिवेदी 2148230

4 ललित कुमार कम्बोज 2660389

5 राज कुमार उपाध्याय 1829995

6 सत्य प्रकाश मिश्रा 1812520

7 विकास चौधरी 1882836

8 राजेन्द्र कुमार जैन 2298160

9 ललित मोहन विष्ट 1695618

10 अरुण कुमार बरनवाल 2834470

11 आशुतोष कुमार 1700666

12 त्रिलोकी नाथ उपाध्याय 4092129

13 प्रेमपाल सिंह 3304652

14 प्रशांत कुमार गुप्ता 1878559

15 भूपेंद्र सिंह 2118775

16 अनिल कुमार तिवारी 1658869

17 भगवान दास तिवारी 1725227

18 पवन कुमार दुबे 1602969

19 प्रमोद कुमार शर्मा 2731408

20 अरुण शुक्ला 1766728

21 प्रदीप कुमार ठाकुर 2341633

22 नरेंद्र चांद 2895131

23 जगजीत राणा 2946497

24 योगिनी खन्ना 4585975

Monday, 17 July 2023

मजीठियाः अब दिल्ली में जागरण को झटका, धनंजय को देने होंगे 10.38 लाख, मिलेगा 9 फीसदी ब्याज


नई दिल्ली, 17 जुलाई। साथियों, मजीठिया के रिकवरी मामले में दिल्ली से एक बडी खबर आ रही है। यहां पर जागरण प्रकाशन लिमिटेड को नोएडा के बाद एक और झटका लगा है। यहां के आईटीओ में स्थित राउज एवेन्यू लेबर कोर्ट ने 13 जुलाई 2023 को जागरण प्रकाशन लिमिटेड के समाचार पत्र नई दुनिया में कार्यरत रहे धनंजय कुमार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 10,38,192 रुपये का अवार्ड पारित किया है। इसके साथ ही अदालत ने कंपनी को इस राशि पर 9 फीसदी ब्याज देने का भी आदेश दिया है। अदालत ने साथ ही लिटिगेशन के रूप में कंपनी को एक महीने के भीतर धनंजय को 35 हजार रुपये देने का भी आदेश दिया है।

दिल्ली में कार्यरत धनंजय कुमार नोएडा और दिल्ली में जागरण प्रकाशन लिमिटेड के खिलाफ मजीठिया की रिकवरी मामले में केस लगाने वाले सबसे पहले दो साथियों में से एक थे। जागरण प्रकाशन लिमिटेड ने धनंजय को अपना कर्मचारी मानने से इनकार किया था। इसके अलावा कंपनी ने न्यायिक क्षेत्राधिकार पर भी सवाल खड़े किए थे। धनंजय के मामले में डीएलसी ने सबसे आरआरसी जारी की थी, जिसे कंपनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और केस को 17-2 के तहत लेबर कोर्ट रेफर करने की मांग की थी। जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने डीएलसी को मामले को 17-2 के तहत लेबर कोर्ट रेफर करने का आदेश दिया था।

Tuesday, 4 July 2023

बड़ी खबर; 75 अखबार कर्मियों की बर्खास्तगी गैर कानूनी, 12 फीसदी ब्याज के साथ बकाये का आदेश

 


पटना श्रम न्यायालय कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला


टाइम्स ऑफ इंडिया के 75 कामगारों एवं पत्रकारों का नौकरी से निकालने का फैसला गैर कानूनी

12 प्रतिशत सूद के साथ  बकाया भुगतान करने का आदेश


टाइम्स ऑफ इंडिया के 75 पत्रकार एवं गैर कामगारों ने पिछले 11 वर्षों से चल रहे मनिसाना और मजीठिया वेज बोर्ड के कार्यान्वयन तथा डिसमिस के खिलाफ ऐतिहासिक जीत दर्ज की है।

पटना श्रम न्यायालय में 2012 से ही चल रही सुनवाई पर न्यायाधीश श्री ॠषि गुप्ता ने अपने 140 पन्ने के जजमेंट में पत्रकार एवं कामगारों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तत्काल बकाए राशि को 2012 से ही अब तक 12 प्रतिशत सूद के साथ भुगतान करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस बकाए राशि को एक महीने के भीतर भुगतान करने को आदेश दिया है।


कामगारों की ओर से चंद्रशेखर प्रसाद सिन्हा ने बहस की । वे लगातार 2019 से लेकर 2023 तक कामगारों के पक्ष में अनवरत खड़े  रहे जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया की तरफ से आलोक सिन्हा एवं अन्य चार एडवोकेट की टीम काम कर रही थी।

पटना से दिनेश कुमार 

महासचिव 

बिहार पत्रकार संघ, 

पटना।

संयोजक, 

मजीठिया संघर्ष समन्वय समित,बिहार