Tuesday, 11 January 2022

बाजार सजा है, बिक रहे पत्रकार और संपादक!



हर खबर के देने होंगे पैसे, जितना दाम उतना काम

पैकेज नहीं लोगे तो खबर तलाशते रह जाओगे


मीडिया अब भांड हो गया है। जो चाहे, खरीद लो। बाजार सजा है। खबरों के बदले पैसे लेने का जन्मदाता पंजाब केसरी है। धीरे-धीरे लगभग सभी अखबारों ने यह ट्रेंड अपना लिया। चैनलों ने भी। विधानसभा चुनाव में पैकेज को लेकर संपादक, पत्रकारों और मार्केटिंग की टीम के बीच बैठकों के दौर चल रहे हैं। अखबारों में कालम के रेट और चैनलों में स्क्राल से लेकर सैकेंड़ों के पैकेज तैयार हो गये हैं। प्रायोजित समाचार होंगे।

ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है। पहले भी होता रहा है लेकिन होता यह था कि जो विज्ञापन देते हैं या पैकेज लेते हैं उनकी खबर बड़ी लग जाती थी और जो नहीं देते थे उनको सिंगल या दो कालम में निपटा दिया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। जो विज्ञापन देगा उसी की पालिटिकल खबर लगेगी, नहीं तो खबर तलाशते रहो। 

पंजाब केसरी के स्व. अश्विनी मिन्ना प्रायोजित खबरों के जनक माने जाते हैं। इसके बाद नया ट्रेंड शुरू किया हिन्दुस्तान के ग्रुप एडिटर शशि शेखर ने। शशि शेखर अपने अखबार में फुल पेज विज्ञापन देते हैं कि वोट दें। ईमानदारी से हिन्दुस्तान नहीं झुकेगा और फिर चुपके से रिपोर्टरों को टारगेट दे दिया जाता है। दैनिक जागरण का बुरा हाल है। उनका वश चले तो वो प्रेस नोट देने के लिए आने वाले व्यक्ति पर भी टिकट लगा दें। अमर उजाला की पालिसी बहुत खतरनाक है। अमर उजाला पहले कमजोर उम्मीदवार को खूब चढ़ाता है। उसको खूब तवज्जो दी जाएगी। विपक्षी को जोश आएगा और जब उनसे पैकेज मिल जाएगा तो कमजोर समाचारों से गायब हो जाएगा। ऐसा ही क्षेत्रवार भी होगा।

मैं अक्सर कहता हूं कि निर्दलीय उम्मीदवार लोकतंत्र की सौतेली संतान जैसी होती हैं। उनके साथ सभी जगह सौतेला व्यवहार होता है। मीडिया में भी। इसलिए उम्मीदवारों का सलाह है कि जेब भारी है तो मीडिया में छपने या दिखने की सोचना। विचार या ईमानदारी के दम पर तो छपोगे या दिखोगे नहीं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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