Thursday, 29 November 2018

पीटीआई–भाषा में छंटनीग्रस्तत कर्मी वापस आए काम पर, डाउनलोड करें हाईकोर्ट का आदेश


दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़े पैमाने पर पीटीआई–भाषा में कर्मचारियों की छंटनी पर रोक लगा दी। कोर्ट ने मैनेजमेंट की कार्रवाई पर अगले आदेश तक रोक लगाई है। यह पीटीआई–भाषा कर्मचारियों के लिए बड़ी और शुभ खबर है। फिलहाल पीटीआई–भाषा मैनेजमेंट हिंदुस्तान टाइम्स की तरह कर्मचारियों को एक धक्के में निकालने में विफल रहा है।

सुनवाई के बाद 40 पृष्ठों के इस अंतरिम आदेश के बाद 28 तारीख को छंटनी के शिकार कर्मचारी वापस काम पर लौट आए। लेकिन यह अभी पूरी जीत नहीं है। कर्मचारियों को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एकता बनाए रखनी होगी। हिंदुस्तान टाइम्स मैनेजमेंट की अदालत में हार के बाद किसी भी बड़े मैनेजमेंट की यह दूसरी हार है। अफसोस इस बात की है कि हिंदुस्तान टाइम्स के कर्मचारी अभी भी परेशान हैं क्योंकि उनकी यूनियन खत्म कर दी गई थी और पीटीआई के साथियों को यह सफलता इसलिए मिली और कामयाब हो रही है क्योंकि यहां यूनियन अभी कामयाब है।

माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की पूरी कॉपी यहां संलग्न है। आदेश की pdf फाइल डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न का path प्रयोग करें 

http://delhihighcourt.nic.in/dhcqrydisp_o.asp?pn=278404&yr=2018

[साभार: मजीठिया मंच]

Wednesday, 28 November 2018

मजीठिया वेजबोर्ड का कर्मचारी को लाभ ना देने पर भास्‍कर का बैंक खाता सीज



जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में एक बड़ी खबर चंडीगढ़ से आ रही है। यहां मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश का लाभ एक कर्मचारी को ना देने पर चंडीगढ़ के जिलाधिकारी ने डीबी कार्प का बैंक खाता सीज कर दिया। मजीठिया वेजबोर्ड मामले में यह पहली बार हुआ है जब बकाया ना देने पर किसी अखबार कंपनी का बैंक खाता सीज हुआ है। बताते हैं कि दैनिक भाष्कर के फिरोजपुर के ब्‍यूरो चीफ राजेंद्र मल्होत्रा ने फिरोजपुर में ही जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपने 24 लाख रुपये बकाये और 13 लाख रुपये ब्याज कुल मिलाकर 37 लाख रुपये की वसूली के लिए कामगार कार्यालय में क्लेम लगाया था। जिसमें उनके दावे को सही ठहराया गया और डीबी कार्प को उनका बकाया देने का निर्देश दिया गया। इस बारे में एक नोटिस भी डी बी कार्प को जारी किया गया था मगर जब कंपनी ने यह रकम नहीं दी तो उसके कार्यालय को सील करने की प्रक्रिया शुरु की गई।


राजेंद्र मल्होत्रा ने इस बारे में जिलाधिकारी फिरोजपुर बलविंदर सिंह धारीवाल को एक पत्र लिखा और उनसे निवेदन किया कि डीबी कार्प का चंडीगढ़ का बैंक खाता सीज कराया जाए। क्‍योंकि डीबी कार्प का फिरोजपुर में कोई बैंक खाता नहीं था। उसके बाद जिलाधिकारी फिरोजपुर ने चंडीगढ़ के जिलाधिकारी को एक पत्र लिखा और निवेदन किया कि क्लमकर्ता की बकाया राशि का भुगतान कंपनी नहीं कर रही है। ये रिकवरी रेवेन्यू एक्ट के तहत है इसलिए डीबी कार्प लिमिटेड के चंडीगढ़ सेक्टर 17 का आईडीबीआई बैंक का खाता सीज किया जाए। जिसके बाद डीबी कार्प का चंडीगढ़ का आईडीबीआई का बैंक खाता सीज कर दिया गया। इस कारवाई से अखबार मालिकों में जहां हड़कंप है वहीं मजीठिया क्रांतिकारियों में खुशी की लहर है।

शशिकांत सिंह 
९३२२४११३३५

IFWJ Congratulates PTI Employees for Spectacular ‘Interim Relief’

New Delhi, 28 November. Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) has congratulated the PTI Employees Union for the spectacular interim relief order from the High Court of Delhi which has stayed the illegal retrenchment of 297 employees of the PTI. In his well reasoned order Justice Harishankar has also settled the legal position that since the functions of the Press Trust of India (PTI) are very much akin to the ‘public character’ therefore, it falls in the category of the ‘State’ under article 12 of the Constitution of India.

It may be noted that the Management of the PTI, the premier news agency of India, had on 29th of September retrenched the services of 297 employees without issuing any notice to them. Moreover, the PTI management did not fulfill any of the mandatory provisions of the Industrial Disputes Act, the Factory Act or the Working Journalists Act.

Welcoming the verdict of the Delhi High Court, the IFWJ President B.V. Mallikarjunaiah and Secretary General Parmanand Pandey have asked the PTI Management to honour the most prudent order of the High Court and immediately take back all employees on duty and pay them their illegally withheld wages. They have urged that the managements of other media organisations to take a lesson from this order of High Court and desist from hiring and firing the employees as per their whims.

The IFWJ has been fighting shoulder to shoulder with the PTI employees union. In a similar statement the President of the Delhi Union of Working Journalists (DUWJ) Alkshendra Singh Negi has asked the Central and State governments to forthwith intervene to stop the victimisation of the employees in different media organisations particularly for demanding the implementation of the Majithia Award.


Sribhagwan Bhardwaj
Office Secretary: IFWJ

Tuesday, 27 November 2018

दिल्ली हाईकार्ट ने पीटीआई से निकाले गए 297 कर्मियों के मामले में स्‍टे दिया



न्यूज एजेंसी पीटीआई के मैनेजमेंट द्वारा जारी किए गए रिट्रेंचमेंट के अवैध आदेश पर हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया है। इस मामले के अंतिम फैसले तक यह स्टे जारी रहेगा। पीटीआई यूनियन की इस बड़ी न्यायिक जीत पर कर्मचारियों में प्रसन्नता है। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी जल्द ही कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हो जाएगी।

मीडिया ट्रेड यूनियनिज्म के इतिहास में पहली बार इस तरह का आदेश फेडरेशन ऑफ पीटीआई इम्प्लाइज यूनियंस ने दिल्ली हाईकोर्ट से जीता है। फेडरेशन के रिट पिटीशन संख्या 10605/2018 पर आज अपना आदेश पारित करते हुए न्यायमूर्ति श्री हरि शंकर ने मैनेजमेंट के रिट्रेंचमेंट के 29 सितंबर 2018 के आदेश पर रोक लगा दी।

इसके परिणामस्वरूप पीटीआई के सभी 297 कर्मचारी अगले 1 से 2 दिन में अपनी ड्यूटी पर आ जाएंगे। सरकार के किसी भी हस्तक्षेप के बिना फेडरेशन ने यह मामला अपने पक्ष में जीत लिया। सरकार को इस बात पर स्वयं भी विचार करना चाहिए कि इतने बड़े अन्याय पर वह आंखें बंद कर क्यों मौन थी।

सरकार ने एक बयान तक नहीं जारी किया। वह तो भला हो माननीय उच्च न्यायालय का जिन्होंने कर्मचारियों के हित में यह फैसला दिया। भला हो फेडरेशन की लीडरशिप का, जिसके महासचिव बलराम सिंह दहिया अध्यक्ष एजी मोहन उपाध्यक्ष सागर T Bhurke, संयुक्त सचिव अतनु पाल एवं Bhorker तथा कोषाध्यक्ष जेएस रावत हैं, ने एकजुट होकर कर्मचारियों के हित में यह लड़ाई लड़ी और जीत ली है।

इस लड़ाई को खत्म करने के लिए या यूं कहिए कि ध्वस्त करने के लिए मैनेजमेंट का कुछ दलाल पहले दिन ही 4 अक्टूबर को असिस्टेंट लेबर कमिश्नर के ऑफिस पहुंच गए थे और यदि वहां यह मसला शुरू हो गया होता तो आज माननीय उच्च न्यायालय से यह राहत नहीं मिली होती।

फेडरेशन आफ पीटीआई इम्प्लाइज यूनियन ने मैनेजमेंट को पत्र दे दिया है कि सारे कर्मचारियों को कल से ही ड्यूटी पर वापस ले लिया जाए अन्यथा यह माननीय न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन होगा।

टाइम्स आफ इंडिया में छपी बकवास खबर


चारधाम यात्रा को बताया सबसे खतरनाक यात्रा
चारधाम यात्रा को बदनाम करने की कोशिश

टाइम्स में 25 नवंबर को फ्रंट पेज पर शिवानी आजाद की एक बकवास खबर चारधाम यात्रा: इंडियाज डेडलीस्ट पिलग्रिमेज? प्रकाशित की गई है। इसमें एक लंबा चौड़ा इंट्रो दिया गया है कि प्राचीन समय के समय लोग जब चारधाम यात्रा पर जाते थे तो घने जंगलों व अन्य प्राकृतिक आपदाओं में जान खो देते थे लेकिन आज भी हालात नहीं बदले हैं। चारधाम यात्रा के दौरान मौतों का सिलसिला जारी है। नवम्बर माह तक चारधाम में 106 लोगों की मौत हो गई। इसकी तुलना अमरनाथ यात्रा से की गई है। गजब की बात है, कि रिपोर्टर को यह पता नहीं कि अमरनाथ यात्रा पर दो लाख लोग भी नहीं जाते हैं और उनका मेडिकल होता है और अधिकांश स्वस्थ लोग जाते हैं। कैलाश मानसरोवर इस वर्ष महज 4 हजार ही लोग गए। वो भी पूरी तरह से स्वस्थ घोषित होने के बाद। जबकि मोक्ष की तलाश में चारधाम जाने वाले यात्रियों की संख्या अमरनाथ की तुलना में आठ से दस गुणा अधिक है। इस यात्रा में बड़ी संख्या में बुजुर्ग जाते हैं। लगभग साढ़े ग्यारह हजार फीट की चढ़ाई आसान नहीं होती है। यह सबको पता है। मैदानों से जाने वाले यात्री चार हजार फीट की उंचाई पर भी हांफने लगते हैं। जब सबको केदारनाथ धाम की हाइट का पता है तो उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

मैदान के प्रदूषण से जंग लगे फेफड़ों को एक्लीमेटाइज होने में समय लगता है जबकि सभी चाहते हैं कि एक सप्ताह में चार धाम की यात्रा हो जाए। बाडी साथ नहीं देती है इसलिए हार्ट अटैक या दम फूलने की समस्या होती है। जो लोग मरे हैं उनमें अधिकांश बुजुर्ग हैं। हां, यह सही बात है कि मेडिकल सुविधाएं सीमित हैं। लेकिन 20 लाख यात्रियों का मेडिकल करना संभव नहीं है। बेहतर है कि तीर्थयात्री अपना मेडिकल व आक्सीजन लेकर जाएं। इस संबंध में गुप्तकाशी और सोनप्रयाग से ही तीर्थयात्रियों को आगाह किया जाता है। रिपोर्टर ने लिखा है कि अमरनाथ में इस वर्ष 31 लोगों की मौत हुई और पिछले साल 29। अगर आकलन किया जाए तो अमरनाथ में चारधाम की तुलना में अधिक मौत हुई हैं। औसत के आधार पर दो लाख पर 31 यानी बीस लाख पर 300 मौत। ऐसे में तो रिपोर्टर और डेस्क को चाहिए था कि अमरनाथ यात्रा पर स्टोरी का इंट्रो व हेडिंग बनाते लेकिन न्यूज को अनावश्यक संसेशनल बनाने के लिए इस तरह की डरावनी हेडिंग दी गई है। और ऐसे ही इंट्रो लिखा गया है। खबर बहुत ही स्पष्ट है कि इस बार चारधाम यात्रा में 106 लोग मरे और अमरनाथ में 31। लेकिन बेवजह का स्लांट देकर खबर को तूल देने की कोशिश की गई है जो कि निंदनीय है साथ ही टाइम्स के एथिक के खिलाफ भी। टाइम्स ग्रुप पॉजिटिव न्यूज में विश्वास करता है ना कि ऐसी बकवास न्यूज में।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

दो पत्रकारों ने बदला पहाड़ का इतिहास


अर्जुन बिष्ट और मोहित डिमरी से प्रेरणा लें पत्रकार
प्रेस क्लब में दारू पीने और जुआ खेलने से नहीं होगा प्रदेश का उद्धार

घेस जहां से आगे नहीं देश, यानी चमोली जिले का सीमांत गांव। जहां कल ही 70 साल बाद बिजली पहुंची। इस गांव में आज खुशहाली हैं। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और केंद्रीय मंत्री श्रीपद नायक इस गांव तक पहुंचे और बिजली की शुरूआत की। गांव बिजली की दूधिया रोशनी से जगमग हो गया। इस गांव के लगभग 300 किसान अब खुशहाल हैं और वहां जड़ी बूटी शोध संस्थान बनने से यहां के किसानों को और लाभ मिलेगा। इस सीमांत गांव में खुशियों की सौगात लाने का काम किया है अपने कर्मचारियों को वेतन न देने के लिए कुख्यात राष्‍ट्रीय सहारा के वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन सिंह बिष्ट ने। कई वर्षों की मेहनत और किसानों के साथ बैठकों के दौर के बाद बिष्ट को यह सफलता मिली। पहले दिये गये बीजों को किसान दाल बना कर खा गये। लेकिन पत्रकार बिष्ट जी निराश नहीं हुए और आज की तारीख में वे एक सच्चे पत्रकार की तर्ज पर समाज के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने अपने गांव को पहाड़ को आबाद करने का आईना बना लिया है। मुझे गर्व होता है कि मैने बिष्ट जी के साथ पत्रकारिता की। ऐसे पत्रकार को मेरा सलाम।

दूसरे पत्रकार बहुत ही युवा हैं, लेकिन उनकी सोच देहरादून के प्रेस क्लब में दारू पीने और ताश खेल कर दिन बिताने वाले तथाकथित बड़े पत्रकारों से कहीं आगे है। नाम है मोहित डिमरी। यह भी संयोग है कि मोहित भी सेलरी और लोगों का पैसा हड़पने वाले सहारा ग्रुप के पत्रकार हैं। मोहित एक ओर स्थायी राजधानी गैरसैंण की मुहिम चला रहे हैं तो दूसरी ओर रुद्रप्रयाग की जनता के हक-हकूक की लड़ाई जनाधिकार मंच के बैनर तले लड़ रहे हैं। उन्होंने हाल में आल वेदर रोड की चपेट में आए सैकड़ों व्यापारियों और लोगों के घरों का मुद्दा उठाकर यह सवाल खड़ा किया है कि सरकार वोट बैंक के लिए मलिन बस्तियों पर अध्यादेश ला सकती है। लेकिन पहाड़ को बचाने के लिए नहीं। क्योंकि सरकार को पता है कि वहां लोगों की मजबूरी है कि कांग्रेस या भाजपा को ही वोट दें। मोहित का विजन बहुत अच्छा है। वह पूरे प्रदेश में स्थायी राजधानी और अन्य ज्वलंत मुद्दों को भी उठा रहे हैं। मुझे इस युवा पत्रकार पर भी नाज हे, जो अपने प्रदेश और गांवों की खुशहाली के लिए कठिन मेहनत कर रहा है। मैं मोहित के इस समर्पण और उसकी पहाड़ के प्रति भावना का सम्मान करता हूं और उसे भी सैल्यूट करता हूं। कई और पत्रकार साथी प्रदेश के हित में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उनका जिक्र मैं दूसरे लेख में करूंगा।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Saturday, 24 November 2018

मी टू के जमाने में अफसर बना मसीहा


राष्‍ट्रीय सहारा देहरादून में आउटसोर्स कर्मी बनी चर्चा का विषय
महिलाकर्मी को लेकर अधिकारी की कई से हो चुकी है झड़प

सहारा के मीडियाकर्मी भुखमरी के दौर से गुजर रहे हैं। उन्हें समय पर वेतन नहीं मिल रहा है और मिल भी रहा है तो स्लैब बनाकर मिल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक सहारा को मीडिया कर्मचारियों का लगभग 100 करोड़ की देनदारी है यानी बैकलॉग बढ़ता जा रहा है। ऐसे में देहरादून यूनिट का एक अधिकारी आउटसोर्स पर एक युवती को ले आया। युवती को अखबारी ज्ञान नहीं है। अधिकारी इस युवती पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं। बताया जाता है कि अधिकारी उस युवती को अपने बाद सारे अधिकार देना चाहता है। इसलिए वहां अक्सर टकराव होता है।

यह अधिकारी रिपोर्टिंग के एक चीफ से, एकाउंट प्रभारी से और विज्ञापन प्रभारी से भिड़ चुका है। कारण, यही है कि इस युवती को काम सिखाया जाएं। सूत्रों का कहना है कि जब युवती को काम ही नहीं आता तो उसे रखा ही क्यों गया? सहारा में पहले ही स्टाफ की भारी कमी है। अधिकांश लोग वेतन न मिलने और अनियमित वेतन की वजह से नौकरी छोड़ चुके हैं। जो कर्मचारी काम कर रहे हैं उन पर काम का बोझ बढ़ गया है। ऐसे में कोई भी इस युवती को काम सिखाने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन अधिकारी चाहता है युवती को हर हाल में काम सिखाया जाए। अखबार के सूत्रों का कहना है कि युवती से यह लगाव समझ से परे है। जबकि इस यूनिट में कई अन्य को भी आउटसोर्सिंग से भर्ती किया गया है लेकिन वे अपने काम में पारंगत हैं तो ऐसे में युवती को किसलिए बिना अनुभव के नियुक्ति दी गई है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

अनूप गैरोला एक सशक्त व सहृदय पत्रकार



धाद ने किया गैरोला को याद, दी भावभीनी श्रद्धांजलि
मेरे भड़कने और लड़ने की प्रवृत्ति पर मुझे सीख देते थे गैरोला जी
अपनी माटी और थाती के लिए समर्पित थे अनूप

वरिष्ठ पत्रकार अनूप गैरोला से मेरा परिचय लगभग आठ साल पुराना है। वो राष्टीय सहारा में चीफ सब एडिटर थे और मैं दिल्ली से इसी पोस्ट पर तैनात होकर आया था। मैं पहली बार डेस्क पर काम कर रहा था, इससे पूर्व मैं रिपोर्टिंग में था। ऐसे में पेजीनेशन की समस्या तो थी ही साथ ही सहारा फांट की भी दिक्कत थी। अनूप गैरोला जी ने मुझे बहुत सहयोग किया और मुझे यह कहने में संकोच नहीं हो रहा है कि मैं उनसे पेजीनेशन सीखा। वो गजब का पेज लेआउट बनवाते थे। जहां उन्हें लगता था कि आपरेटर सही पेज नहीं बना रहा तो वो उसके कंधे पर हाथ रख उसके माउस पर हाथ के उपर हाथ रख पेजीनेशन करवाते थे।
आपरेटर के साथ कोई भी चीफ सब इस तरह का सहृदय व्यवहार करे, यह मैंने पहली बार देखा और महसूस किया। साल-दर-साल मैंने अनूप गैरोला जी के साथ काम किया, लेकिन उनको कभी किसी पर भड़कते नहीं देखा, जबकि मैं सहारा में चपरासी से लेकर संपादक तक लड़ने-भिड़ने के लिए बदनाम हो चुका था। अनूप मुझे कई बार समझाते भी थे और मेरी गलती भी गिनाते थे। उनसे मुझे बहुत सीखने को मिलता। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में मैं चुनाव का प्रभारी था। बाकी सब मेरे समकक्ष साथी और डीएनई तक जल-भुन रहे थे, लेकिन अनूप ने मेरा पूरा साथ दिया। हम सुबह दस बजे से लेकर रात दो बजे तक काम करते थे। कई बार अनूप गैरोला से मतभेद भी हुए लेकिन मनभेद नहीं हुआ। हाल में जब मैं उनसे मिला तो अपनी बेटी को चश्मा दिलाने के लिए नवज्योति आई सेंटर पर आए थे। मैं कार में था, उन्होंने दूर से मुझे देखा तो मेरी ओर खुद ही चले आए। इसके बाद मुलाकात सीएमआई अस्पताल में ही हुई। कुछ दिनों बाद उनका भांजा अंकित मिला तो उसका कहना था कि हालत सुधर रहे हैं और उन्हें जल्द डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। इस बीच रक्तप्रवाह रुकने पर डाक्टरों ने उनके पांव का पंजा भी काट दिया था। वो घर लौट आए लेकिन भावुक व संवेदनशील होने से संभवत उन्हें सदमा लगा और वो इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनकी यादें और उनकी सीख मेरे लिए एक सबक रहेंगी। मुझे यह दुख भरी खबर दूरदर्शन में मेरी साथी नेहा बिष्ट ने दी तो विश्वास ही नहीं हुआ। तब मैं पौड़ी अपने गांव गया था, मैंने नीलकंठ भट्ट से बात की तो इसकी पुष्टि हुई। मुझे एक बड़ा आघात लगा। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दें और उनके परिवार को इस असीम दुख को सहने की शक्ति प्रदान करें।

सामाजिक व सांस्कृतिक धरोहर की प्रतीक धाद संस्था ने भी उनको उज्ज्वल रेस्तरां में शोकसभा कर श्रद्धांजलि दी। संस्था के संस्थापक लोकेश नवानी ने कहा कि अनूप गैरोला एक अच्छे और जनपक्षीय पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे। पत्रकारिता जगत ही नहीं सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों के लिए भी यह अपूरणीय क्षति है। धाद के विजय जुयाल जी ने कहा कि अनूप पहाड़ के लिए चिंतित थे और सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर उन्हें बहुत अच्छी समझ थी। उनके आकास्मिक निधन से धाद संस्था को भी धक्का लगा है और हम उनको भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं। उनके परिवार के साथ दुख की इस घड़ी में हम साथ हैं।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

Sunday, 18 November 2018

मजीठिया मांगने पर नईदुनिया ने ड्यूटी से रोका, कर्मी ने की पुलिस अधीक्षक को शिकायत, पढ़े पत्र




प्रति

श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय
पूर्व जिला इंदौर एमपी


विषय में मजीठिया केस लगाएं होने कारण मुझे कार्यस्थल पर जाने से रोकने जाने के संबंध में में शिकायत। 

महोदय

आज दिनांक 12/11/2018 को मैं अपने कार्य समय 8:40 पर कार्य स्थल पर ड्यूटी गया। वहां मैन गेट पर सिक्योरिटी गार्ड राजेश शुक्ला विभाग उदय ने अंदर जाने नहीं दिया, तब मैंने टाइम ऑफिस में बात की तो उन्होंने कहा कि सिक्योरिटी गार्ड को वासुदेव नायर जी व शिवम जी ने निजी आदेश दिया है कि मुझे अभिषेक देव वृक्ष यादव को ड्यूटी पर नहीं आने दिया जाए।

जबकि मैं पूर्व में ली गई मेरी बीमारी की छुट्टी की जानकारी आपको व इन्‍हें दे चुका था, ये लोग प्लांट पर अपनी मनमानी कर मुझे परेशान कर रहे हैं व मुझे अपने कार्य स्थल पर कार्य करने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। अतः निवेदन है कि इन्हें मनमानी करने से व मुझे रात बिरात परेशान करने से रोका जाए। कार्य स्थल पर मुझे रात में ड्यूटी कर, साथ ही ड्यूटी कार्य करने दिया जाए। मुझे मुझे दो दिनों से बहुत परेशान कर रहे हैं। मैं 2 दिन से कार्य समय में टाइम ऑफिस में हूं, लेकिन मुझे ड्यूटी करने नहीं दिया जा रहा है, व कार्य करने से रोका जा रहा है।
अतः रात में आते या जाते समय अथवा ड्यूटी में मेरे साथ कोई दुर्घटना या कोई हमला होता है तो वासुदेव नायर जी और शिवम कुमार जी जिम्मेदार होंगे। श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय इंदौर पूर्व प्राथमिक सूचना दे रहा हूं, कृपया उचित जांच कर कार्रवाई की जाए।

अभिषेक देवराज यादव
पिता देव रक्षा यादव
पता डबल ई 25 बी ज्ञानशीला सुपर सिटी सिंगापुर टाउनशिप
इंदौर 453771

अखबार और चैनल पत्रकारों को नहीं दे रहे हैं पर्याप्त वेतन: न्यायमूर्ति चंद्रमौलि

नई दिल्ली। 52वें राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर के मौके पर भारतीय प्रेस परिषद की ओर से पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वालों को सम्मानित करने के लिए नई दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद ने कहा कि  मीडिया के सदस्यों के मौलिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन कर रहे है। अखबार और चैनल पत्रकारों को पर्याप्त वेतन नहीं देते।

पत्रकारों को अच्छा जीवन स्तर बनाए रखने के लिए समुचित वेतन चाहिए। श्रमजीवी पत्रकार कानून का पालन कम, उल्लंघन ज्यादा हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह समझना बहुत जरूरी है कि पत्रकार एक मनुष्य भी होता है। उसकी सुरक्षा और उसके अधिकारों का सम्मान बहुत आवश्यक है, तभी पत्रकार लोकतंत्र का सार्थक एवं सशक्त चौथा स्तंभ बन सकता है।

Friday, 16 November 2018

सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम खुला पत्र



अपर मुख्य सचिव आबकारी से अपील उत्तरांचल प्रेस क्लब में अवैध शराबखाने की जांच हो
उत्तरांचल प्रेस क्लब बना शराबियों और दलालों का अड्डा
पदाधिकारी दलाली में जुटे, गैर पत्रकारों को बना दिया सदस्य
सोसायटी रजिस्ट्रार क्लब के सभी सदस्यों के दस्तावेजों की करें जांच
प्रेस क्लब के पदाधिकारियों की संपत्ति की जांच हो
प्रशासनिक तौर पर गठित हो प्रेेस क्लब मानीटरिंग समिति

बुधवार दोपहर देहरादून के उत्तरांचल प्रेस क्लब में गया। पूर्व सैनिकों की पीसी थी। इसके बाद अच्छा-खासा कहीं और जाने के लिए तैयार हो गया था कि सोचा श्री लोकेश नवानी जी को फोन कर लूं। उन्होंने कहा कि कुछ देर में वे भी प्रेस क्लब पहुंच रहे हैं। सो, क्लब के बाहर बैठ गया। दीवार पर प्रेस क्लब के नये सदस्यों का नाम था। कई बार तलाशा मेरा नाम नहीं था, जबकि ऐसे लोगों को सदस्य बना दिया गया जिनका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं है या फिर अखबार फाइल कापी ही छपती है। उदाहरणत राष्ट्रीय सहारा के चाल्र्स एंथोनी को क्लब का सदस्य बना दिया जबकि वो मार्केटिंग में है। इसी तरह से कई सदस्य और भी हैं। स्वाभाविक है कि मुझे गुस्सा आ गया और मैंने जमकर हंगामा किया और क्लब के दरवाजे पर एक लात भी मारी। एक चिरकुट सा व्यक्ति जिसके मुंह से शराब की गंध आ रही थी, वो मुझसे उलझने लगा। मैंने उसे उसकी औकात के अनुसार तू-ता से बात की। वह कहता है कि आपत्ति करो। मैं पूछता हूं कि आपत्ति किसलिए? क्या मुझे प्रेस क्लब से मोहर लगवानी होगी कि मैं पत्रकार हूं?

खैर झगड़ा करना तो मेरी फिदरत है। झगडालू तो हूं, पर सही बात पर झगड़ता हूं। दरअसल मुझे इसलिए सदस्य नहीं बनाया जा रहा है कि क्योंकि मैं अन्याय नहीं सहता हूं। गलत बात का विरोध करता हूं। जो चिरकुट मुझसे बहस कर रहा था तो मैंने उसे पूछा कि चारु चंद्र चंदोला जी को श्रद्धांजलि गुपचुप ढंग से दी। क्या उनके परिजनों को पांच लाख रुपये की इंश्योरेंस राशि दी गई जिसके वो हकदार थे। नहीं। दो बार प्रेस क्लब के अध्यक्ष रहे अनूप गैरोला एक निजी अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे हैं लेकिन प्रेस क्लब ने कोई मदद नहीं दी। जब दूरदर्शन का कैमरामैन अच्युतानंद साहू नक्सली हमले में मारा गया तो मैंने स्वयं प्रेस क्लब के अध्यक्ष भूपेंद्र कंडारी से श्रद्धांजलि सभा की बात कही, लेकिन वो टाल गया।

प्रेस क्लब दारू बाजों का अड्डा है। मुझे यह नहीं मालूम कि प्रेस क्लब के पास बार चलाने का लाइसेंस है या नहीं? इस संबंध में आपसे अनुरोध है कि यदि प्रेस क्लब के पास लाइसेंस नहीं है तो बार को अविलंब बंद किया जाए। आजकल निकाय चुनाव चल रहे हैं और राज्य निर्वाचन आयोग चाहकर भी प्रेस क्लब के इस अवैध व दलाली का अड्डे बने बार पर छापा नहीं मार सकता। यहां भारी मात्रा में शराब है और पत्रकारों के साथ उम्मीदवारों की साठगांठ भी यहीं बार में होती है। प्रेस क्लब पत्रकारों के हितों के लिए बनाया गया लेकिन यहां पत्रकारों के हित से अधिक निजी हित होते हैं। प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने बड़ी चालाकी से हंस फाउंडेशन को और पत्रकारों को ठगने का काम किया है। होना यह था कि प्रेस क्लब के माध्यम से पत्रकारों व उनके परिवार का स्वास्थ्य बीमा हो, लेकिन क्लब के चालाक पदाधिकारियों ने यह फंड 50 लाख का था, क्लब के नाम करवा दिया ताकि वे मनमर्जी से इसका आवंटन कर सकें। इसी तरह से जो हेल्थ कैंप लगाया जाता है, उसमें पत्रकारों के परिजनों से भी टेस्ट के पैसे लिए जाते हैं जबकि कई अस्पताल निशुल्क जांच शिविर आयोजित करने को तैयार हैं। भूपेंद्र कंडारी राष्ट्रीय सहारा में कार्यरत होते हुए भी महंत इंद्रेश की मैग्जीन से जुड़े हुए हैं, वह चाहते तो इंद्रेश अस्पताल से समझौता करवा सकते थे कि पत्रकारों व उनके परिजनों का इलाज इंद्रेश अस्पताल में होगा और पत्रकारों को इलाज पर इतने प्रतिशत तक छूट मिलेगी, लेकिन वो कोई कष्ट ही नहीं उठाना चाहते। अधिकांश पदाधिकारी भी दलाली के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में प्रेस क्लब के क्रियाकलापों की जांच होनी चाहिए। इसके अलावा एक प्रशासनिक मानीटिरिंग कमेटी भी होनी चाहिए कि पत्रकार कहीं प्रेस क्लब की आड़ में गोरखधंधा तो नहीं चला रहे। पदाधिकारियों व बार में दिन भर बैठने वाले लोगों की जांच भी होनी चाहिए कि गैर पत्रकार या असामाजिक तत्व यहां किसलिए डेरा डाले रहते हैं?

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

IFWJ demands a Commission for in-depth study of Media


16 Nov, 2018: On the occasion of the National Press Day, different units of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) today resolved to press for their long standing demand that the Government of India must immediately setup a Media Commission to study the workings of the media, which includes the press, electronic and web portals etc; The IFWJ believes that the authentic study of the Media Commission will help the enactment of a comprehensive Working Journalists Act.

The National Press Day was observed across the country and the journalists expressed their apprehensions that the contract system of appointment of media persons without any security cover of the labour laws would definitely j further jeopardize the freedom of the media. Indian Federation of Working Journalists has always been of the view that the vulnerability of the journalists is the real danger to the freedom of speech and expression.   

In a statement the IFWJ President B.V. Mallikarjunaiah has asked the Government to replace the present Press Council of India with an effective Media Council which can lead the journalist community from the front by setting an example. He said that the present setup of the Press Council of India does not inspire any confidence among the journalists because its constitution and representation is shady and opaque. He has also demanded that the Government should constitute a Wage Board for the media employees because the wages of average mediapersons are mere pittance and they have become the most exploited section of the society without any proper compensation.

Parmanand Pandey
Secretary-General: IFWJ

Download करें, मजीठिया वेजबोर्ड लागू करने के हाईकोर्ट के आदेश को


आदेश में कहा कि तलवार से ज्यादा ताकतवर होती है कलम 

नैनीताल हाईकोर्ट से राज्य के प्रिंट मीडिया से जुड़े पत्रकारों के लिए अच्छी ख़बर आई है। हाईकोर्ट ने सरकार को राज्य में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू करने का आदेश जारी किया है। राज्य में काम कर रहे पत्रकारों को लेकर हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह श्रमजीवी पत्रकार और अन्य मीडियाकर्मियों के लिए जारी केंद्र की 11 नवंबर, 2011 की अधिसूचना का पालन कराएं। साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य में मजीठिया आयोग की सिफारिशों को लागू करने का भी आदेश दिया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार को कहा है कि आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा की तर्ज में उत्तराखंड में भी पत्रकार कल्याण कोष के लिए नियमावली तैयार करें और पत्रकारों की पेंशन बढ़ाने के साथ महंगाई के मानकों को भी पूरा सरकार करे ताकि पत्रकार निर्भीक होकर कार्य कर सकें।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि पत्रकारों के लिए पेंशन, हेल्थ स्कीम, हाउसिंग स्कीम का लाभ भी दें जिसका नियंत्रण राज्य के प्रमुख मुख्य सचिव के पास होगा। हाईकोर्ट ने कहा है कि कलम की ताकत तलवार से ज्यादा ताकतवर होती है। बता दें कि पत्रकार रविंद्र देवलियाल ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था, जिसमें पत्रकारों को आए दिन आने वाली परेशानियों की बात कही थी। साथ ही उन्होंने इस पत्र के माध्यम से पत्रकारों को पेंशन सुविधा देने की मांग भी की थी। कोर्ट ने पत्र का संज्ञान लिया था और इस पत्र को जनहित याचिका के रुप में स्वीकार कर लिया था। इस पर यह फैसला आया है।

WPPIL No. 208 of 2018 J