Thursday, 31 May 2018

मजीठिया: जागरण व उजाला ने कोर्ट में मुंह की खाई

दैनिक जागरण हिसार के 41 कर्मियों के टर्मिनेशन का मामला

पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने नहीं दिया स्टे

लेबर कोर्ट में गवाही के लिए 5 जुलाई का समय तय

बार-बार अवसर देने के बाद भी जवाब न देने पर प्रबंधन का बचाव का अधिकार खत्‍म


हिसार। दैनिक जागरण हिसार के 41 कर्मियों के टर्मिनेशन  मामले में 31 मई का दिन बहुत अहम था। सभी की नजरें न केवल पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर थीं, बल्कि हिसार लेबर कोर्ट में भी महत्वपूर्ण कार्रवाई होनी थी। प्रबंधन को कई मौके देने के बाद जवाब देने का ये अंतिम दिन था। उधर प्रबंधन ने सरकार के रिफरेन्स पर स्टे के लिए हाई कोर्ट में केस लगा दिया था, जिसकी तारीख भी 31 मई थी। कर्मचारियों को इसकी जानकारी देर शाम तक मिल गई थी। दोनों जगह के लिए दो टीम बनायी गई। चंडीगढ़ में विमल उपाध्याय भी हाई कोर्ट में मौजूद रहे। इस सारी मेहनत का नतीजा कर्मचारियों के पक्ष में रहा तथा हाई कोर्ट में प्रबंधन को स्‍टे नहीं मिला और 23 जुलाई की तारीख लग गई।
इधर हिसार में सुबह प्रबंधन की तरफ से सचिन और एचआर कर्मी पेश हुए। उन्होंने हाई कोर्ट में केस होने का हवाला दिया तो जज ने केस को दोपहर बाद सुनने का फैसला किया। दोपहर बाद जब जज ने प्रबंधन से हाई कोर्ट की कार्रवाई पूछी तो सचिन ने बताया कि स्‍टे नहीं मिला। इस पर जज ने हमारी क्‍लेम स्‍टेटमेंट का जवाब मांगा। सचिन ने कहा कि हमारा वकील तो चंडीगढ़ में है, जवाब तो नहीं दे सकते। इतना सुनते ही जज ने कहा कि एक घंटे बाद आ जाना और आदेश पढ़ लेना। आखिर जज ने दोपहर बाद करीब 3.40 बजे अपना फैसला सुना ही दिया।
लगभग ढाई पेज के फैसले में जज ने केस के हर पहलू को लेकर बातें स्‍पष्‍ट की हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लेकर सरकारी पत्र और फिर सरकार की तरफ से भेजी गई संशोधित अर्जी तक का हवाला देकर प्रबंधन को जवाब देने के लिए दिए अवसरों का भी जिक्र किया गया है। उसमें प्रबंधन के वकील द्वारा पिछली तारीख को दिए बयान को भी हाईलाइट किया गया है कि अगली तारीख पर जवाब न देने पर प्रबंधन का बचाव पेश करने का अवसर खत्‍म हो जाएगा और इस पर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी। अब अगली तारीख 5 जुलाई 2018 की तय हुई है, इस दिन कर्मचारी पक्ष की गवाही होगी। दैनिक जागरण हिसार के महाप्रबंधक कोर्टरुम में उपस्थित नही हुए, लेकिन बचते बचाते परिसर में नज़र जरूर आये।

देश भर के मजीठिया क्रांतिकारियों को एक और राहत


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने  गुजरात हाईकोर्ट के ऑर्डर को मानने से किया इनकार

अमर उजाला की हाईकोर्ट में सबसे बड़ी हार

मजीठिया वेज बोर्ड से बचने के हर संभव प्रयास में जुटे अमर उजाला प्रबंधन को इस मामले में अब तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अमर उजाला की उस रिट पिटीशन को खारिज कर दिया है जिसमें कंपनी प्रबंधन ने डिप्टी लेबर कमिश्नर मुरादाबाद द्वारा 17(2) में लेबर कोर्ट बरेली को किया गया रेफ्रेंस डीएलसी के क्षेत्राधिकार से बाहर का मामला बताते हुए इसे गलत ठहराया था।

गुजरात हाईकोर्ट ने दिव्य भास्कर काॅर्प के मामले में जो राहत दी थी उसी का हवाला देते हुए अमर उजाला ने इस केस में अपनी पूरी ताकत झोंक दी ताकि रेफ्रेंस को खारिज कराया जा सके। इसके लिए अमर उजाला प्रबंधन ने हाईकोर्ट के दो वकीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट के भी दो वकीलों को जिरह के लिए खड़ा किया लेकिन राज्य सरकार के विद्वान एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल की दलीलों के सामने अमर उजाला के वकीलों को एक नहीं चली। मनीष गोयल ने इस मामले पर वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 और सुप्रीम कोर्ट के कई अहम जजमेंट का हवाला देते हुए एक्ट की धारा-17 का बारीकी से उल्लेख किया। न्यायाधीश जस्टिस मनोज मिश्र संतुष्ठ हुए। उन्होंने फैसला सरकार और कर्मचारियों के हित में किया। कर्मचारियों के लिए ये बड़ी जीत है। इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में मजीठिया मिलने का रास्ता साफ हो गया है। साथ ही अन्य राज्यों के कर्मचारियों को भी इस आदेश का लाभ मिलेगा।

प्रकरण समझिए और जानिए क्या थी अमर उजाला प्रबंधन की मांग-
अमर उजाला मुरादाबाद में तैनात सीनियर सब एडिटर ने सेक्शन 17(1) में डीएलसी मुरादाबाद के समक्ष क्लेम लगाया। दोनो पक्षों के बीच कैटेगरी का विवाद उठा। राज्य सरकार से प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए डीएलसी ने 17(2) के तहत क्लेम श्रम न्यायाल बरेली को रेफर कर दिया। कंपनी प्रबंधन ने हाईकोर्ट में कहा कि डीएलसी सिर्फ 17(1) के तहत क्लेम की सुनवाई कर आरसी जारी करने की प्रक्रिया निभा सकता है। 17(2) में क्लेम रेफर करना उसके क्षेत्राधिकार से बाहर है। दोनो पक्षों में यदि कोई विवाद है तो क्लेमकर्ता या डीएलसी इस मामले को पहले राज्य सरकार के पास भेजेंगे। राज्य सरकार फैसला लेगी फिर क्लेम लेबर कोट रेफर किया जाएगा। इसके लिए गुजरात हाईकोर्ट के दिव्य भास्कर समेत कई मामलों का भी हवाला दिया गया।

सरकारी वकीलों ने पेश की जोरदार दलील-
राज्य सरकार के विद्वान एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने न्यायालय को बताया कि एक्ट की सेक्शन-17 के प्रावधानों को सिंगल स्कीम के रूप में गठित किया गया है। 17(1) में कर्मचारी बकाया राशि के भुगतान के लिए राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकरण (लेबर कमिश्नर, डिप्टी लेबर कमिश्नर या अन्य जो भी) के समक्ष क्लेम लगाएगा। संतुष्ट होने पर राज्य सरकार आरसी जारी करने की प्रक्रिया चलाएगी। 17(1) की सुनवाई के दौरान विवाद होने पर वही अधिकारी 17(2) में क्लेम लेबर कोर्ट रेफर करेगा। 17(3) में लेबर कोर्ट अपना आदेश राज्य सरकार यानि उसी अधिकारी को फाॅरवर्ड करेगी। यदि बकाया राशि है तो पुनः 17(1) के तहत आरसी की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। मनीष गोयल ने हाईकोर्ट को यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा 12 नवंबर 2014 को जारी अधिसूचना में डीएलसी को ये अधिकार प्राप्त हैं कि वह सेक्शन-17 के सब-सेक्शन (1) में आरसी जारी कर सके और सब-सेक्शन (2) में लेबर कोर्ट को क्लेम रेफर कर सके।फिलहाल जिस जिस कम्पनी के मालिकान गुजरात हाईकोर्ट का आर्डर लगाकर ये दावा कर रहे हैं कि डीएलसी को17 (2) में मामले को लेबरकोर्ट में भेजने का पावर नही है उनको अमर उजाला का कर्मचारियों के पक्ष में आया ये आर्डर एक चपत है।

#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary


Saturday, 26 May 2018

कोबरा पोस्ट ने अब TOI और PAYTM को किया बेनकाब

कोबरा पोस्ट ने अपने बहुचर्चित स्टिंग 'ऑपरेशन 136' की दूसरी क़िस्त कल रिलीज़ कर दी इसमे भास्कर वाला स्टिंग इसलिए रिलीज नही किया गया क्योंकि उस पर अदालत ने स्टे दे दिया है

बहरहाल कल जो वीडियो यूट्यूब पर रिलीज किये गए वह सभी देखने लायक है , पार्ट 1 ओर पार्ट 2 को यदि मिला लिया जाए तो आप पायेंगे कि देश के लगभग सभी प्रमुख मीडिया हाउस किस तरह से चंद रुपयों के लिए पत्रकारिता जैसे पवित्र माने जाने वाले पेशे की सरे बाजार इज्जत उतारने को आसानी से राजी है

मीडिया संस्थानों से जुड़े और उनमें रूचि रखने वाले सभी मित्रों से आग्रह हैं कि बड़े मीडिया संस्थानों के मार्केटिंग मैनेजर आपकी कलम का किस तरह सौदा करते हैं एक बार जरूर देखें

दरअसल सभी प्रतिष्ठानो के यहाँ कोबरापोस्ट के रिपोर्टर पुष्प शर्मा ने हिंदुत्व' एजेंडा चलाने  के नाम पर करोड़ों रूपए के विज्ञापन का प्रलोभन दिया ओर सब के सब इस बात के लिए तैयार दिखे

जिसे देश का सबसे प्रतिष्ठित मीडिया समूह माना जाता हैं ऐसे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर विनीत जैन ने ५०० करोड़ के विज्ञापन लेकर हिंदुत्व एजेंडा चालने पर हामी भर दी।  लेकिन वो अरबों रूपए कैश  में लेने को  तैयार नहीं हुए. जब संघ के नेता का वेश धारण किये रिपोर्टर ने  जैन से कहा कि  वो नकद पैसा विदेश में ले लें  तो टाइम्स ग्रुप के मालिक का कहना था कि  अगर वो इस नकद पैसे को  अम्बानी या अडानी को दे दें तब वो किसी डील के तहत ये पैसा इन उद्योगिक घरानो से ले लेंगे

टाइम्स ग्रुप के टाइम्स ऑफ इंडिया के अलावा इस स्टिंग ऑपरेशन में  इंडिया टुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, जी न्यूज, नेटवर्क 18, स्टार इंडिया, ABP न्यूज, दैनिक जागरण, रेडियो वन, रेड एफएम, लोकमत, ABN आंध्रा ज्योति, टीवी 5, दिनामलार, बिग एफएम, के न्यूज, इंडिया वाइस, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, MVTV और ओपन मैगजीन जैसे मीडिया समूह को बेनकाब किया गया हैं लेकिन इस लिस्ट में सबसे अधिक चौकाने वाला नाम है PAYTM का.......

इस सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन में देश की अग्रणी मोबाइल बैंकिंग कंपनी पेटीएम के मालिक ने ऑन कैमेरा यह  स्वीकार किया है कि पेटीएम ने PMO के आदेश पर उपभोक्ताओं का निजी डाटा सरकार को लीक किया है

लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नही है पेटीएम के मालिक विजय शेखर शर्मा के भाई अजय शेखर शर्मा जिस तरह से इस वीडियो में आरएसएस के साथ अपने संबंधों का बढ़चढ़ कर वर्णन कर रहे है वह वाकई देखने लायक है

पुष्प शर्मा जो आरएसएस के एजेंडे के तहत कार्य करने वाले एजेंट बने हैं उनसे अजय शेखर पूछते हैं कि “संगठन को सामने नहीं लाएंगे ? मैं तो संघ से बहुत जुड़ा हुआ हूं” इस एक वाक्य के जरिए अजय शेखर संघ से अपने जुड़ाव का खुलासा करते हैं।

आगे अजय शेखर अरुण कुमार, कृष्णा गोपाल, एस के मिश्रा और यहां तक ​​कि शिव राज चौहान से भी अपनी नजदीकियों के बारे में बताते हैं। अजय शेखर बताते है कि उनकी संघ के इन सभी बड़े नेताओं से बातचीत है, और उनसे व्यावसायिक रिश्ते भी है, “संघ में centre में मिला हुआ हूं अरुण कुमार जी, प्रफुल केल्कर जो एडिटर… मतलब मेरे कभी discussion में ये बात आई नहीं निकलकर जो बात आप बोल रहे हो मतलब मेरे हर तरह के discussion होते हैं”

अजय शेखर बातों बातों मे यहाँ तक बोल जाते हैं  कि पंचजन्य के संपादक केलकर उनके अच्छे मित्र हैं और कहते हैं कि “अरे मेरी दोस्ती तो उनसे दोस्ती का मतलब आप अगर पंचजन्य को उठाएंगे ना तो उसमें पेटीएम के एड दिखेंगे आपको..आप देखना कभी जाके आपको दिख जाएगा…वो उनके कहने से करे हैं हमने”

अंडर कवर रिपोर्टर  बने पुष्प शर्मा अजय से गुरुजी की वीडियो PAYTM पर अपलोड करने के लिए आग्रह करते हैं। इसपर अजय शेखर पुष्प को आश्वस्त कराते हुए कहते हैं कि “नहीं नहीं वो सब हम कर देंगे अगर RSS कहेगा क्योंकि RSS तो हमारे ब्लड में है” आगे अजय शेखर बताते हैं कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं “मैं पूछूंगा करना है तो फिर उनको बताकर करेंगे हम भी तो अपने नंबर बनाएं सीधी सी बात है जब इतना कर चुके हैं तो करना ही क्या है”

अब आप खुद समझ सकते है कि कैसे पेटीएम इतनी जल्दी सफलता की सीढ़ियां कैसे चढ़ गया,......... कैसे ओर क्यो अप्रैल 2015 में पेटीएम ने भारतीय रेलवे के साथ समझौते किया, जिसमें पेमेंट वॉलेट टिकटिंग से संबंधित transactions के लिए स्वीकार्य था, जो मौका SBI जैसे सरकारी बैंक को सबसे पहले मिलना चाहिए था,

कैसे ओर क्यो पेटीएम अपने विज्ञापनों में पीएम मोदी को ब्रांड एम्बेस्डर के तौर पर लगातार प्रस्तुत करता रहा.........

कैसे ओर क्यो नोटबन्दी जैसा डिजास्टर स्ट्रोक  पेटीएम के लिए  जीवनदायी साबित हुआ

क्योंकि उसे सब पहले से पता था उसकी तैयारियां पहले से ही थी , मोदी सरकार के हर मूव की पेटीएम को पहले से खबर थी आप भले ही कुछ और न देखे लेकिन यह स्टिंग आप जरूर देखिएगा

https://youtu.be/FD40oqV3fhk

(ये लेखक के निजी विचार हैं। ये लेख गिरीश मालवीय की फेसबुक पोस्ट से साभार लिया गया है।)


(साभार: hindi.sabrangindia.in)




Thursday, 24 May 2018

मजीठिया: हाईकोर्ट ने जारी किया बरेली डीएलसी के खिलाफ वारंट

उत्तरप्रदेश के बरेली से बड़ी खबर आ रही है। तीन क्लेमकर्ताओं की सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द कर एक सप्ताह में समस्त बकाया अदा करने का आदेश देने वाले बरेली के उपश्रमायुक्त रोशन लाल गुरुवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट में ना तो स्वयं पेश हुए और ना ही स्टैंडिंग काउंसिल को विभाग या राज्य सरकार का पक्ष भेजा। इस पर नाराजगी जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने बरेली डीएलसी का वारंट जारी कर दिया। अगली सुनवाई 4 जुलाई को होगी।
 मजीठिया मामले में बरेली के उपश्रमायुक्त के समक्ष हिन्दुस्तान के वरिष्ठ उपसंपादक राजेश्वर विश्वकर्मा, मनोज शर्मा, निर्मल कांत शुक्ल, चीफ रिपोर्टर पंकज मिश्रा ने धारा 17(1)के तहत माह फरवरी'17 में केस किया था।मालूम हो कि बरेली में 31मार्च'17 को डीएलसी के स्तर से हिंदुस्तान के चीफ रिपोर्टर पंकज मिश्रा के पक्ष में 25,64,976 रूपये, सीनियर कॉपी एडिटर मनोज शर्मा के पक्ष में 33,35,623 रूपये और सीनियर सब एडिटर निर्मलकांत शुक्ला के पक्ष में 32,51,135 रूपये की वसूली के लिए हिन्दुस्तान बरेली के महाप्रबंधक/यूनिट हेड और स्थानीय संपादक के नाम आरसी जारी हो चुकी है ।आरसी जारी होने बौखलाकर हिन्दुस्तान प्रबंधन ने  क्लेमकर्ताओं के विरुद्ध मनमानी जांच बैठा दी और सेवाएं समाप्त कर दीं, तो  मजिठिया क्रांतिकारी मनोज शर्मा, राजेश्वर विश्वकर्मा, निर्मल कांत शुक्ला ने उपश्रमायुक्त से शिकायत की कि हिन्दुस्तान प्रबन्धन मजिठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन-भत्तों व एरियर का उनके निर्णय व आदेश के क्रम में लाखों का भुगतान न करके उनका उत्पीड़न करने पर उतारू है।विधिविरुद्ध डोमेस्टिक जांच बैठा दी ताकि दबाव बनाया जा सके।मनमानी कार्रवाई व धमकियां दी जा रही हैं।ना तो वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट और ना ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया जा रहा है। इस शिकायत पर 30 दिसंबर को डीएलसी ने कंपनी की कार्रवाई को अवैधानिक घोषित कर तीनों शिकायतकर्ताओं को एक सप्ताह के अंदर कार्य पर वापस लेते हुए उनके समस्त ड्यूज अदा करने के आदेश दिए।
हिन्दुस्तान प्रबंधन ने डीएलसी के उस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी जिसमें कंपनी को तीनों कर्मचारियों को काम पर वापस लेने का आदेश दिया। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कंपनी के पक्ष में स्टे नही दिया। हाईकोर्ट ने 15 मई को अदालत में मौजूद स्टैंडिंग काउंसिल, एडिशनल अटार्नी जनरल को निर्देश दिए कि वह श्रम विभाग से निर्देश मंगवाएं और अगली तिथि 24 मई को  बरेली के डीएलसी स्वयं अदालत में मौजूद रहेंगे।
 गुरुवार को हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने स्टैंडिंग काउंसिल से पूछा कि लेबर डिपार्टमेंट से प्राप्त निर्देशों से अवगत कराया जाय। स्टैंडिंग काउंसिल नितिन कुमार अग्रवाल ने उपश्रमायुक्त बरेली द्वारा कोई भी निर्देश प्राप्त ना होना बताया। तब न्यायमूर्ति ने पूछा- क्या डीएलसी बरेली आज अदालत में उपस्थित हैं। अदालत में डीएलसी बरेली की नामौजूदगी पर न्यायमूर्ति ने काफी नाराजगी जताते हुए उनका (डीएलसी बरेली) वारंट जारी कर दिया। अगली सुनवाई 4 जुलाई को होगी।
 बरेली के उपश्रमायुक्त रोशन लाल का वारंट जारी होने की खबर अदालत से बाहर आते ही उत्तरप्रदेश के श्रम विभाग के अफसरों में हड़कंप मच गया है। ये पहला मामला है, जब मजीठिया प्रकरण में लेबर विभाग के किसी बड़े अफसर का वारंट हाईकोर्ट ने जारी किया है।

#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary

Monday, 21 May 2018

मजीठिया: भास्कर को फिर झटका, अब लेबर कोर्ट ने की अर्जी खारिज, दूसरी बार एक्स पार्टी घोषित

मजीठिया मामले में अखबार मालिकों के लिए एक के बाद एक सभी दरवाजे बंद होते जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के बाद दैनिक भास्कर दिल्ली को ताजा झटका लेबर कोर्ट से लगा है। दिल्ली के द्वारका स्थित लेबर कोर्ट ने 11 कर्मचारियों के माला फाइड ट्रांसफर और ट्रमिनेशन मामले में दैनिक भास्कर मैनेजमेंट को दूसरी बार एक्स पार्टी अर्थात केस से बाहर कर दिया है। मैनेजमेंट के लगातार अनुपस्थित रहने और घोर लापरवाही के आरोप में यह कार्रवाई की गई है। लेबर कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक और असाधारण है, जब किसी पक्ष को एक केस में दो-दो बार एक्स पार्टी घोषित किया गया है। दैनिक भास्कर मैनेजमेंट के लिए लेबर कोर्ट के दरवाजे अब बंद हो गए हैं। अब लेबर कोर्ट में मैनेजमेंट का पक्ष नहीं सुना जाएगा, सिर्फ कर्मचारियों की ही सुनवाई होगी। पत्रकारों के भेष में घूम रहे मैनेजमेंट के हितैषी चाहें तो लेबर कोर्ट के इस फैसले पर भी जश्न मना सकते हैं। वकीलों और अधिकारियों के हाथों गुमराह मैनेजमेंट और उसके चीयर लीडर्स हर हार पर जश्न मनाते रहें, अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।

गौरतलब है कि मजीठिया से बचने के लिए दैनिक भास्कर सितंबर 2015 में अपना संपादकीय कार्यालय रातों रात राजेंद्र प्लेस दिल्ली से उठाकर रेवाड़ी भाग गया था। इस संबंध में न कर्मचारियों को कोई सूचना दी गई थी और न सरकार से इजाजत ली गई थी। इतना ही नहीं, मजीठिया वेतनमान की मांग कर रहे कर्मचारियों का तबादला दूर-दराज अन्य राज्यों में कर दिया गया था और बाद में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। इस पर पीड़ित कर्मचारियों ने डीएलसी का दरवाजा खटखटाया। डीएलसी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद केस लेबर कोर्ट रेफर कर दिया था। लगातार अनुपस्थित रहने और जवाब दाखिल न करने पर लेबर कोर्ट ने मैनेजमेंट को पहली बार 20-09-2017 को एक्स पार्टी कर दिया था। इस पर मैनेजमेंट ने एक अर्जी दाखिल कर केस में फिर से शामिल होने की गुहार लगाई। कोर्ट ने अर्जी पर बहस के लिए 10 मई तारीख निर्धारित की थी मगर इस तारीख को मैनेजमेंट फिर गायब हो गया। लेबर कोर्ट ने इस पर कड़ा संज्ञान लेते हुए मैनेजमेंट की अर्जी खारिज कर दी और मैनेजमेंट को दोबारा एक्स पार्टी घोषित कर दिया। इस तरह अब लेबर कोर्ट के दरवाजे भी दैनिक भास्कर के लिए बंद हो चुके हैं।

उधर इन कर्मचारियों से जुड़े मजीठिया वेतनमान और रिकवरी मामले में भी हाईकोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है कि डीएलसी 2 माह के अंदर रेफरेंस लेबर कोर्ट को भेजे और लेबर कोर्ट 6 माह के अंदर केस का फैसला करे। मतलब 8 माह में खेल खत्म। स्पष्ट है कि मैनेजमेंट दोनों मामलों में बुरी तरह घिर गया है। मैनेजमेंट का ख्याल था कि शतुर्मुर्ग की तरह रेत में सिर गड़ाने से बला टल जाएगी और वकीलों व अधिकारियों की फौज उसे बचा लेगी।

मैनेजमेंट के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि केस में देरी भी उसे ही भारी पड़ने वाली है। क्योंकि कर्मचारी अपना तमाम बकाया कानून के तहत अप टू डेट ब्याज समेत वसूल करेंगे। जितनी देर होगी, मैनेजमेंट को भुगतान भी उतना ज्यादा करना होगा। हर माह एरियर में ब्याज भी जुड़ता जा रहा है। जिसका जितने लाख एरियर, उसका उतने ही हजार हर माह ब्याज। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेतनमान नवंबर 2011 से लागू करने के निर्देश दिए हैं।


#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary


Friday, 18 May 2018

मजीठिया: भास्कर को एक और झटका, हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट को किया टाइम बांड

जो लड़ेगा, वो पाएगा, जो सोएगा, वो खोएगा

मजीठिया मामले में अखबार कर्मियों की जीत और मालिकों की हार का सिलसिला जारी है। लगभग तीन वर्षों से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे दैनिक भास्कर दिल्ली के 13 कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान और रिकवरी का रास्ता साफ हो गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने डीएलसी की प्रोसीडिंग पर लगे स्टे पर निर्णय सुनाते हुए निर्देश दिया है कि डीएलसी दो माह में केस का रेफरेंस लेबर कोर्ट को भेजे और लेबर कोर्ट 6 माह में फैसला सुनाए। हाईकोर्ट में मैनेजमेंट की तरफ से कई वकीलों ने डीएलसी की प्रोसीडिंग खारिज करने के लिए जिरह की। कर्मचारियों की तरफ से श्रमिकों के जाने-माने वकील परमानंद पांडे ने जोरदार तरीके से उनका पक्ष रखा।

गौरतलब है कि मजीठिया से बचने के लिए दैनिक भास्कर मैनेजमेंट अपना संपादकीय कार्यालय दिल्ली से उठाकर रेवाड़ी भाग गया था और मजीठिया वेतनमान की मांग कर रहे कर्मचारियों का तबादला दूर-दराज अन्य राज्यों में कर दिया था। बाद में इन कर्मचारियों की सेवाएं भी समाप्त कर दी गईं। कर्मचारियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मजीठिया वेतनमान और रिकवरी के लिए डीएलसी का दरवाजा खटखटाया था। मैनेजमेंट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की परवाह न करते हुए डीएलसी की प्रोसीडिंग पर दिल्ली हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। करीब डेढ़ साल से यह मामला हाईकोर्ट में लंबित था। 2 मई को माननीय हाईकोर्ट ने स्टे पर निर्णय सुनाते हुए डीएलसी और लेबर कोर्ट को साफ-साफ शब्दों में निर्देश दिए हैं। इस फैसले में सभी कर्मचारियों के लिए संदेश है कि जो लड़ेगा, वो पाएगा और जो सोएगा, वो खोएगा।

#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary

Thursday, 10 May 2018

मजीठिया: अखबार मालिकों को अर्थंदंड के साथ होगी जेल भी

वेजबोर्ड लागू कराने के लिए दिल्ली सरकार ने किया कानून में संशोधन




केन्द्र और देशभर की राज्य सरकारों को एक नजीर देते हुये दिल्ली की आम आदमी पार्टी पहली ऐसी सरकार बन गयी है जिसने दिल्ली के पत्रकारों को जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ मिले इसके लिये कानून में संशोधन किया है। इसके लिये बकायदे ८ मई २०१८ को दिल्ली राजपत्र में इसकी अधिसूचना जारी की गयी है।
विधि, न्याय एवं विधाई कार्य विभाग की अधिसूचना की जानकारी दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने अपने आफिशियल ट्वीटर हैंडल के जरिये दी है। इसमें लिखा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा के निम्नलिखित अधिनियम में राष्ट्रपति की सहमति १७ अप्रैल को प्राप्त कर लिया है। और इसे जनसाधारण के लिये प्रकाशित किया जारहा है।
इसके तहत दिल्ली सरकार ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये कार्यरत पत्रकार एवं अन्य के लिये समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा की शर्ते) और विविध उपबंध अधिनियम १९५५ का पुन: संशोधन किया है जिसके तहत १९५५ के केन्द्रीय अधिनियम में संख्या ४५ की धारा १७ की उपधारा १ के बाद उपधारा क को जोड़ा गया है जिसके तहत किसी अन्य प्रकार के दंड पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना , जो इस अधिनियम के अंतगर्त प्राधिकारी, समाचार पत्र के कर्मचारी को देय वेतन की राशि के पांच गूणा अधिकतम तक क्षतिपूर्ति राशि के भुूगतान का निर्देश दे सकता है। यानि अगर नियोक्ता ने कर्मचारियों का बकाया नहीं दिया तो धारा १७ (१) की नयी उपधारा क में सक्षम अधिकारी पांच गूना तक की राशि दंड स्वरुप वसूल सकता है।
साथ ही अधिनियम संख्या ४५ की धारा १८ में संशोधन करते हुये उपधारा (१) में आये शब्द अर्थदंड जो दो सौ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है को संशोधन करते हुये उसमें किसी प्रकार का कारावास जो ६ माह तक बढ़ाया जा सकता है या अर्थंदड जो रुपये ५००० तक बढ़ाया जा सकता है या दोनो कर दिया है। शर्त यह होगा कि किसी कर्मचारी को देय वेतन के न भुगतान करने की स्थिति में नियोक्ता किसी प्रकार के कारावास के दंड का भागी होगा। जो ६ माह तक बढ़ाया जा सकता है।
साथ ही १९५५ के केन्द्रीय अधिनियम संख्या ४५ की धारा १८ की उपधारा १(क) में आये शब्द अर्थंदंड सहित दंडनिय जो पांच सौ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है के स्थान पर संशोधन कर किसी अवधि के लिये किसी प्रकार की कारावास सहित दंडनीय जो एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है कर दिया है। और अर्थदंड का भी भागी होगा जो १० हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। शर्त यह है कि किसी कर्मचारी को देय वेतन के भुगतान न करने की स्थिति में नियोक्ता किसी प्रकार के कारावास सहित दंडनीय होगा। जो एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। और अर्थदंड जो एक हजार रुपये प्रति कर्मचारी प्रतिदिन की दर से बढ़ाया जा सकेगा या दोनो सहित जबतक अपराध जारी रहता है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टीविस्ट
९३२२४११३३५

#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary

Saturday, 5 May 2018

मजीठिया: अदालत को गुमराह करने पर हिन्दुस्तान की फजीहत

उत्तर प्रदेश के बरेली श्रम न्यायालय में शनिवार को उस समय हिन्दुस्तान प्रबंधन को फजीहत झेलनी पड़ी जब मजीठिया वेज बोर्ड के तहत दाखिल राजेश्वर विश्वकर्मा के क्लेम केस की सुनवाई के दौरान सहायक प्रबंधक(एचआर) सत्येंद्र अवस्थी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इससे संबंधित केस की सुनवाई होने के कागजात प्रस्तुत किये। उन कागजों को देखते ही श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी/न्यायाधीश विनोद कुमार भड़क गए और बोले - हटाइये इसे। सवाल किया कि क्या इस केस को ना सुनने का माननीय उच्च न्यायालय का कोई अंतरिम आर्डर है? इस पर प्रबंधन की ओर से पैरवी कर रहे  प्रबंधक(एचआर) सत्येंद्र अवस्थी मुंह लटकाकर खड़े रहे।
कोर्ट को गुमराह करने पर श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी ने नाराजगी जताते हुए पत्रावली पर मौजूद उस आदेश को भी देखा जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मजीठिया मामलों का श्रम न्यायालयों में अधिकतम छह माह में निस्तारण करने का आदेश दिया है। इसके अनुसार याची राजेश्वर विश्वकर्मा के केस की श्रम न्यायालय में सुनवाई को चार माह से अधिक का समय बीत चुका है और मात्र दो माह का समय ही निस्तारण के लिए बचा है। दस दिन पहले ही शासन से नियुक्त श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी रिटायर्ड एचजेएस विनोद कुमार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को गंभीरता से लिया और हिन्दुस्तान बरेली के प्रबंधन को अंतिम अवसर प्रदान करते हुए दस दिन के अंदर अपना पक्ष/साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दिया। साथ ही ये भी स्पष्ट किया कि यदि हिन्दुस्तान प्रबंधन ने निर्धारित समयावधि में अपना पक्ष श्रम न्यायालय के समक्ष नहीं रखा तो वाद निर्णीत कर दिया जाएगा। सुनवाई की अगली तिथि 15 मई नियत की गई है।
बता दें कि राजेश्वर विश्वकर्मा का क्लेम केस 17(2) में उपश्रमायुक्त बरेली रोशन लाल ने सुनवाई के बाद श्रम न्यायालय बरेली को संदर्भित कर दिया था। श्रम न्यायालय में हो रही सुनवाई को रोकने के लिए हिन्दुस्तान प्रबन्धन झूठे तथ्यों के साथ माह दिसंबर'17 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंच गया, जहां पहली सुनवाई पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रबंधन की स्टे अप्लीकेशन पर कोई विचार न कर प्रतिपक्षियों को उनका पक्ष सुनने के लिए नोटिस जारी का दिए थे, तब से मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है। प्रबंधन येनकेन प्रकारेण श्रम न्यायालय द्वारा की जा रही सुनवाई को रोकने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय से स्थगनादेश हासिल करने को जोर लगा रहा है।

#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary

Friday, 4 May 2018

मजीठिया: जागरण के बर्खास्त कर्मियों के मामले में अब होगी रोजाना सुनवाई

हिसार, 4 मई। जागरण के 41 बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में प्रबंधन के रवैये को देखते हुए नाराज लेबर कोर्ट अब इसपर रोजाना सुनवाई करेगा।
आज की सुनवाई के दौरान कर्मचारियों की तरफ से रेफरेन्स सम्बन्धी प्रबंधन की आपत्ति को ख़ारिज करने वाले श्रम सचिव, हरियाणा के संशोधन पत्र को कोर्ट में जमा किया गया। दूसरी तरफ प्रबंधन ने आज फिर क्लेम स्‍टेटमेंट का कोई जबाब नहीं दिया। कोर्ट की तरफ से उनको जबाब देने के लिए यह चौथा मौका था। प्रबंधन की तरफ से आज वकील नहीं आईं और सचिन पेश हुआ। उसने कहा कि हमारा वकील आज हिसार में नही है,और जबाब के लिए समय मांगा। पहले तो जज साहब ने इनकार कर दिया और आज ही जबाब देने के लिए कहा। आज की कार्यवाही रुक रुक कर तीन बार में पूरी हुई। काफी गिड़गिड़ाने के बाद कोर्ट ने प्रबंधन को 10 मई को जबाब के लिए अंतिम अवसर प्रदान किया।
जज साहब ने स्‍पष्‍ट कहा कि उस दिन जवाब नहीं दिया गया तो आगे कोई मौका नहीं दिया जाएगा और प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी। जज साहब ने साफ करते हुए कहा कि यह मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से 6 माह की समय सीमा में निपटाना है। मामले को टाइम से निपटाने के लिए अब सुनवाई हर दिन होगी (कोर्ट हिसार में दो दिन वीरवार और शुक्रवार को ही लगती है)। अर्थात अब मामले की सुनवाई प्रत्येक वीरवार व शुक्रवार को होगी।


#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary