Saturday, 25 March 2023

सुप्रीम कोर्ट निर्देश का पालन नहीं करने पर निचली अदालत से नाराज



नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि निष्पादन अदालत (अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, 15वीं अदालत, अलीपुर) ने उस मामले को स्थगित कर दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि वह निष्पादन की कार्यवाही की सुनवाई एक दिन के आधार पर करे।

यह देखा गया कि सावधानी बरती जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों के माध्यम से जो मंशा व्यक्त की है, उस पर पूर्ण प्रभाव दिया जाए।

खंडपीठ ने कहा, "हम केवल यह कहना चाहेंगे कि न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करने में सावधानी बरतनी चाहिए कि इस न्यायालय के आदेशों को समझने के बाद अनुपालन किया जा रहा है। मामले को इस अदालत के सामने निगरानी रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए रखा गया कि निष्पादन की कार्यवाही समाप्त हो जाए और यह नहीं कि संबंधित न्यायाधीश मामले को स्थगित कर दें…”

सुप्रीम कोर्ट ने 03.02.2023 को निष्पादन अदालत को निर्देश दिया कि वह याचिका को दैनिक आधार पर ले। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि जब दिनांक 03.02.2023 के आदेश को निष्पादन अदालत के संज्ञान में लाया गया तो उसने विशेष अनुमति याचिका के परिणाम की प्रतीक्षा करते हुए सुनवाई को 31.03.2023 तक के लिए स्थगित कर दिया।

जस्टिस संजय किशन कौल ने वकील की बात सुनकर कहा, "मुझे नहीं पता कि वे सरल आदेशों को क्यों नहीं समझ सकते। मुझे क्या कहना चाहिए?"

जस्टिस कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ इस बात से परेशान है कि 03.02.2023 के आदेश पर विचार करने के बाद भी, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि निष्पादन की कार्यवाही नियमित आधार पर होनी है, निष्पादन न्यायाधीश ने सुनवाई स्थगित कर दी।

खंडपीठ ने कहा, "यह हमारे लिए बिल्कुल स्पष्ट है कि न्यायालय ने 03.02.2023 के आदेश के अर्थ को नोटिस करने के बाद भी नहीं समझा है।"

इसने आगे उल्लेख किया, “उस आदेश के संदर्भ में हमने निष्पादन की कार्यवाही को दिन-प्रतिदिन चलने के लिए कहा। इसे दिन-प्रतिदिन लेने के बजाय यह बहाना बनाया गया कि मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है!

वर्तमान मामले में लगभग चार साल पहले निष्पादन में अवार्ड की पुष्टि की गई, लेकिन निष्पादन याचिका आज तक लंबित है। पिछले अवसर पर कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को मामले की प्रगति के बारे में ट्रायल जज से रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए बुलाया गया और 12.11.2018 को शुरू की गई निष्पादन याचिका साढ़े चार साल बाद भी लंबित क्यों है।

अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, 15वें न्यायालय, अलीपुर द्वारा भेजी गई अनुपालन रिपोर्ट में देरी के कुछ कारण यह है कि पंद्रह मौकों पर स्थानीय बार एसोसिएशन द्वारा हड़ताल के कारण सुनवाई नहीं हो सकी; डीएचआर और जेडीआर ने छह तारीखों पर स्थगन मांगा; पीठासीन अधिकारी का स्थानांतरण उसी पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की,

"... (यह) इस बात का दुखद पठन करता है कि कैसे एक या दूसरे बहाने निष्पादन की कार्यवाही को बाधित किया जा रहा है, इस तथ्य के अलावा कि स्थानीय बार टोपी की बूंद पर हड़ताल का आह्वान करने में उलझा हुआ है!"

सुनवाई की पिछली तारीख को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वे आवश्यक कदम उठाने के लिए चीफ जस्टिस को सूचित करें, जिससे विचाराधीन न्यायालय में न्यायाधीश मौजूद हो और निष्पादन याचिका पर एक दिन के आधार पर विचार किया जा सके। इसने यह भी स्पष्ट किया कि बार एसोसिएशन के किसी भी प्रस्ताव या हड़ताल से सुनवाई बाधित नहीं होगी।

[केस टाइटल: निर्मल कुमार खेमका और अन्य बनाम एम/एस. जे.जे. गृहनिर्माण प्रा. लिमिटेड और अन्य। एसएलपी (सी) नंबर 2804-10/2023

(Source: https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/supreme-court-expresses-displeasure-at-a-trial-court-adjourning-matter-despite-its-direction-to-expedite-process-224740)

Thursday, 16 March 2023

मजीठियाः 57 कर्मचारियों के मामले में दैनिक जागरण के खिलाफ करोड़ों की आरआरसी जारी



नोएडा के डीएलसी कार्यालय ने आज देश के नंबर वन का तगमा लगाकर घूमने वाले समाचार पत्र दैनिक जागरण के खिलाफ आरआरसी जारी की। नोएडा स्थित लेबर कोर्ट ने पिछले साल 7 नवंबर को 57 कर्मचारियों के मामले में दैनिक जागरण के खिलाफ आदेश देते हुए 2 माह के भीतर एरियर की बकाया राशि का भुगतान करने का समय दिया था। लेबर कोर्ट ने अपने आदेश में साथ ही कहा था कि इस राशि पर प्रबंधन 7 फीसदी सालाना ब्याज का भी भुगतान करें।

जागण प्रबंधन ने समय सीमा के भीतर भुगतान नहीं किया। लेबर कोर्ट का ये आदेश परिपालन के लिए नोएडा श्रम कार्यालय पहुंचा। जहां पर प्रबंधन ने अपने तर्क रखे, जिनका कर्मचारियों की तरफ से उनके प्रतिनिधि राजुल गर्ग ने जबरदस्त तरीके से खंडन किया। मालूम हो कि राजुल गर्ग ही लेबर कोर्ट में कर्मचारियों का मामला देख रहे हैं। लेबर कोर्ट के आदेशानुसार एरियर की ये राशि 11,59,00,78 रुपये बन रही है। जिस पर उसे 7 फीसदी सालाना ब्याज देने का भी निर्देश है। 


Saturday, 4 March 2023

विवाद की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान कर्मचारी को नहीं किया जा सकता है बर्खास्त

बेंगलुरू। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक कर्मचारी को बहाल करने का आदेश दिया है जिसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था जबकि उसके और कंपनी के बीच औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत एक विवाद चल रहा था।

उच्च न्यायालय ने 20 फरवरी को दिए अपने आदेश में श्रम न्यायालय के एक आदेश को बरकरार रखा और कहा, श्रम न्यायालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उसके समक्ष कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, बर्खास्तगी के आदेश के संबंध में कोई औचित्य नहीं बनाया गया है। श्रम न्यायालय सही निष्कर्ष पर पहुंचा है कि बर्खास्तगी अनुचित थी और पिछले वेतन वाले कामगार की बहाली का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की एचसी एकल-न्यायाधीश पीठ ने यह भी कहा कि जब श्रम न्यायालय के समक्ष कोई विवाद होता है तो उसके पास बर्खास्तगी के आदेशों को रद्द करने सहित सभी मामलों पर निर्णय लेने की शक्तियां होती हैं।

इसमें कहा गया है, जब श्रम न्यायालय के समक्ष विवाद लंबित होते हैं, तो श्रम न्यायालय उससे संबंधित और औद्योगिक विवाद से संबंधित सभी प्रासंगिक मामलों का न्यायनिर्णय कर सकता है, जिसमें बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करना, बहाली का निर्देश देना और बकाया वेतन का आदेश देना शामिल हो सकता है।

विवाद WRIT PETITION NO. 28177 OF 2009 (L-TER) शहतूत सिल्क्स लिमिटेड (पहले शहतूत सिल्क इंटरनेशनल लिमिटेड के रूप में जाना जाता था) और एक कर्मचारी एन जी चौडप्पा के बीच था।

चौडप्पा के खिलाफ एक जांच में उन्हें कदाचार (misconduct) का दोषी पाया गया और उन्हें 6 अगस्त 2003 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। चौडप्पा और बर्खास्त किए गए चार अन्य कर्मचारियों ने इसे श्रम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी।

लेबर कोर्ट का मामला केवल चौडप्पा के संबंध में चलता रहा। इसने 27 अगस्त 2009 को उनकी बहाली के आदेश देने वाले उनके आवेदन की अनुमति दी। कंपनी ने 2009 में हाईकोर्ट के समक्ष इसे चुनौती दी और अदालत ने 20 फरवरी 2023 को अपना फैसला सुनाया।

फैसले में कहा गया कि जब विवाद लंबित था, तब प्रतिवादी (चौडप्पा) की बर्खास्तगी अधिनियम की धारा 33 की उप-धारा (2) का स्पष्ट उल्लंघन है, जो बर्खास्तगी या सेवामुक्ति के आदेश के बावजूद ऐसे कामगारों को रोजगार में बने रहने का अधिकार देती है। इस तरह की अनुमति मांगे जाने और प्राप्त किए बिना, बर्खास्तगी के आदेश को गैर-स्थायी माना जाएगा और कभी भी पारित नहीं किया जाएगा।

(साभारः एजेंसियां)

Sunday, 19 February 2023

दैनिक दिव्य मराठी को सुप्रीम कोर्ट से झटका!



वरिष्ठ पत्रकार सुधीर जगदाले व उनकी टीम का हाईकोर्ट में जमा 1 करोड़ की बकाया राशि को वापस लेने पर रोक


 औरंगाबाद हाईकोर्ट का स्टे आॅर्डर बरकरार !!


जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में डी.बी. कॉर्प को सुप्रीम कोर्ट ने एक झटका दिया है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में डी.बी. कॉर्प के समाचार पत्र दैनिक दिव्य मराठी के मीडियाकर्मियों के  अदालत में जमा पैसे को निकलाने पर बांबे हाईकोर्ट की औरंंगाबाद खंडपीठ द्वारा लगाई गई रोक को माननीय सुप्रीमकोेर्ट ने अगली तिथि तक बरकरार रखा है।  माननीय सुप्रीमकोर्ट की डबल बेंच ने 13 फरवरी 2023 को जारी अपने आदेश में दिव्य मराठी (डीबी कॉर्प) को औरंगाबाद उच्च न्यायालय में जमा 97 लाख 20 हजार 341 रुपये की राशि निकालने पर रोक लगा दी है (मूल रूप से यह राशि आधी ही है, आधी राशि अभी भी दिव्य मराठी के पास शेष है।  दैनिक दिव्य मराठी के कर्मचारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुधांशु चौधरी ने जोरदार तर्क दिया और कहा कि  औरंगाबाद हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर ही आदेश पारित किया है। मेरिट चेक नहीं हुई। इसके विपरीत, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दृढ़ता से तर्क दिया था  कि योग्यता के आधार पर निर्णय देकर तकनीकी आधार को खारिज कर दिया गया है। डी. बी. कॉर्प के वकील ने तर्क दिया कि राज्य सरकार श्रम पत्रकार अधिनियम की धारा 17 (2) के तहत अपनी शक्तियों को किसी दूसरे को नहीं दे सकती। राज्य सरकार द्वारा बिना अधिकार के 11 मई 2016 को जारी की गई अधिसूचना अवैध है और नागपुर खंडपीठ द्वारा पारित आदेश सही है, मामले को खारिज किया जाना चाहिए। इस पर न्यायाधीश ने कंपनी के वकील से कहा कि चूंकि यह मामला राज्य सरकार का है, इसलिए वे मामले पर उनकी राय सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं कर सकते।उसके बाद डी. बी. कॉर्प के वकील ने औरंगाबाद पीठ से सुधीर जगदाले और टीम का बकाया अदालत में जमा पैसा वापस लेने की अनुमति मांगी।  मीडियाकर्मियों  के वकील सुधांशु चौधरी , महेश शिंदे, वात्सल्य वैग्य और प्रशांत जाधव ने इसका कड़ा विरोध किया और स्थगन पर जोर दिया। इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच के न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और दीपांकर दत्ता ने अगली तारीख तक स्थगन आदेश पारित किया और प्रतिवादी को नोटिस तामील करने का आदेश दिया।


शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी

9322411335

Saturday, 11 February 2023

Journalists Thank Dr Sivadasan for Raising the Issue of Journalists in the Parliament

(From left) Parmanand Pandey, Alkshendra Singh Negi, Mahesh Kumar, Dr. V. Sivadasan (beard) and Vivek Tyagi.


New Delhi, 11 Feb. A delegation of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) today met the CPI(M) Member of Parliament Dr V Sivadasan here and thanked him for raising the wage board issue of journalists in the Rajya Sabha.  Dr Sivadasan had asked the government about the number of journalists working in print, electronic and online media industry-wise. He also wanted to know what the stage of the constitution of the wage board was and whether the journalists were getting their wages as per the recommendation of the wage board. It is regrettable that on all counts the government has not been able to furnish any convincing reply.

A few years ago, when a similar question was asked about the implementation of the Majithia wage award, the then Labour Minister Santosh Gangwar had replied that some four hundred sixty newspapers had implemented the wage board award but the figure was nowhere near the reality. In fact, even now hardly any newspaper has fully implemented the award. Some twenty thousand newspaper employees have been thrown out of jobs across the country and their only fault has been that they demanded wages according to wage board recommendations from their owners.

The Working Journalist Act covers only print media journalists and non-journalist employees. Those working for Electronic and Web media are not covered under the Act, therefore their wages and other facilities depend on the whims and fancies of the media owners. In some media organisations, the condition of employees is very pathetic, and they are subjected to the worst kind of exploitation. Dr Sivadasan assured the IFWJ delegation that he and his party would continue to support the cause of the working class, but he said that it would gain momentum only when the media persons themselves came forward and led the struggle.

Dr Sivadasn had a lengthy discussion with the delegation about the state of the media industry in the country. He expressed his disappointment that the media employees have, by and large, not been taking part in the struggle of the working class. Among those included in the delegation were Indian Federation of Working Journalists (IFWJ)  Secretary General Parmanand Pandey, Alkshendra Singh Negi and Vivek Tyagi, the President and the General Secretary of the Delhi Union of Working Journalists (DUWJ) respectively and Mahesh Kumar.


-Parmanand Pandey

Secretary-General: IFWJ

Wednesday, 28 December 2022

मजीठिया केस में जवाब देने से भाग रहा अमर उजाला, मिला आखिरी मौका



- यशवंत सिंह

अयोध्या में अमर उजाला के ब्यूरो चीफ/चीफ सब एडिटर धीरेंद्र सिंह की ओर से दायर मजीठिया वेजबोर्ड केस में अमर उजाला प्रबंधन को अपना जवाब देते नहीं बन रहा है। पिछले 6 महीने से कभी क्षेत्राधिकार तो कभी जवाब दाखिल करने के लिए बार-बार समय की मांग से आजिज आकर श्रम न्यायालय ने 11 जनवरी को आखिरी मौका दिया है, अब जवाब दाखिल नहीं हुआ तो वादी को तारीखी खर्च देने के साथ 36 लाख रुपए बकाये की आरआरसी की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

आमतौर पर नौकरी करते वक्त बगैर किसी विवाद के कोई भी पत्रकार अपने संस्थान से वेजबोर्ड मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, लेकिन धीरेंद्र सिंह ने दैनिक हिंदुस्तान में 11 साल के कार्यकाल में सोनभद्र, मऊ और बलिया का ब्यूरो चीफ रहने के दौरान भी वेजबोर्ड के रिकमेंडेशन की मांग की थी जिसे प्रबंधन को स्वीकार करना पड़ा और भुगतान भी करना पड़ा।

2013 में अमर उजाला ज्वाइन करने पर मजीठिया वेजबोर्ड देने का पत्र जारी करने के बाद भी प्रबंधन भुगतान नहीं कर रहा था। अलबत्ता बीते डेढ़ साल से अमर उजाला के स्टाफ को रिजाइन करा कर संवाद न्यूज एजेंसी में आधे वेतन पर ज्वाइन करने के लिए सभी यूनिटों में अभियान चल रहा था। इसके लिए दूरदराज के इलाकों में ट्रांसफर का आदेश जारी किया जा रहा था, फिर मजबूर कर्मचारियों से समझौता करके उन्हें संवाद में ज्वाइन कराया जा रहा था।

अयोध्या के ब्यूरो चीफ धीरेंद्र सिंह का ट्रांसफर भी इसी उद्देश्य से जनवरी 2022 में शिमला ब्यूरो में किया गया लेकिन प्रबंधन की चाल को समझते हुए धीरेंद्र सिंह ने उप श्रम आयुक्त से स्थानांतरण के खिलाफ स्टे आदेश ले लिया। बाद में प्रबंधन ने मजीठिया वेजबोर्ड देने का आश्वासन देते हुए श्रम आयुक्त कार्यालय में समझौता किया। इसके बाद भी मार्च माह में स्थानांतरण आदेश को बदलते हुए आगरा यूनिट में कर दिया लेकिन वहां जाने पर भी मजीठिया वेजबोर्ड देने की जगह दिखाया गया कि आगरा के आसपास के सभी जिलों के ब्यूरो चीफ स्टाफर को संवाद में नहीं शामिल होने पर हटा दिया गया है। दूसरे को संवाद एजेंसी से ब्यूरो प्रभारी बनाया गया है।

सच्चाई का दम भरने वाले और कर्मचारियों के हित की बात करने वाले अमर उजाला के मालिकान की ऐसी अनीति और धोखाधड़ी सभी यूनिटों के जिलों में देखते हुए धीरेंद्र सिंह ने प्रबंधन के आगे झुकने के बजाय मजीठिया वेजबोर्ड के तहत करीब 3600000 बकाया को लेकर बीते जून माह में श्रम आयुक्त कार्यालय अयोध्या में मुकदमा दायर किया।

इसके बाद घबराए प्रबंधन ने क्षेत्राधिकार का मुद्दा उठाते हुए लिखित जवाब दिया कि यह केस आगरा में हो सकता है, अयोध्या में नहीं। प्रत्युत्तर में धीरेंद्र सिंह की ओर से अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि क्षेत्राधिकार दिल्ली, लखनऊ आगरा और अयोध्या चारों जगह है, लेकिन धीरेंद्र सिंह ने अपने मजीठिया वेजबोर्ड की मांग अयोध्या के कार्यकाल के दौरान 9 साल 6 माह का बकाया मांगा है इसलिए अयोध्या में ही इसकी सुनवाई हो सकती है।

दरअसल अमर उजाला प्रबंधन ने क्षेत्राधिकार का मुद्दा उठाने के पीछे षड्îंत्र रचा था कि श्रम कार्यालय इसे खारिज करता है तो हाईकोर्ट में मामले को लटका देंगे लेकिन श्रम कार्यालय ने अमर उजाला प्रबंधन से मूल केस का जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि क्षेत्राधिकार का मुद्दा वाद के अंतिम निस्तारण में तय करेंगे। इसके बाद अमर उजाला प्रबंधन मेरिट पर जवाब देने से भाग रहा है। पिछली 15 दिसंबर की तारीख पर अमर उजाला ने जवाब नहीं तैयार होने की लिखित माफी मांगते हुए और वक्त मांगा तो श्रम कार्यालय सख्त हो गया और चेतावनी देकर अगली तारीख 11 जनवरी को जवाब देने का आखिरी मौका दिया है। अब यदि अमर उजाला ने जवाब नहीं दिया तो मामले में एकतरफा आदेश पारित हो सकता है।


मजीठिया के दो दर्जन और मुकदमे जल्द दाखिल होंगे

रातोंरात अमर उजाला से हटाकर संवाद न्यूज एजेंसी में ज्वाइन कराए जा रहे स्टाफ की ओर से सिर्फ लखनऊ में दो दर्जन से अधिक मुकदमे मजीठिया वेजबोर्ड के तहत दाखिल होने जा रहे हैं। अमर उजाला की कई यूनिटों से भी अयोध्या केस की कॉपियां मंगाई गई हैं। दरअसल वेजबोर्ड का मुकदमा करने के बाद अमर उजाला न ट्रांसफर कर सकता है न ही निकाल सकता है।


ये सावधानियां बरतनी है-

औद्योगिक विवाद की जगह केवल मजीठिया वेजबोर्ड की 17(1) के तहत मुकदमा दाखिल किए जाए। उद्योग विभाग विवाद का मामला लंबा चलता है और ट्रिब्यूनल में जाने के बाद लटक जाता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से वेजबोर्ड का बकाया का केस जिला स्तरीय एएलसी कार्यालय में दाखिल हो सकता है और वहीं से संक्षिप्त सुनवाई के बाद ही आरआरसी जारी होने का प्रावधान है। इस सच्चाई को जानने वाले पत्रकारों में अब मजीठिया वेजबोर्ड मांगने का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। यह केस करने के बाद प्रबंधन की कोई भी परेशान करने वाली कार्रवाई कोर्ट के निगरानी में आ जाएगी।

[साभारः भड़ास4मीडिया.कॉम]

https://www.bhadas4media.com/jawab-dene-se-bhag-raha-amar-ujala/


Wednesday, 30 November 2022

इतिहास याद रखेगा एक पत्रकार से डर गई सरकार



रवीश को लेकर सरकार का यह डर अच्छा लगा

रवीश जहां खड़ें होंगे, उनके पीछे लाइन दोबारा खड़ी हो जाएगी

यह तो होना ही था। अगस्त में जब अडाणी ग्रुप ने एनडीटीवी के 29.18 फीसदी शेयर अप्रत्यक्ष रूप से खरीद लिए थे तो तभी से कयास लग रहे थे कि रवीश को अब जाना होगा या समझौता करना होगा। सत्ता की चाटुकारिता करने की बजाए रवीश ने इस्तीफा देना बेहतर समझा। एनडीटीवी की प्रेसीडेंट सुपर्णा सिंह ने एनडीटीवी के कर्मचारियों को आंतरिक मेल जारी कर इसकी जानकारी दी। इससे पहले एनडीटीवी के संस्थापक प्रणय राय और राधिका राय ने भी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया था।

इतिहास इस बात को याद रखेगा कि सत्ता के सामने निडरता से सच बोलने का साहस दिखाने वाले एक पत्रकार के लिए सत्ता ने पूरा संस्थान खरीद डाला। यानी एक पत्रकार ने पूरी सत्ता झुका दी। जब देश में बड़ी-बड़ी संस्थाएं ढह रही हों तो एक एनडीटीवी का ढहना कोई बड़ी बात नहीं है। जनता में संदेश यह गया है कि सरकार एक पत्रकार से डर गयी। यह डर बहुत अच्छा लगा।

रवीश कुमार प्रकरण से मेरे जैसे पत्रकारों के हौसले और अधिक बुलंद हुए हैं। मेरा लोकतंत्र और जनपक्षधरता में और अधिक विश्वास बढ़ा है। मैं अब और मुखरता और निडरता से भ्रष्ट और जनविरोधी तंत्र पर जोर से प्रहार करूंगा। सच यही है कि कलम की ताकत तलवार की मार से अधिक होती है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]