Saturday, 1 May 2021

आईएफडब्लूजे ने कहा- पत्रकार को मिले कोरोना से जंग में फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा


श्रम दिवस पर आईएफडब्लूजे वेबिनार में यूपी के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा पत्रकारों की आपात मदद के लिए बने फंड


लखनऊ, 1 मई। अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस पर इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) ने आपात स्थितियों में पत्रकारों की मदद के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर कोष बनाने का संकल्प लिया है। फेडरेशन ने कहा है कि कोरोना महामारी के दौर में हो रही पत्रकारों की मौत और बीमारियों को देखते हुए इसकी बड़ी आवश्यकता है। पत्रकारों के लिए इस तरह का कोष बनाने का सुझाव उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक की ओर से दिया गया है। 






कानून मंत्री पाठक श्रम दिवस के मौके पर आईएफडब्लूजे की ओर से आयोजित वेबिनार के मुख्य अतिथि थे। कोरोना काल में ब्रजेश पाठक की ओर से जनता और विशेष कर पत्रकारों की मदद को वेबिनार में सभी ने सराहा। पाठक ने कहा कि पत्रकार जो इन विषम परिस्थितियों में भी फील्ड में जाकर काम कर रहे हैं उनके लिए कोरोना प्रोटोकाल का मानना जरुरी है और अपने स्वास्थ्य की नियमित देखभाल बहुत जरुरी है। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान रिपोर्टिंग व कवरेज के दौरान पर्याप्त दूरी बनाए रखना बहुत जरुरी है। पत्रकारों की आर्थिक सहायता के लिए एक कोष बनाने का सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि आपात स्थितियों में यह बहुत काम आएगा।


आईएफडब्लूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेमंत तिवारी ने कहा कि संगठन और ब्रजेश पाठक की मदद से बहुत से पत्रकारों को सरकार की ओर से चिकित्सा एवं अन्य सहायता उपलब्ध कराई जा सकी है। उन्होंने कहा कि सरकार को पत्रकारों को भी फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा देते हुए किसी भी तरह की विषम परिस्थिति का शिकार होने पर पर्याप्त आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए। पत्रकारों के संबंधित मीडिया हाउस और सरकार को मृत्यु होने की दशा में बच्चों की पढ़ाई का पूरा भार उठाना चाहिए।


वेबिनार में मुख्य वक्ता के तौर पर अपने संबोधन में वरिष्ठ पत्रकार और आईएएनएस दिल्ली  के कार्यकारी संपादक दीपक शर्मा ने कहा कि कोरोना जैसी महामारी के दौरान फील्ड में काम कर रहे पत्रकारों को बहुत सतर्क रहने की जरुरत है और डाक्टरों की सलाह पर अमल करना चाहिए। दिवंगत रोहित सरदाना को याद करते हुए उन्होंने कहा कि इसी तरह देश भर में सैकड़ों पत्रकारों की जान गयी है और उनके परिजनों का ख्याल सरकार और संगठनों को रखना होगा। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर पत्रकारों का टीकाकरण काफी हद तक इस जानलेवा बीमारी से बचाव कर सकेगा।


वेबिनार का संचालन कर रहे आईएफडब्लूजे राष्ट्रीय सचिव सिद्धार्थ कलहंस ने कहा कि कोरोना ने पहले पत्रकारों की आजीविका पर संकट पैदा किया और जीवन को खतरे में डाल दिया है। 


आईएफडब्लूजे उपाध्यक्ष विभूति भूषण कार ने उड़ीसा मे हुयी पत्रकारों की मौत का उल्लेख करते हुए वहां की सरकार की ओर से दी गयी 15 लाख रुपये की मदद की जानकारी दी।

आईएफडब्लूजे उपाध्यक्ष केएम झा ने कहा कि आज ही मध्यप्रदेश में उनके साथ पत्रकारों के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात कर पत्रकारों के लिए सहायता की मांग की थी। चौहान ने मध्यप्रदेश के दिवंगत पत्रकारों को पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता का एलान किया है। राजस्थान में भी इसी तरह की मदद सरकार की ओर से की गयी है।


वेबिनार में मुंबई के सुरेंद्र शर्मा ने कहा कि कोरोना ने महाराष्ट्र में भी तबाही मचा रखी है लेकिन हम हाथ पर हाथ रखकर नही बैठ सकते। पत्रकारों को कोरोना को शिकस्त देने के लिए कमर कसनी होगी। 

दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार रमेश ठाकुर ने पत्रकारों की आर्थिक मदद के लिए अलग से कोष बनाने का स्वागत किया और नर्सों, डाक्टरों पुलिस कर्मियों की तरह पत्रकारों को भी कोरोना वारियर का दर्जा देने की मांग की। 

दिल्ली वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष अलक्षेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि कोरोना काल में मीडिया घरानों के मालिकों को भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। 

बंगाल की युवा पत्रकार पूजा दास ने कहा कि संगठनों को वर्तमान परिस्थितियों में पत्रकारों के सेवायोजन के बारे में भी प्रयास करना चाहिए।


वेबिनार में तकनीकी कारणों शामिल न हो सके आईएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीबी मल्लिकार्जुनैय्या ने पत्रकारों की सुरक्षा व नौकरी की गारंटी के लिए एकजुटता की अपील की। श्रीलंका प्रेस एसोसिएशन के कुर्लु करियाकरवाणा ने आईएफडब्लूजे के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए पत्रकारों के हितों के लिए साझा लड़ाई का संदेश दिया है।


कार्यालय सचिव भगवान भारद्वाज ने बताया कि श्रम दिवस पर आयोजित वेबिनार में छत्तीसगढ़ से आईएफडब्लूजे के वरिष्ठ साथी प्रवीर सिंह बदेशा, श्याम बाबू, बिहार से सुधांशु कुमार सतीश, झारखंड से अजय ओझा, यूपी से टीबीसिंह व राजेश महेश्वरी और दिल्ली से राजेश निरंजन ने अपनी बात रखी। वेबिनार में यूपी से राजेश मिश्रा, धर्मेंद्र सिंह, विकास शर्मा, आईएफडब्लूजे कोषाध्यक्ष रिंकू यादव, दिल्ली से विवेक त्यागी सहित 35 पत्रकार शामिल हुए। आईएफडब्लूजे के प्रधान महासचिव परमानंद पांडे ने कहा कि वेबिनार के सुझावों पर अमल करते हुए संगठन की ओर से काम शुरु किया जाएगा।

IFWJ's former Secretary General Andhare Passes Away


Andhare will always be remembered by the newspaper employees of the country


New Delhi, 1 May. Indian Federation of Working Journalist has deeply mourned the death of its former Secretary-General, an accomplished journalist and trade unionist Manohar P Andhare. He passed away on 29th April at Secunderabad (Telangana). He was 94. He was living with his son, who is also a journalist with a Hyderabad based English daily He was the editor of Yugdharma daily of Nagpur. 


He had worked hard for submitting the voluminous representations of the IFWJ before the Bhachhawat Wage Board. His contribution to fighting for the implantation of the Wage Board Award for the employees of the prestigious Law Journal ‘All India Reporter’ will always be remembered by the newspaper employees of the country. 


He was not keeping good health for some time. A few months back when Shri Prakash Dubey, the editor of Dainik Bhaskar, IFWJ leader, and former member of the Press Council of India Shri Prakash Dubey met him at Secunderabad, he informed the IFWJ President BV Mallikarjunaih and many others about the serious illness of Shri Andhare. He was a selfless fighter, and his commitment was to ensure respect for the dignity of work. 


Parmanand Pandey

Secretary-General: IFWJ

Sunday, 25 April 2021

राष्ट्रीय हिंदी दैनिक की धर्मशाला ईकाई में नहीं कोरोना प्रोटोकॉल!



धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)। कोरोना महामारी जिस विकरालता के साथ भयावह होती जा रही है, इससे बचाव के लिए उतनी ही सतर्कता और सुरक्षात्मक उपायों पर जोर दिया जाना भी जरूरी है। मगर हालात कुछ ऐसे हैं कि हर सुबह देश-दुनिया की खबरों खासकर करोना संक्रमितों और इसके कारण हुई मौतों के आंकड़ों के साथ से लोगों को जागरूक करने का काम करने वाले मीडिया संस्थान खुद इसके प्रति लापरवाह हैं। कोरोना संक्रमण के प्रति इनकी लापरवाही का ताजा उदाहरण देश के 11 राज्यों से प्रकाशित होने वाले प्रमुख हिंदी समाचार पत्र के हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा (धर्मशाला) स्थित प्रकाशन केंद्र में सामने आ रही है। सूत्रों के अनुसार गत 17 अप्रैल को संपादकीय विभाग के दो साथी कोपॉजिटिव पाए गए हैं। 


लापरवाही की हद देखिये संपादकीय विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहला केस सामने आने के 18 घंटे तक इसकी जानकारी न ही राज्य संपादक को दी और न ही प्रकाशन केंद्र प्रमुख को। जब इसकी जानकारी राज्य संपादक को हुई तो उन्होंने उक्त अधिकारी को फटकार लगाई। मगर विडंबना यह है कि राज्य संपादक भी फटकार लगाने के बाद शांत हो गए हालांकि उन्होंने यूनिट प्रबंधक को जानकारी तो दी लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल का दायित्व निभाने की जिम्मेदारी से वह भी पीछे हट गए। यह और बात है कि अपने लेखों में आए दिन वह कोरोना प्रोटोकॉल का ज्ञान जरूर बांटते रहते हैं। 


अखबार प्रबंधन ने इससे कोई सबक नहीं लिया। न तो अन्य कर्मचारियों की कोरोना जांच के लिए कोई कदम उठाया है और न कोरोना प्रोटोकॉल का दायित्व निभाने में कोई दिलचस्पी दिखाई है। नतीजा यह हुआ कि एक और संपादकीय साथी कोरोना पाजिटिव पाया गया। अब भी प्रबंधन ने कोई एहतियात नहीं बरती है। सूत्र बताते हैं कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि अखबार प्रबंधन यूनिट को माइक्रो कंटेनमेंट जोन घोषित किए जाने के डर से ग्रसित हो गया है। अन्य कर्मचारियों की जान को भी खतरे में डालने से गुरेज नहीं किया जा रहा। कोरोना काल में मीडिया कर्मियों ने वॉरियर्स की भूमिका बखूबी निभाई थी, लेकिन आज जो हालात एक प्रकाशन केंद्र में बने हैं उसकी गंभीरता को कब तक आर्थिक नुकसान के तराजू में तोल कर किसी की जान से खिलवाड़ किया जाता रहेगा।

कोरोनाः लॉकडाउन में महाराष्ट्र के पत्रकारों को लोकल ट्रेन में आने-जाने की अनुमति मिले, मीडियाकर्मियों की वेतन कटौती बंद हो



एनईयूआई ने लिखा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र 

महाराष्ट्र में कोरोना लॉकडाउन के दौरान राज्य के पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों को सरकार की ओर से लोकल ट्रेन में जाने इजाजत नहीं है। इस कारण मीडियाकर्मियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं नौकरी बचाने के लिए मीडियाकर्मियों को सैकड़ों रुपये फूँक कर और घंटो बर्बाद कर कार्यालय आना-जाना पड़ रहा है। यही नहीं मीडिया हाऊस सरकार के उस आदेश का भी पालन नहीं कर रहे, जिसके तहत कोरोना महामारी से बचने के लिए वर्क फ्रार्म होम लागू किया गया है। प्रदेश में जहां सरकार व निजी आफिसों में 15 प्रतिशत कर्मचारियों से ही काम लिए जाने का आदेश है, तो वहीं कई समाचार पत्र या तो सभी कर्मचारियों को कार्यालय आने को बाध्‍य कर रहे हैं या फिर इन आदेशों की आड़ में अपने कर्मचारियों को कार्यालय न बुलाकर उनकी वेतन कटौती कर रहे हैं। इससे मीडियाकर्मी काफी तनाव में हैं। उनके सामने आर्थिक दिक्कत भी आ खड़ी हुई है। इस स्‍थिति पर न्यूज़ पेपर इम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया (एनईयूआई) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तथा मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मांग की है कि जल्द से जल्द महाराष्ट्र के मीडियाकर्मियों और अखबारकर्मचारियों को लोकल ट्रेन में आने जाने की अनुमति दी जाए। मुख्यमंत्री को मेल से भेजे गए इस पत्र में एनईयूआई के अध्‍यक्ष रविन्द्र अग्रवाल और महासचिव धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने कहा है कि लॉकडाउन में मुम्बई, ठाणे, नई मुम्बई और पालघर सहित पूरे महाराष्ट्र में पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों को लोकल ट्रेन में आने-जाने की अनुमति नहीं दी गई है। इसके कारण समाचार पत्र कर्मचारियों और पत्रकारों को कार्यालय आने-जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही कई समाचार पत्र संस्थान अपने कर्मचारियों की वेतन कटौती भी कर रहे हैं। मीडियाकर्मियों की स्थिति ये है कि कई समाचार पत्र संस्थान अपने कर्मचारियों से वर्क फ्रॉम होम नियम का भी पालन नहीं कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि एक तरफ तो पत्रकारों ओर मीडियाकर्मियों को कारोना वारियर्स कहा जाता है, तो दूसरी तरफ इस तरह से उनके साथ भेदभाव करके उनके लिए दिक्‍कतें खड़ी कर दी गई हैं। 


यूनियन ने महराष्‍ट्र सरकार से आग्रह किया है कि जल्द से जल्द महाराष्ट्र के पत्रकारों और समाचार पत्र कर्मियों को उनका परिचय पत्र दिखाकर उचित टिकट या मासिक पास जारी करते हुए लोकल ट्रेन से कार्यालय आने जाने की अनुमति देने की कृपा करें। साथ ही सभी समाचार पत्र संस्थानों को ये निर्देश दें कि वे लॉकडाउन में वर्क फ्रार्म होम नियम का पालन करें और अपने सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया जाए। 


Saturday, 24 April 2021

Remembering Comrade Santosh Kumar


In the death of Com. Santosh Kumar (he always preferred to be called Comrade), today at the ripe old age of 94, the trade union movement of newspaper employees have suffered a huge loss. He is survived by his daughter and her family. He lived throughout his life in a refugee colony, which was allotted to him when he came to Delhi from Lahore after the partition of the country. With the death of his young son and later of his wife, he was a totally devastated person but his enthusiasm to participate in any struggle of workers remained undiminished.  

He was the President of the All-India Newspaper EmployeesFederation (AINEF) after the death of the veteran CPI leader S Y Kolhatkar. He was the Secretary-General of the Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) and led to many struggles of newspaper employees. One might have disagreed with Comrade Kumar, but he never had any personal animosity or rancour with anybody. Proficient in Hindi, Urdu, and English, he retired as the news editor from the Urdu daily Pratap. A Kashmiri by origin Comrade Santosh Kumar Gurtu was born in Lahore in 1927. Besides, journalism and trade unionism, he had in-depth knowledge of the Hindu religion. He despised superstations and laid emphasis on the rationality and morality of the religion. Widely travelled Com Santosh Kumar has written many books. His book ‘LahoreNama’ provides a vivid picture of the historical city of Lahore of the pre-partition days.

The grief and sorrow in tearing down the great culture of Lahore by the successive communal and bigoted governments of Pakistan are pensively reflected in the book. The posterity of journalists, opinion-makers, politicians, and diplomats will, without doubt, continue to be benefitted from the travelogue Lahore Nama. Although Comrade Santosh Kumar was the cardholder of the Communist Party of India, yet he never kowtowed with politicians, as he lived a saintly life. He used to regularly attend the joint meetings of the different media trade unions and everyone used to listen to him seriously. Alas! Now he will be no more available to guide and benefit us. Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) dips its banner to mourn the passing away of one of its former Secretary- Generals. We pray to God to give him rebirth to lead the working class, which was most dear to his heart.

Parmanand Pandey

Wednesday, 21 April 2021

हजारों लोगों को न्याय दिलाने वाले आशीष अग्रवाल खुद सिस्टम से हार मानकर दुनिया से चल बसे

 


सरकारी सिस्टम से जूझते हुए दुनिया को अलविदा कह गए कैंसरग्रस्त पत्रकार आशीष अग्रवाल



उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड डिवीजन और उत्तराखंड की पत्रकारिता में एक बड़ा नाम आशीष अग्रवाल, जिन्हें उनके सभी अपने अजीज "आशीष जी" के नाम से संबोधित करते थे, वह सरकारी सिस्टम से जूझते हुए बुधवार को दुनिया को अलविदा कह गए। एक तो कैंसर ग्रस्त और उस पर कोरोना काल में जिस तरह से प्रसार भारती ने उनके साथ निर्दयता पूर्ण व्यवहार किया, उससे वह इन दिनों बुरी तरह टूट गए थे। दैनिक अमर उजाला संस्थान बरेली और मुरादाबाद में एक लंबे अरसे तक आशीष अग्रवाल कार्यरत रहे। उत्तराखंड आंदोलन में जान डालने के लिए जब भी मीडिया का जिक्र आया तो आशीष अग्रवाल उससे अछूते नहीं रहे। उत्तराखंड आंदोलन में जिस तरह से टीम लीडर के रूप में बेहतरीन कवरेज कराके उन्होंने अमर उजाला अखबार की एक अलग पहचान बनाई, वह किसी से छिपी नहीं है।


        जरा सी बात पर अमर उजाला छोड़कर घर बैठ गए। उसके बाद फिर अमर उजाला में आए मगर अपने सिद्धांतों से कोई समझौता करने को तैयार नहीं हुए। उनका काम करने का एक अलग अंदाज उनकी एक अलग पहचान थी। देहरादून गए और साइड स्टोरी नाम से एक मैगजीन निकाली, मीडिया की प्रतिस्पर्धा में मैगजीन बहुत दिनों तक बाजार में नहीं टिक सकी। बाद में अमर उजाला के संपादकीय सलाहकार टीम में शामिल हो गए। इस बीच केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लंबे समय तक उनका छात्र जीवन में जुड़ाव रहने के कारण उनकी नियुक्ति प्रसार भारती ने डीडी न्यूज़ में कर दी। 


         श्री अग्रवाल को अगस्त 2018 में कैंसर रोग का शिकार होना पड़ा, हालांकि इससे पहले वह अपनी तकलीफ को एक वर्ष तक राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में दिखाते रहे। वहाँ के प्रमुख डाक्टर एके दीवान उन्हें कैंसर न होने की बात करते रहे। आखिर में बायोप्सी कराने के सलाह में उन्हें मामूली सा कैंसर बता दिया गया। खैर उनका बड़ा आपरेशन हुआ। उन्होंने दिल्ली के बी एल कपूर अस्पताल में अपना आपरेशन कराया। उसके बाद करीब एक माह बाद वह फिर अधिकारियों की अनुमति से आफिस गए। मगर डाक्टरों की एक माह बाद रेडियेशन की सलाह के बाद वह शारीरिक रूप से उस समय इस लायक नहीं रहे कि आफिस जा सकें। बाद में वह 2019 में अपने घर बरेली आ गए। 2020 में मार्च में लाक डाउन की घोषणा और कोरोना के प्रकोप के चलते जब सभी जगह work from home की घोषणा हुई तो उन्होंने अपने लिए वर्क फ़्रोम होम मांगा। इस बीच बरेली के सांसद और केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखकर श्री अग्रवाल का बरेली दूरदर्शन केंद्र या आकाशवाणी मे तबादला करनेकी सिफ़ारिश की, मगर यह पत्र भी प्रसार भारती की भूल भुलैया में खो गया, जिसका कोई जवाब भी सूचना मंत्री और केंद्रीय श्रम मंत्री को नहीं दिया गया। केंद्र सरकार के दो महत्वपूर्ण मंत्रियों के सिफ़ारिशी पत्र को भी नौकरशाहों ने इगनोर कर दिया। सरकारी सिस्टम से जूझते हुए आशीष अग्रवाल पूरी तरह टूट चुके थे।



     बुधवार की सुबह जिसने भी सुना, वही अवाक रह गया। परसों ही उन्होंने "झुमका बरेली का" व्हाट्सएप ग्रुप पर किसी ने तबियत हाल पूछा तो लिखा था- जी लग तो रहा है, अंतिम दौर है। एफबी पर पोस्ट डालते रहते थे, जीवन बड़ा कष्टमय है। अब समय आ चला है ....।

    यकीन नहीं हो रहा है कि हम सबके प्रिय आशीष जी अब हमारे बीच में नहीं है। उनका अनायास ही यूं चला जाना झकझोर गया। मुझे कोरोना हुआ तो दिन में कई कई बार व्हाट्सएप पर हालचाल पूछते रहते थे। कुछ दिन पहले मैसेज आया था कि कब आओगे। बरेली आना तो मुझसे मिलकर जाना। जरूरी बात करूंगा।

    उस दिन बहुत खुश हुए, जब उनको पता चला था कि मैं मजीठिया का केस जीत गया और मैंने एचटी मीडिया संस्थान की आरसी कटवा कर बरेली कलक्टर को भिजवा दी। घर बुलाया, पीठ थपथपाई, पत्नी से बोले ये है निर्मल। इसने कम्पनी की आरसी कटवा दी। ऐसे लोग मेरे साथ हैं।

     आज बुरी खबर मिली। मन बुरी तरह व्यथित है। पता नहीं कौन सी अपने मन की बात कहना चाहते थे, अफसोस मैं बरेली नहीं जा पाया और उनकी मन की बात नहीं सुन सका। आशीष जी की कमी हमेशा खलेगी। प्रभु उनकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे। मुश्किल है आपको भुला पाना आशीष जी।

ॐ शांति ॐ। 

निर्मल कांत शुक्ला

वरिष्ठ पत्रकार

मंडल अध्यक्ष

उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन

बरेली मंडल बरेली

मोबाइल-7017389915

Wednesday, 14 April 2021

कोरोनाः दिल्ली लेबर कोर्ट एक बार फिर हुआ ऑनलाइन, आज की डेट वालों की सुनवाई अब 17 को


नई दिल्ली, 14 अप्रैल। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए दिल्ली की लेबर कोर्ट में 9 अप्रैल से एक बार फिर से ऑनलाइन सुनवाई शुरू हो गई है। इससे पहले वह पिछले साल मार्चं में कोरोना लॉकडाउन के चलते बंद हो गया था। लॉकडाउन खुलने के बाद उसमें ऑनलाइन सुनवाई शुरू हुई थी और लंबे अंतराल बाद एक दिन आधी अदालतें खुलती थी, बाकि में ऑनलाइन सुनवाई होती थी। हाल ही में अदालत पूरी तरह से खुली थी। इसके अलावा आज बुधवार को अंबेडकर जयंती पर अवकाश होने की वजह से अब इस दिन होने वाले मामलों की ऑनलाइन सुनवाई 17 अप्रैल को होगी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण की बढ़ती लहर को देखते हुए दिल्ली की लेबर कोर्ट में फिजिकल सुनवाई बंद कर दी गई है। यह आदेश 24 अप्रैल तक के लिए है। कोरोना संक्रमण के बीच 9 अप्रैल को जब कई वकील और कर्मचारी लेबर कोर्ट पहुंचे तो वहां उन्हें इस आदेश का पता चला। इसके बाद उनमें से कई ने ऑनलाइन कार्रवाई में हिस्सा लिया। वहीं, 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती का अवकाश घोषित होने की वजह से सुनवाई नहीं हो पाई। अब इन सभी केसों की ऑनलाइन सुनवाई 17 अप्रैल को होगी। नीचे अदालत का नंबर और माननीय जज का नाम के साथ ऑनलाइन सुनवाई का लिंक दिया गया है। जिसके माध्यम से मजीठिया लड़ाके इस सुनवाई में शामिल हो सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिए उसके आगे दिए गए मोबाइल नंबर से प्राप्त की जा सकती है।