Wednesday, 9 January 2019

चुनाव से पहले सरकार ने प्रिंट मीडिया की विज्ञापन दरें 25 फीसदी बढ़ाई

नई दिल्‍ली। केंद्र सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्यूनिकेशन ने प्रिंट मीडिया को दिए जाने वाले विज्ञापनों की दरों में 25 प्रतिशत का इजाफा किया है। एक सरकारी बयान में कहा गया कि इस फैसले से क्षेत्रीय और भाषाई अखबारों सहित मझोले और छोटे अखबारों को बड़ा फायदा होगा। इससे पहले 2013 में दरों में इजाफा हुआ था. वर्ष 2010 की तुलना में उस समय 19 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी।

मंगलवार को सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्यूनिकेशन के द्वारा प्रिंट मीडिया के लिए मौजूदा दर ढांचे से अलग प्रिंट मीडिया के लिए विज्ञापन दर में 25 प्रतिशत इजाफा करने का फैसला किया है।

यह फैसला मंगलवार से ही प्रभावी हो गया है और तीन साल तक के लिए मान्य होगा. सरकार के मुताबिक ये फैसला सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित आठवीं दर संरचना समिति की सिफारिशों के आधार पर यह फैसला किया गया। समिति ने न्यूज प्रिंट मूल्यों में वृद्धि, प्रोसेसिंग चार्ज और अन्य पहलुओं पर विचार करते हुए ये सिफारिशें की है।

सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया में कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा,‘साल 2014 से ही हमने देखा है कि भाजपा ने मीडिया को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, मीडिया को चुप कराने की कोशिश की है और वे ऐसा मानते हैं कि वे मीडिया को खरीद सकते हैं क्योंकि उनके पास सत्ता है और क्योंकि उनके पास धनबल है।

कांग्रेस प्रवक्ता ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, ‘लेकिन उन्हें (भाजपा को) इस बात का जरा भी अहसास नहीं है कि पत्रकारिता को चुप नहीं कराया जा सकता, उसे खरीदा नहीं जा सकता और आज नहीं तो कल उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।’’

[साभार: hindi.thequint.com]

मजीठिया: हाथी को भारी पड़ी होशियारी, चींटी से खाई फिर मात

पैसे और पाखंड के मद में चूर हाथी को एक बार फिर चींटी ने चित्त कर दिया। ना तो फर्जी कागजात के आधार पर कब्जाए गढ़ के ऊपरी हिस्से पर बैठे कारिंदों की होशियारी काम आई और न ही भारी पैसा खर्च कर खड़े किए गए महंगे एवं नामचीन वकील। मध्यप्रदेश हाइकोर्ट की इंदौर बैंच के सामने झूठे तर्क नहीं चले और हाईकोर्ट ने पत्रिका की याचिका खारिज कर दी। साथ ही अपने फैसले को रिपोर्टेबल भी बना दिया ताकि कानून की मासिक पत्रिकाओं में फैसला छपकर ज्यादा से ज्यादा प्रचारित भी हो।

मामला वही है, मीडिया मुगल और स्वयंभू पत्रकारिता शिरोमणी के समाचार पत्र में काम करने वाली छोटी सी चींटी 'जितेंद्र सिंह जाट' का। जितेंद को पत्रिका में प्रथम नियुक्ति 01.11.2012 को मिली थी। जब स्वयंभू पत्रकारिता शिरोमणी के कारिंदों ने मजीठिया से बचने के लिए जून 2014 में सभी कर्मचारियों से जबरन एक प्री टाइप्ड कागज पर हस्ताक्षर करवाए तो जितेंद्र से भी करवाए गए। चींटियों की क्या बिसात। हाथी और उसके कारिंदे इन कागजों पर चींटियों के हस्ताक्षर पाकर मस्त हो गए। इतने मस्त कि होश ही नहीं रहा कि यही कागज बाद में चल कर उनके पस्त होने का कारण बनेगा। कागज तो कागज होता है, इसलिए कहा जाता है कि कागज बोलता है।

मजीठिया वेजबोर्ड संबंधी अधिसूचना के अनुसार किसी भी कर्मचारी से 20-जे की अंरटेकिंग 2 दिसंबर 2011 तक ही (यानी अधिसूचना 11.11.2011 से तीन सप्ताह के भीतर) ली जा सकती थी। पत्रिका ने सभी चींटियों से जिस कागज पर जून 2014 में जबरन साइन करवाए थे, उन्हें ही 20-जे की अंडरटेकिंग बताया। ग्वालियर जितेंद्र ने लेबर कमीश्नर के यहां मजीठिया के लिए 17(1) का आवेदन लगाया तो पत्रिका ने जवाब में कह दिया कि जितेंद्र ने 20-जे के तहत विकल्प दे रखा है इसलिए वे मजीठिया के तहत वेतनमान पाने के हकदार नहीं हैं।

जितेंद्र ने अपने आवेदन के साथ 22 लाख रुपये बकाया होने का ड्यू-ड्रॉन भी लगाया था। मदमस्त हाथी के डेढ़ सयाने कारिंदे अपने जवाबों में 20-जे का झुंझुना बजाते रहे लेकिन उन्हें बकाया पर आपत्ति का होश ही नहीं आया। हाथी और हाथीपुत्र को यह समझाते रहे कि मामला 20-जे के आधार पर ही खारिज हो जाएगा।  सयाने कारिंदे जून 2014 में लिए गए जिस कागज को दिखाकर फूले नहीं समा रहे थे, उसी कागज पर हमारी समझदार चींटी की नजरें टिकी थीं। चींटी ने इसी कागज को अपना हथियार बनाया और लेबर कमिश्नर के यहां हाथी को इसी कागज के आधार पर चित्त कर दिया।

दरअसल, जितेंद्र कंपनी में भर्ती ही उस समय हुए थे जब 20-जे के तहत विकल्प देने की तीन सप्ताह की अवधि समाप्त हो गई थी। लेबर कमीश्नर ने माना कि जितेंद्र से तो 20-जे का विकल्प लिया ही नहीं जा सकता था। जितेंद्र द्वारा बकाया मांगे गए 22 लाख रुपये के संबंध में पत्रिका ने कुछ कहा नहीं था इसलिए लेबर कमीश्नर ने पत्रिका पर बकाया माना और रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कर दिया। पत्रिका ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी और अब हाईकोर्ट में कहा कि बकाया को लेकर भी विवाद था। 20-जे का झुंझुना भी बजाया।

उच्च न्यायालय ने भी सुनवाई के बाद माना कि 20-जे के तहत विकल्प देने की निर्धारित तीन सप्ताह की अवधि समाप्त होने के बाद किसी कर्मचारी से अंडरटेकिंग ली ही नहीं जा सकती। यदि ली गई है तो वह निरर्थक है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि जब लेबर कमीश्नर के सामने बकाया राशि को लेकर आपत्ति नहीं की तो अब ऐसी आपत्ति को स्वीकार नहीं किया जा सकता।


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बीमार पिता की सेवा के लिए छुट्टी मांगने पर नौकरी से ही छुट्टी कर दी!


(देखें व्‍हाट्सऐप पर जारी आदेश)
खबर हिन्दुस्तान अखबार के मुरादाबाद संस्करण से है जहां अपने वरिष्ठ मार्केटिंग अधिकारी को इसलिए निकाल दिया, क्योंकि उसने बीमार पिता की सेवा के लिए छुट्टी मांगी थी। हिंदुस्तान मुरादाबाद के मार्केटिंग (विज्ञापन विभाग) में बतौर अपकंट्री हेड काम करने वाले वरिष्ठ अधिकारी बिमल कुमार अग्रवाल को उनके पिता की तबियत खराब होने पर छुटटी माँगने पर बुरी तरह से खरी खोटी सुनाया गया।

साथ ही कहा गया कि कम्पनी की गिरती हुई आर्थिक हालात के कारण और त्यौहारी सीजन के मद्देनजर दो माह तक किसी भी प्रकार की छुट्टी नहीं दी जाएगी। इसके बाद सभी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए एक तुगलकी फरमान व्‍हाट्सऐप के द्वारा जारी कर दिया गया कि दो माह तक किसी को छुट्टी नहीं मिलेगी। इसके बावजूद अगर किसी ने छुट्टी लेने की कोशिश की तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।

इसी कड़ी में जब बिमल कुमार के पिता की तबियत बिगड़ी और उन्होंने अपनी छुट्टी का आवेदन लगाया तो उनकी कंपनी से परमानेंट छुट्टी कर दी गई। बताया यह जाता है कि यह तो केवल एक बहाना था। आजकल हिंदुस्तान कंपनी पर मजीठिया वेजबोर्ड के बढ़ते हुए केसों के कारण कंपनी किसी न किसी बहाने से पुराने कर्मचारियों एवं अधिकारियों को निपटाने में लगी हुई है।


[साभार: भड़ास4मीडिया]

Tuesday, 8 January 2019

मजीठिया: महाराष्‍ट्र में समाचार पत्रों की फिर से होगी जांच

मुंबई। पत्रकारों और समाचारपत्र कर्मियों के लिए गठित जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद भी अमल में नहीं लाया जा सका है। महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त की अध्यक्षता में आयोजित त्रिपक्षीय समिति की बैठक में इस पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कामगार आयुक्त राजीव जाधव ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को अमल में लाया गया या नहीं, इसकी जांच के लिए 15 दिनों के अंदर 6 टीमें बनाई जाएंगी। ये टीमें सभी वर्तमान समाचार पत्रों की फिर से जांच करेंगी और फील्ड आफिसर पूरी जांच रिपोर्ट कामगार आयुक्त को देंगे।

महाराष्ट्र में जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को किसी भी समाचार पत्र प्रतिष्ठान द्वारा सही तरीके से लागू नहीं किया गया है। पत्रकारों और मीडियाकर्मियों पर विविध प्रकार के दबाव डाले जा रहे हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी मीडियाकर्मी और पत्रकार जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश के अनुसार अपना बकाया वेतन और एरियर ना मांगे इसके लिए उन्हें डराया जा रहा है। इस बारे में एनयूजे की महाराष्ट्र अध्यक्ष शीतल करदेकर ने कामगार आयुक्त का ध्यान दिलाया और कहा कि बार बार सर्वोच्च न्यायालय और श्रम मंत्रालय को फर्जी रिपोर्ट कामगार विभाग द्वारा भेजी जा रही है। इसके लिए सभी वर्तमान समाचार पत्रों की फिर से और स्पष्ट जांच कराई जाए।

इसका बीयूजे के इंदर कुमार जैन ने भी समर्थन किया। इस बैठक में ध्यान दिलाया गया कि समाचार पत्र प्रतिष्ठानों द्वारा जान बूझकर अपने प्रतिष्ठानों की गलत बैलेंसिट देकर ग्रेडेशन पर मतभेद पैदा किया जा रहा है। सबसे ज्यादा मतभेद समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के ग्रेडेशन को लेकर होता है। इसके लिए जरुरी है कि वर्तमान सभी समाचार पत्रों की बैलेंसशीट आयकर विभाग से मंगाई जाए या दिल्ली स्थित डीएवीपी, कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय से मंगवाया जाए। इससे समाचार पत्रों का ग्रेडेशन तय हो सकेगा। यह मुद्दा भी शीतल करदेकर ने उठाया।

आठ महीने बाद मजीठिया वेतन आयोग को अमल में लाने के लिए पक्षीय समिति की बैठक महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त के मुंबई स्थित कार्यालय में बुलाई गई थी। इसकी अध्यक्षता खुद नए कामगार आयुक्त राजीव जाधव ने किया। इस बैठक में मालिकों के प्रतिनिधि के रूप में सकाल के मेदनेकर उपस्थित थे जबकि मीडियाकर्मियों और पत्रकारों के प्रतिनिधि के रुप में एनयूजे महाराष्ट्र की शीतल करदेकर, बीयूजे के मंत्रराज पांडे, इंदर जैन आदि उपस्थित थे।

कामगार आयुक्त राजीव जाधव ने सबसे पहले वर्तमान 129 समाचार पत्रों की जिनके बारे में दावा किया गया है कि इन्होंने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश को लागू नहीं किया है, उनकी जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। इसके लिए 15 दिनों में 6 जांच टीमें भी बनाने का निर्देश दिया गया है। दो महीने में यह जांच पूरी करने का भी नये कामगार आयुक्त ने निर्देश दिया है। साथ ही कामगार आयुक्त ने कहा कि समाचार पत्र कर्मियों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। नए कामगार आयुक्त ने यह भी कहा कि अगर किसी भी समाचार पत्र प्रबंधन ने अपने मीडियाकर्मियों से यह लिखवाकर लिया है कि उसे मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ नहीं चाहिए और अगर वह पात्र है तब भी उसे माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश के अनुसार मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ मिलेगा।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५


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Monday, 7 January 2019

बड़ी खबर: अब अंशकालिक संवाददाताओं को भी मिलेगा मजीठिया का लाभ




देशभर के समाचार पत्रों में कार्यरत उन अंशकालिक संवाददाताओं के लिए जो समाचार पत्रों में समाचार भेजने के बदले नाम मात्र भुगतान पाते थे के लिए एक अच्छी खबर आई है। अब अंशकालिक संवादताताओं को भी समाचार पत्र कर्मचारी मानते हुए जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देने का आदेश मेरठ की एक श्रम न्यायालय ने दिया है। इस श्रम न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को संज्ञान में लेते हुए यह आदेश सुनाया है।

श्रम न्यायालय ने हिन्दुस्तान के अंशकालिक संवाददाता संदीप नागर द्वारा दायर एक याचिका पर यह निर्णय सुनाया है। हालांकि यह भी स्पष्ट कर दूं कि यह जरुरी नहीं है कि एक श्रम न्यायालय दुसरे श्रम न्यायालय के दिए गए फैसले को अपने यहां लागू करे ही। लेकिन इससे एक रास्ता जरुर अंशकालिक संवाददाताओं के लिए खुल गया है।

बताते हैं कि मेरठ के रहने वाले संदीप नागर हिन्दुस्तान समाचार पत्र में अंशकालिक संवाददाता थे। उन्होंने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपना बकाया पाने के लिए श्रम विभाग में आवेदन किया था। इस पर हिन्दुस्तान प्रबंधन ने यह दावा किया कि संदीप नागर पेशे से एक अध्यापक है और वह श्रमिक की परिभाषा में नहीं आता है। श्रम विभाग ने इस मामले को श्रम न्यायालय में भेज दिया। इसी बीच कंपनी इलाहाबाद उच्च न्यायालय गई और दावा किया कि श्रमायुक्त मेरठ को श्रम न्यायालय में इस मामले को भेजने का अधिकार नहीं है। संदीप नागर के एडवोकेट ने दावा किया कि शासन द्वारा मेरठ के उपश्रमायुक्त को इसके लिए अधिगृहित किया गया है और यह कारवाई वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17(2) के तहत सही और वैधानिक है। साथ ही यह भी कहा गया कि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पारित निर्णय से यह स्पष्ट है कि श्रम न्यायालय मेरठ को वाद सुनने और निर्धारित करने का पूरा अधिकार प्राप्त है। इस मामले की सुनवाई करते हुए श्रम न्यायालय मेरठ ने पाया कि वादी संदीप नागर के मुख्य व्यवसाय टीचिंग का उल्लेख करते हुए भी हिन्दुस्तान प्रबंधन ने दी गई शर्तों के अनुसार समाचार प्रेषित करने और उसके बदले पांच हजार रुपये भुगतान किए जाने का उल्लेख है।
श्रम न्यायालय ने माना कि इससे स्पष्ट है कि श्रमिक और सेवायोजक के मध्य एक संबंध था और सेवायोजक द्वारा लिए गए कार्यों का भुगतान भी वादी को किया जाता है। श्रम न्यायालय ने साफ आदेश दिया है कि उक्त विवेचना के आधार पर सेवायोजक द्वारा उठाई गई सभी आपत्तियों का निस्तारण उनके विरुद्ध व श्रमिक के पक्ष में लिया जाता है। इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 23 जनवरी को रखी गई है। यह आदेश पीठासीन अधिकारी श्रीराम सिंह ने दिया है। फिलहाल संदीप नागर के पक्ष में आए इस निर्णय से देश भर के समाचार पत्रों में कार्यरत अंशकालिक संवाददाताओं के लिए जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ पाने का एक रास्ता खुला है।

शशिकांत सिंह 
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५

एक मार्मिक अपील... इस मिशन को बचा लीजिए



आज से लगभग दस वर्ष पहले जब स्व. भवानी शंकर ने मुझसे संपर्क कर “रीजनल रिपोर्टर” मासिक पत्रिका निकालने का इरादा इजहार किया तो मेरी ठंडी प्रतिक्रया का शायद उसे पहले से ही अंदाजा था। हालांकि उसके दृढ़ निश्चय और मेरी कायम आशंका के बाबजूद मैंने साथ देने का वायदा कर दिया था। मुझे उम्मीद थी कि कुछ महीने बाद इसका भूत उतर जाएगा और बाजार के दबावों के कारण जल्दी ही “मिशन”कुरुकुरु स्वाहा हो जाएगा। क्योंकि कुछ एक पत्रिकाओं का हम हश्र देख चुके थे जिनसे हम जुड़े थे। दूसरी आशंका मुझे यह भी थी कि यदि येनकेन प्रकारेण पत्रिका जारी भी रही तो भी सामग्री की गुणवत्ता की निरंतरता बनाए रखना बेहद चुनौती पूर्ण होता है। अच्छे लेखकों से निरंतर लिखाते रहना उस समय असंभव सा प्रतीत हो रहा था। परन्तु जब पत्रिका निकली फिर एक के बाद एक निकलती चली गई... बीच में थोड़ा बहुत इधर...उधर के अतिरिक्त पत्रिका की निरंतरता और सामग्री की उत्क्रिस्टता लगातार बनी रही। भवानी का सपना इसे सदस्यता आधारित पत्रिका बनाने का था... ताकि विज्ञापनों पर निर्भरता और उसके कारण समझौतों से बचा जा सके।

साढ़े छह सात साल तक भवानी ने तमाम दबावों के बाबजूद अपना मिशन जारी ही नहीं रखा उसको लगभग आंदोलन का रूप भी दिया... इन्हीं दबावों के कारण उसने स्वस्थ्य से समझौता भी किया और अंततः उनकी मृत्यु का कारण भी यह दबाव बहुत हद तक रहा। उनके शोक में उनके पिता श्री उमाशंकर भी उसी दिन चल बसे। इसके बाद पत्रिका का सम्पूर्ण जिम्मा भवानी की पत्नी गंगा अस्नोड़ा थपलियाल, जोकि पेशे से पत्रकार थी और कुछ साल से सम्पूर्णता में पत्रिका के लिए काम कर रही थे, के कन्धों पर आ गया। सारे परिवार, बूढ़ी सास, दो बच्चों की जिम्मेदारी के साथ इस पत्रिका को चलाने में गंगा असनोडा थपलियाल ने खुद को झोंक दिया। इस दौर में हम जैसे लोग चाह कर भी कुछ ज्यादा कर नहीं पाए इस पत्रिका और गंगा की मदद की दृष्टि से देखें तो। अक्‍टूबर में भवानी शंकर के जन्मदिवस पर पत्रिका के दसवीं वर्षगांठ पूरी होने पर एक कार्यक्रम था। (उसमें भी श्रीनगर ना जा पाया)। इस दौरान पत्रिका पर एक और कुठाराघात हुआ। भाई ललित मोहन कोठियां जोकि एक मूर्धन्य पत्रकार और एक सोने जैसे आदमी थे, पत्रिका के वरिष्ठ सहयोगी थे, भी चल बसे। 
दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर पिछले दस साल में पत्रिका में प्रकाशित कुछ चुनिन्दा लेखों के पुनर्प्रकाशन का एक संकलन निकाला गया जोकि एक सुन्दर कलेवर में उपलब्ध है।

इस दौरान गंगा की तबियत भी खराब हो गई। लंबे समय बाद गंगा से कल मुलाक़ात हुई। गंगा को पहली बार मैंने चिंतित देखा। इतने गंभीर झंझावातों को झेलने के बाबजूद यह आयरन लेडी विचलित नहीं हुई थी।

इस दौरान कुछ लोगों ने संपर्क कर पत्रिका के अधिकार खरीदने की मुहिम भी चलाई। परंतु गंगा का इरादा इस पत्रिका को बेचने का इसलिए नहीं है क्योंकि स्व. भवानी शंकर के सपने को वाह हरगिज नहीं तोड़ना चाहती। जो लोग रीजनल रिपोर्टर को जानते हैं उन्हें भी लगता है कि यह पत्रिका प्रकाशनों के मरुस्थल में एक नखलिस्तान की तरह है।

आइए इस मिशन को बचाने में हमारा सहयोग करें। अपने सामर्थ्य से पत्रिका को सहयोग करें और कमसे कम इसे आर्थिक दबावों से बचाइए।

गंगा का फ़ोन नंबर है: 8126921909 and 9412079290
Account Number :
34956580402..SBI Srinagar Garhwal..
IFASC: SBIN0003181

[सहयोगाकांक्षी : एस. पी. सती]

उत्तरजन टुडे ग्रामीण पत्रकारिता पुरस्कार


प्रदेश के समस्त ग्रामीण पत्रकारों से आवेदन आमंत्रित

उत्तरजन टुडे पत्रिका प्रदेश के सामाजिक सरोकारों को समर्पित है। हमारा प्रयास रहा है कि हम अपनी पत्रिका को कुछ हटकर समाज के सामने लाएं जो निष्पक्ष हो, सकारात्मक हो, रचनात्मक हो और अपनी भावी पीढ़ी के मार्गदर्शन करने में सहायक हो। इस पत्रिका के तीन वर्ष फरवरी में पूर्ण हो रहे हैं। पत्रिका के संपादक पीसी थपलियाल के अनुसार इस मौके पर हमने यह तय किया है कि विषम परिस्थितियों में कार्य करने वाले 3 ग्रामीण पत्रकारों को पुरस्कृत किया जाए। पहले चरण में हमने प्रिंट मीडिया को लिया है। यह प्रयोग है और जल्द ही हम इसमें न्यूज चैनल, फोटोग्राफर और सोशल मीडिया को भी शामिल करेंगे। ग्रामीण पत्रकारों से जनसरोकारों, महिला विमर्श और उत्पादकता के सवाल पर की गई रिर्पोटिंग व लेख आमत्रित हैं। ग्रामीण पत्रकारों से अनुरोध है कि वे अपने पिछले एक साल की अवधि के दौरान रचनात्मक लेखों के अलावा उत्पादकता, पर्यावरण संबंधी समाचारों की छाया प्रति हमें 9410960088, 9412052338 पर या हमारी मेल uttarjan.today@gmail.com भेज सकते हैं। अधिकतम पांच प्रकाशित लेख भेजे जा सकते हैं। पुरस्कार का निर्णय पूर्व आईएएस कमिश्नर एसएस पागती की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा। समिति के सदस्य समाज के विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गज हैं। आवेदन की अंतिम तिथि 3 फरवरी है। इसके बाद कोई भी दावेदारी स्वीकार नहीं की जाएगी। समिति का फैसला ही अंतिम होगा।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]