Friday, 25 February 2022
अंशदान में देरी से हुए नुकसान की भरपाई करेंगे नियोक्ता
Thursday, 24 February 2022
सर्विस कंडिशन चेंज होने पर कर्मचारियों का ट्रांसफर अवैध: सुप्रीम कोर्ट
किसी कंपनी द्वारा पहले कर्मचारियों पर त्यागपत्र देने के लिए का दबाव बनाने और त्यागपत्र ना देने पर कर्मचार्रिेयों को जबरिया काफी दूर ट्रांसफर करके नौकरी छोड़ने केा मजबूर करने वाली कंपनियों की चाल को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने अवैध करार दिया है। यह फैसला ट्रांस्फर को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वाली निजी कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है। एमएस कापरो इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड बनाम सुरेंद्र सिंह तोमर एवं अन्य के मामले में सुप्रीमकोर्ट के जस्टीस एमआर शाह व एएस बोपन्ना की खंडपीठ ने 26 अक्तूबर, 2021 को यह फैसला सुनाया है। इस मामले में पाईप बनाने वाली मध्य प्रदेश की एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों की संख्या कम करने के गलत इरादे से पहले अपने कर्मचारियों को इस्तीफा देने का दबाव बनाया, जब वे ना माने तो एक साथ नौ कर्मचारियों का तबादला मौजूदा कार्यस्थल से करीब 900 किमी. दूर राजस्थान में कर दिया गया। इतना ही नहीं इन कर्मचारियों को पाइप बनाने की यूनिट से नट बनाने वाले यूनिट में भेजा गया, जिसे कोर्ट ने सर्विस कंडिशन में बदलाव मानते ही औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 9-ए का उल्लंघन माना। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने ना केवल सभी कर्मचारियों सिर्फ ट्रांसफर रद्द करने के लेबर कोर्ट के फैसले को सही करार दिया, बल्कि चार सप्ताह के अंदर सभी कर्मचारियों को एरियर व वेतन देने, फिर से काम पर रखने और अन्य सभी सुविधाएं देने के अलावा प्रत्येक कर्मचारी को 25-25 हजार रुपए हर्जाना देने का भी आदेश दिया है।
मध्य प्रदेश के दिवास की कापरो इंजिनियरिंग इंडिया लि. में लोहे के पाईप बनाए जाते हैं। इस कंपनी के नौ कर्मचारियों ने कंपनी में 25 से 30 साल तक नौकरी की। कर्मचारियों का कहना था कि कंपनी प्रबंधन ने उनसे त्यागपत्र मांगा मगर उन्होने त्यागपत्र नहीं दिया जिसके बाद कंपनी प्रबंधन ने 13 जनवरी 2015 को कर्मचारियों का ट्रांसफर दिवास से राजस्थान के चोपंकी कर दिया, जो दिवास से लगभग 900 किलोमीटर दूर है। इस ट्रांसफर से सभी कर्मचारी परेशान हो गए, क्योकि जिस जगह तबादला किया वहां 40 से 50 किमी. के दायरे में कोई रिहायशी इलाका तक नहीं था। ऐसे में इस जगह पर जाने से कर्मचारियों के बच्चों से लेकर माता-पिता परेशान होने वाले थे। इतना नहीं जिस नई इकाई में इन कर्मचारियों का ट्रासंफर किया गया वहां पाईप नहीं बल्की नट बोल्ट बनता था। ऐसे में उनका कार्य भी बदला जा रहा था। इन कर्मचारियों का विवाद पहले लेबर कोर्ट गया, जहां से उन्हें राहत मिली। कंपनी ने लेबर कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चैलेंज किया और वहां भी लेबर कोर्ट के फैसले को सही माना गया। ऐसे में कंपनी ने सुप्रीमकोर्ट की शरण ली, मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी कर्मचारियों के हक में फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इन कर्मचारियों पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाने के लिए सैकड़ों किमी. दूर ऐसे जगह ट्रांसफर करना करना जहां ना तो उनके लिए रहने की व्यवस्था थी और ना ही उनको पहले वाला कार्य दिया गया था। इस दौरान माननीय सुप्रीमकोर्ट ने राजस्थान पत्रिका प्रा.लि. प्रेसिडेंट वर्सेज डायरेक्टर से जुड़े एक मामले का भी हवाला दिया और कहा कि यह प्रजेंट केस नेचर ऑफ वर्क, सर्विस कंडीशन में बदलाव और गलत तरीके से ट्रांसफर तथा मौलिक अधिकार से जुड़ा है, इसलिए नौ कर्मचारियों का राजस्थान में किया गया ट्रांसफर रद्द करने और वेतन सहित पूर्व के सभी लाभ देने का लेबर कोर्ट का फैसला सही था। वहीं सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में चार सप्ताह के अंदर सभी कर्मचारियों को एरियर और वेतन देने तथा उनको फिर से काम पर रखने के अलावा अन्य सभी सुविधाएं देने सहित प्रत्येक कर्मचारी को 25-25 हजार रुपए अतिरिक्त देने का आदेश भी दिया है। इस आदेश से उन समाचार पत्र कर्मचारियों को भी लाभ मिल सकता है जिनका इसी तरह से कंपनियों ने त्यागपत्र नहीं देने पर ट्रांसफर किया है, बशर्ते उनके तबादले की परिस्थितियां इस केस से मेल खाती हों।
शशिकांत सिंह
उपाध्यक्ष
न्यूज पेपर एम्पलॉयज यूनियन आफ इंडिया (एनएयूआई)
9322411335
Thursday, 3 February 2022
पहली बार किसी दल ने अपने घोषणा पत्र में पत्रकारों को जगह दी
कांग्रेस के घोषणा पत्र में पत्रकारों के लिए योजना
विचारक और सामाजिक चिंतक प्रेम बहुखंडी का आभार
उत्तराखंड कांग्रेस के घोषणा पत्र को बनाने में पार्टी के थिंक टैंक प्रेम बहुखंडी की अथक मेहनत रही है। उन्होंने इस घोषणा पत्र में पहाड़ और उत्तराखंडित को समहित करने का भरसक प्रयास किया है। सबसे अलग बात यह है कि उन्होंने गोदी मीडिया से इतर छोटे और मझोले पत्रकारों की सुध ली है। चारण, भाट और दलाल पत्रकारों की तो किसी भी सरकार में मौज होती है लेकिन इनकी संख्या पत्रकारों की कुल संख्या का 10 प्रतिशत ही होता है। 90 प्रतिशत पत्रकार आज भी ईमानदारी से और कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे हैं।
कांग्रेस घोषणा पत्र में कंस्ट्रक्शन वर्कर्स बोर्ड 1996 की तर्ज पर पत्रकार बोर्ड का गठन करने की बात की गयी है, मसलन जैसे हर प्रकार के कंस्ट्रक्शन की कुल कीमत का कुछ प्रतिशत कंस्ट्रक्शन वर्कर्स बोर्ड के पास जाता है, उसी प्रकार सरकार द्वारा, जितने भी विज्ञापन दिए जाएंगे, उसका कुछ प्रतिशत पत्रकार वेलफेयर बोर्ड के पास जाएगा। इससे पत्रकारों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी, पत्रकारिता के भी स्वतंत्र होने की उम्मीद है। पत्रकारों के लिए सामाजिक सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। भाजपा सरकार में सच्चे पत्रकार सबसे अधिक असुरक्षित रहे हैं। पत्रकारों पर हमले, उनकी हत्या, झूठे मुकदमे, राजद्रोह समेत कई तरह से उनका उत्पीड़न किया गया है। ऐसे में कांग्रेस के घोषणा पत्र में पत्रकारों के लिए जगह दिया जाना सराहनीय है बशर्ते सरकार आने के बाद इस पर अमल भी हो।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]