शिमला, 10 अप्रैल। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति त्रिलोक सिंह चौहान की एकल पीठ ने एक पत्रकार की मान्यता निलंबित किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर हिमाचल प्रदेश में पत्रकारों को मान्यता के नियमों में संशोधन करने और अब तक जारी मान्यता आदेशों पर पुनर्विचार व संशोधन करके नियमों का सख्ती से पालन करते हुए नए सिरे से मान्यता देने के आदेश जारी किए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में उन पत्रकारों को भी मान्यता दिए जाने को लेकर सवाल उठाए हैं, जिनकी अखबार की प्रसार संख्या हिमाचल में नगन्य है या फिर जो हिमाचल में प्रकाशित ही नहीं होते हैं।
इसके अलावा कोर्ट ने शिमला में अपना मकान/फ्लैट होने के बावजूद सरकारी आवास कब्जाए बैठे पत्रकारों को यह सुविधा तुरंत छोड़ने के आदेश जारी किए हैं। वहीं एक ही प्रकाशन/ समाचारपत्र से एक ही पत्रकार को राज्य या जिला स्तर की मान्यता देने के नियमों का सख्ती से पालन करने को कहा है। साथ ही नई मान्यता के आवेदन या मान्यता के नवीनिकरण की मंजूरी/इनकार करने की समयसीमा तय करने आवेदन रद्द करने की स्थिति में ऐसा करने का कारण कलमबद्ध करने का प्रावधान करने के आदेश भी जारी किए हैं। वहीं संबंधित विभाग को मान्यता के नियमों का सख्ती का पालन करने को कहा है और अब तक जारी किए गए सभी मान्यता आदेशों की समीक्षा करके सभी आवेदकों को नियमों का अक्षरश: पालन करके नए सिरे से मान्यता आदेश जारी करने को कहा है। इन आदेशों के पालन के लिए संबंधित विभाग को छह माह का समय दिया गया है और कोर्ट में इस पर अगली सुनवाई 9 जुलाई को रखी गई है।
हिमाचल हाईकोर्ट ने विजय गुप्ता बनाम हिमाचल सरकार एवं अन्य के मामले में लंबित सीडब्ल्यूपी 7487/2012 पर नौ अप्रैल को जारी आदेशों में याचिकाकर्ता पर चल रहे आपराधिक मुकदमों के चलते उसकी मान्यता निलंबित करने के संबंधित विभाग के फैसले को सही ठहराते हुए पत्रकार के आचरण और पत्रकारिता के आदर्शों को सर्वोच्च माना और याचिकाकर्ता को अपने पर लगे आरोपों से बाइज्जत बरी होने तक राहत देने से इनकार कर दिया। साथ ही न्यायालय ने पत्रकार मान्यता और पत्रकारों के आचरण को लेकर कुछ अहम टिप्पणियां की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार से है:
कोर्ट ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि मीडिया को अक्सर न्याय का दास, समाज व न्यायपालिका का प्रहरी, न्याय का यंत्र तथा सामाजिक सुधारों का उत्प्रेरक कहा जाता है। इसलिए, सभी मीडिया हाउसेज, समाचार चैनलों, पत्रकारों और प्रेस की यह अत्यंत जिम्मेवारी है कि वो जिम्मेदार तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे। कोर्ट ने प्रकाश खत्री बनाम मधु त्रेहन मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि प्रेस की शक्ति लगभग परमाणु शक्ति की तरह है, जो निर्माण करती है तो वहीं विनाश भी कर सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए, यह जरूरी है कि याचिकाकर्ता की तरह एक समाचारपत्र मालिक/संपादक के कंधे पर अत्याधिक जिम्मेदारी है और यदि उसका अपना आचरण जांच के दायरे में है, तब जाहिर है, उसकी मान्यता को निलंबित करना होगा।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय प्रेस ने, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश में विभिन्न चुनौतियों और परीक्षा की घड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी खोजी पत्रकारिता ने ऐसी महत्वपूर्ण घटनाओं को उजागर किया, जो अन्यथा किसी के ध्यान में ही नहीं आ पातीं। कोर्ट ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों में लिखा है कि हालाँकि, जैसा कि अन्य संस्थाओं के साथ आम है, कुछ परेशान करने वाली प्रवृत्तियाँ इस संस्थान (प्रेस) में भी व्याप्त हैं। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि इस तरह के एक गौरवशाली संस्थान को कमियों से पार पाने की ललक होगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह कहते हुए राहत देने से इनकार किया कि जिसका अपना ही व्यवहार संदेह के घेरे में है, उसकी मान्यता वापस लेने के निर्णय को तब तक नहीं वापस लिया जा सकता, जब तक कि वो अपने पर लगे आरोपों से बरी नहीं हो जाता।
फैसले में लिखा गया है कि अन्य संस्थानों की तरह, पत्रकारिता की संस्था भी चरमरा रही है। जहां समाज को दिशा देने और जनमत निर्माण में प्रेस का कार्य एवं जिम्मेदारी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, तो वहीं पत्रकारों की कुकुरमुत्तों की तरह वृद्धि के कारण और पत्रकारों के बीच गलाकाट प्रतियोगिता के चलते उनके मानकों में गिरावट आ रही है, जो पत्रकारिता की संस्था की गिरावट का कारण है। एक अन्य महत्वपूर्ण टिप्पणी में कोर्ट ने कहा है कि इसी तरह राज्य द्वारा कुछ तथाकथित पत्रकारों को मान्यता दी गई है, जो वास्तविक अर्थों में पत्रकार नहीं हैं। वो केवल उन सुविधाओं का आनंद लेते हैं, जो कि मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए उपलब्ध हैं।
कोर्ट ने इस सब बातों को ध्यान में रखकर आदेश जारी करते हुए संबंधित विभाग को मान्यता की सूची की समीक्षा करके इसे संशोधित करके, यह सुविधा केवल वास्तविक और विश्वसनीय संवाददाताओं को देने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा मान्यता के नियमों का कड़ाई से पालन ना होने को लेकर भी कोर्ट ने टिप्पणियां करते हुए कुछ गाइडलाइन भी जारी की हैं। कोर्ट की टिप्पणियां इस प्रकार से हैं:
कोर्ट के अनुसार पत्रकारों को उनके समाचारपत्र के हिमाचल प्रदेश में प्रसार के आधार पर मान्यता का नियम दरकिनार करके कुछ ऐसे सामाचारपत्रों के संवाददाताओं को भी मान्यता जारी की गई है, जिनके समाचारपत्र का प्रसार हिमाचल प्रदेश में नगण्य है और कुछ मामलों में तो ये सामाचार प्रदेश में बिकते ही नहीं हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे समाचारपत्रों के रिपोर्टर्स को मान्यता दी गई है, जिनकी हिमाचल में प्रसार संख्या नगण्य है, मगर देश के बाकी हिस्सों में उनकी अच्छी मौजूदगी है। कोर्ट ने इन तथ्यों के आधार पर आदेश जारी किए हैं कि यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य स्तर पर मान्यता देने के लिए हिमाचल प्रदेश में प्रसार संख्या को आधार माना जाए, नाकि महज संबंधित अखबार के संपादक के नियुक्तिपत्र को।
यद्यपि तत्कालीन नियम 2002 को मौजूदा नियमों में संशोधित किया गया है, मगर इनमें पत्रकारों की मान्यता के आवेदन और नवीनिकरण को लेकर समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है। लिहाजा नियमों में सशोधन करके उनमें समयसीमा निर्धारित की जरूरत है। स्पष्ट तौर पर समयसीमा निर्धारण के अलावा यह नई मान्यता या नवीनिकरण के आवेदन को निरस्त करने के कारणों का उल्लेख करने का प्रावधान भी किया जाए।
यद्यपि नियमों में स्पष्ट तौर पर एक प्रकाशन/समाचारपत्र के एक ही पत्रकार को मान्यता (राज्य स्तर/ जिला स्तर) देने का प्रावधान है, मगर यह देखा गया है कि एक संस्थान के एक से अधिक पत्रकारों को मान्यता देकर नियमों की खुलेआम अव्हेलना की जा रही है। यह प्रथा कई योग्य पत्रकारों को इस सुविधा से महरूम करती है।
यद्यपि, सरकारी कर्मचारियों की तरह ही उन मान्यताप्राप्त पत्रकारों को सरकारी आवास रखने की स्पष्ट रोक है, जिनके शिमला में अपने मकान/फ्लैट हैं। इसके बावजूद यह पता चला है कि कई ऐसे पत्रकार जिनके अपने मकान या फ्लैट शिमला में हैं या कुछ ने एशिया द डॉन, नजदीक संकटमोचन मंदिर में स्थित जर्नलिस्ट हाउसिंग सोसायटी की अनुदानित जमीन पर फ्लैट बना रखे हैं वो अभी भी सरकारी आवास अपने पास रखे हुए हैं। इस तरह की प्रथा को तुरंत रोक लगाने की जरूरत है और इस तरह के सरकारी आवासों को तुरंत सरकार को हैंडओवर करने की जरूरत है।
कोर्ट ने अपने आदेशों में दो दिशानिर्देश भी जारी किए हैं और तीन माह में इनकी अनुपालना का आदेश जारी करते हुए अगली तारीख 9 जुलाई 2021 तय की है:
प्रतिवादी एक विभिन्न कैटेगरी को जारी की गई मान्यता आदेशों को 2016 के नियमों के अनुसार सख्ती से पुनर्विचार करते हुए संशोधित करेगा और इसके बाद नियमों का सख्ती से पालन करते हुए नए मान्यता आदेश जारी करेगा।
नियम 2016 में संशोधन करते हुए मान्यता जारी करने/ इनकार करने की समयसीमा निर्धारित करने के साथ ही मानयता से इनकार करने की स्थिति में मान्यता आवेदन निरस्त करने का कारण लिखना बाध्यकारी बनाया जाएगा। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि नियमों के अनुसार एक प्रकाशन/समाचारपत्र से एक ही पत्रकार को राज्य या जिला स्तर की मान्यता दिए जाने का प्रावधान हो।
उधर, न्यूजपेपर इम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एवं मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने के लिए हिमाचल सरकार द्वारा गठित त्रिपक्षीय समिति के सदस्य रविंद्र अग्रवाल ने कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत किया है। साथ ही उन्होंने पत्रकारिता के गिरते स्तर पर कोर्ट की चिंताओं की सराहना की है। उन्होंने कहा कि पहले भी न्यायपालिका पत्रकारों और पत्रकारिता के गिरते स्तर और नियमों की अव्हेलना को लेकर टिप्पणियां करती रही है, मगर राजनीतिक दखल और समाचारपत्र संस्थानों की पत्रकारों को उनका तय वेतनमान ना देकर विज्ञापन की कमीशन और सरकारी सुविधाओं की लालच देकर पत्रकारिता के स्तर का गिराने की प्रवृत्ति के चलते पत्रकारिता का स्तर काफी गिर चुका है। उन्होंने कहा कि कोर्ट के ऐसे आदेशों का सख्ती से पालन करवाने की जरूरत है।