दैनिक जागरण धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) को लेबर कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। एक चीफ सब एडिटर को बिना किसी जांच के अवैध तौर पर नौकरी से हटाने के मामले में लेबर कोर्ट ने कर्मचारी को वरिष्ठता व अन्य सेवा लाभों के साथ नौकरी पर बहाल करने के आदेश जारी किए हैं। इसके अलावा कर्मचारी को दो लाख रुपये मुआवजा भी देने के आदेश दिए हैं।
मिली जानकारी के राजीव गोस्वामी बनाम जागरण प्रकाशन लि. मामले में लेबर कोर्ट धर्मशाला ने 29 मार्च को आवार्ड पारित किया है। राजीव गोस्वामी दैनिक जागरण के धर्मशाला केंद्र के तहत संपादकीय विभाग के डेस्क पर चीफ सब एडिटर के पद पर तैनात थे। मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने को लेकर इन्होंने भी अपने बाकी साथियों के साथ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी और इसके बाद से उपजे विवाद में प्रबंधन ने इन्हें भी अवैध तौर पर नौकरी से हटाया दिया था।
लेबर कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर पाया कि राजीव गोस्वामी कंपनी प्रबंधन के खिलाफ 02 अक्तूबर, 2015 को हुई कथित हड़ताल में शामिल नहीं थे, बल्कि इस दौरान वह छुट्टी पर थे और स्टेशन से बाहर थे। उन पर मई, 2015 को मजीठिया वेजबोर्ड लागू ना करने बारे श्रम अधिकारी को सौंपी गई शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा था और उन्हें व उनके बाकी साथियों को प्रबंधन लगातार प्रताड़ित कर रही थी। इसके चलते मंजूर छुट्टी के बाद उन्होंने अपनी छुट्टी बढ़ाने की मेल की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। इसके बाद कंपनी ने बाकी कर्मचारियों को तो चार्चशीट करने के बाद जांच की ओर बर्खास्त कर दिया, मगर राजीव गोस्वामी को बिना की जांच और नोटिस के ही नौकरी से हटा दिया। कंपनी की ओर से भेजे गए नोटिस उनके घर के पते से बिना डिलीवर हुए वापस आ गए थे यानि उन्हें सर्व नहीं हो पाए थे। कंपनी ने इन अनियमितताओं के बावजूद वादी कर्मचारी को नौकरी से हटा दिया और कोर्ट के समक्ष उसके स्वयं नौकरी से लापता होने की झूठी दलील साबित नहीं कर पाई।
वहीं वादी कर्मचारी ने यह बात साबित कर दी कि जब उसे नौकरी से हटाया गया तब मजीठिया वेजबोर्ड लागू ना करने और अन्य मांग पत्रों पर उसकी समझौता वार्ता लंबित थी और इस दौरान प्रतिवादी ने उसे नौकरी से हटाने से पूर्व समझौता अधिकारी से औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33 के तहत जरूरी मंजूरी नहीं ली थी। इस तरह वादी की बर्खास्तगी औद्योगिक विवाद अधिनियम और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के प्रावधानों के विपरित थी। इसके चलते वादी को चीफ सब एडिटर के पद पर उसकी बर्खास्तगी की तारीख से बहाल करने के अलावा उसे नियमित सेवालाभ और वरिष्ठता देने का फैसला सुनाया है। वहीं वादी को दो लाख रुपये मुआवजा भी दिया गया है।
ज्ञात रहे कि इस विवाद में प्रतिवादी पक्ष ने चीफ सब एडिटर को कर्मचारी की श्रेणी में ना आने का मुद्दा भी उठाया था, जिसे कोर्ट ने खारीज कर दिया और माना कि चीफ सब एडिटर की पोस्ट पर वादी वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के तहत श्रमजीवी पत्रकार के तौर पर कार्यरत था, उसे कंपनी ने सुपरवाइजरी या प्रबंधकीय क्षमता के तहत नहीं रखा था। ज्ञात रहे कि वादी का विवाद वर्ष 2016 में लेबर कोर्ट भेजा गया था, मगर रेफरेंस में खामियां होने के चलते राजीव गोस्वामी ने न्यूजपेपर इम्पलाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रविंद्र अग्रवाल की सलाह पर पहले का रेफरेंस वापस लेकर वर्ष 2020 में दोबारा रेफरेंस लगाया था। इसके अलावा इनका मजीठिया वेजबोर्ड क्लेम का रेफरेंस भी लेबर कोर्ट में लंबित है। इस मामले की पैरवी एआर के तौर पर रविंद्र अग्रवाल ने ही की थी।