Sunday 25 August 2024

मजीठियाः 8 साल का संघर्ष, ‘दैनिक भास्कर‘ ने घुटने टेके, मिले 17 लाख व नौकरी पर बहाली


मजीठिया अवॉर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों / गैर-पत्रकारों के लिए मुंबई से एक अच्छी और बड़ी खबर है... ‘दैनिक भास्कर‘ के लिए अस्बर्ट गोंजाल्विस नामक मजीठिया कर्मचारी को नौकरी से निकालना न केवल भारी पड़ गया, बल्कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर फिर से बहाल करने के साथ-साथ उन्हें फुल बैक वेजेस के रूप में करीब 17 लाख रुपये भी देने पड़े हैं।

खबर के मुताबिक, अप्रैल 2023 में मुंबई के श्रम न्यायालय ने ‘दैनिक भास्कर‘ (डी. बी. कॉर्प लि.) को आदेश दिया था कि उसने अपने जिस कर्मचारी अस्बर्ट गोंजाल्विस को 7 साल पहले नौकरी से निकाल दिया था, वह उसे नौकरी पर पुनः बहाल तो करे ही, साथ-ही-साथ अस्बर्ट गोंजाल्विस को इस समयावधि का पूरा बकाया वेतन भी अदा करे। ज्ञातव्य है कि ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ वही संस्थान है, जो स्वयं को भारत का सबसे बड़ा अखबार समूह बताता है... यह कंपनी हिंदी में ‘दैनिक भास्कर’, गुजराती में ‘दिव्य भास्कर’ और मराठी में ‘दैनिक दिव्य मराठी’ नामक अखबारों का प्रकाशन करती है।

यह बात और है कि श्रम न्यायालय का आदेश आने के बाद भी अस्बर्ट गोंजाल्विस को अपना पूरा हक पाने के लिए लगभग डेढ़ साल के समय का इंतजार करना पड़ा। जी हां, इस आदेश की प्रति जब मुंबई के श्रम कार्यालय में आई, तब पहले तो कंपनी और कर्मचारी के बीच लगभग आठ महीने तक सुनवाई हुई... कंपनी ने अस्बर्ट गोंजाल्विस को मेल के माध्यम से सूचित किया कि हम आपकी सैलरी तो आगामी मई (2023) महीने से देना शुरू कर देंगे, किंतु एरियर्स देने के मामले में उसका जवाब था कि कैलकुलेशन किया जा रहा है और उसे भी आपको कुछ दिनों में दे देंगे। बेशक, अस्बर्ट गोंजाल्विस को सैलरी मिलने भी लगी, लेकिन एरियर्स देने के नाम पर कंपनी लगातार आनाकानी करती रही... कभी समझौते की पहल के बहाने तो कभी बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की बात कह कर ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ ने टाइमपास करना जारी रखा।

इसके बाद अस्बर्ट गोंजाल्विस की तरफ से लेबर डिपार्टमेंट में उनका पक्ष रख रहे ‘न्यूजपेपर एंप्लॉईज यूनियन ऑफ इंडिया’ (NEU India) के जनरल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर निलेश देठे से स्पष्ट शब्दों में कहा कि आपको लेबर कोर्ट का आदेश लागू करवाना है, न कि कंपनी द्वारा टाइमपास करने की योजना में उलझना। इस मामले में यूनियन के उपाध्यक्ष शशिकांत सिंह ने भी अस्बर्ट गोंजाल्विस की तथ्यपूर्ण पैरवी की, तब कहीं जाकर देठे ने 1 फरवरी 2023 को ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ के विरुद्ध अस्बर्ट गोंजाल्विस का रेवेन्यू रिकवरी सर्टिफिकेट (आरआरसी) जारी करते हुए वसूली के लिए उसे मुंबई उपनगर के जिलाधिकारी के पास भेज दिया।

चूंकि इस दौरान देश में लोकसभा का आम चुनाव आ गया... संबंधित जिलाधिकारी कार्यालय का समूचा स्टाफ उसमें व्यस्त हो गया, इसलिए मौके को भुनाने की गरज से ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ प्रबंधन बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच गया और वहां उसने लेबर कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। लेकिन हाय री किस्मत, ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ को मार्च 2024 में वहां मुंह की खानी पड़ी... बॉम्बे हाई कोर्ट के माननीय जज अमित बोरकर ने लेबर कोर्ट के आदेश को न सिर्फ पूरी तरह सही माना, बल्कि ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ की रिट पिटीशन (3145/2024) को सिरे से ख़ारिज भी कर दिया। इस दौरान संबंधित कंपनी का पक्ष आर. वी. परांजपे और टी. आर. यादव ने रखा, जबकि अस्बर्ट गोंजाल्विस की वकालत विनोद संजीव शेट्टी ने की।











अपने आदेश में विद्वान न्यायाधीश अमित बोरकर ने कहा कि प्रतिवादी (अस्बर्ट गोंजाल्विस) की बर्खास्तगी से पहले न तो उससे कोई पूछताछ की गई और न ही वादी द्वारा उसकी बर्खास्तगी को उचित ठहराने के लिए लेबर कोर्ट के समक्ष कोई ठोस सबूत ही प्रस्तुत किया गया... अदालत ने पाया कि कंपनी की एचआर मैनेजर अक्षता करंगुटकर ने प्रतिवादी पर यह कहते हुए इस्तीफा देने का दबाव बनाया कि उसकी परफार्मेंस कमजोर है, लेकिन सिस्टम इंजीनियर अस्बर्ट गोंजाल्विस ने इस्तीफा नहीं दिया तो 31 अगस्त 2016 को उसकी सेवा समाप्त कर दी गई... यही नहीं, 1 सितंबर 2016 को अस्बर्ट के दफ्तर में प्रवेश करने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया।

इसलिए प्रतिवादी ने लेबर डिपार्टमेंट से होते हुए लेबर कोर्ट का रुख किया और नौकरी पर अपनी पुनः बहाली के लिए वहां प्रार्थना करते हुए अदालत को अवगत कराया कि उसकी सेवासमाप्ति अवैध है... यह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किया गया है, इसलिए सेवा बहाली सहित उसको 1 सितंबर 2016 से पूर्ण बकाया वेतन भी मिलना चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ता के इस आरोप को मानने से इनकार कर दिया कि नोटिस पीरियड में प्रतिवादी ठीक से काम करने में विफल रहा अथवा उसने अनुमति के बिना छुट्टी का लाभ उठाया या फिर कई चेतावनियों के बावजूद उसके रवैए में कोई सुधार नहीं हुआ।

यहां बताना आवश्यक है कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी से अचानक तब निकाल दिया गया था, जब उन्होंने ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ से भारत सरकार द्वारा अधिसूचित मजीठिया अवॉर्ड की मांग की थी। खैर, बॉम्बे हाई कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई के दौरान कंपनी का प्रयास था कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर पुनः रखने का आदेश ख़ारिज कर दिया जाए, परंतु बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रतिवादी के शपथ-पत्र में किए गए दावे के आधार पर कंपनी के वकील की मांग सिरे से ख़ारिज कर दी, जैसे- प्रतिवादी ने नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कलंकपूर्ण सेवा-समाप्ति के कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिली। इसलिए लेबर कोर्ट का यह आदेश उचित है कि कंपनी में साढ़े आठ साल तक की नौकरी कर चुके प्रतिवादी को बहाल करने सहित उसे उसका पिछला पूरा बकाया मिलना ही चाहिए। इतना ही नहीं, माननीय जज अमित बोरकर ने पर्याप्त कानून न होने का हवाला देते हुए एरियर्स की राशि में संशोधन (कमी) करने से भी इनकार कर दिया... और अपने आदेश की अंतिम पंक्तियों में माननीय हाई कोर्ट ने कहा- ‘लेबर कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में कोई विकृति नहीं है, इसलिए याचिका में कोई दम नहीं है... रिट याचिका खारिज की जाती है।’

इसके बाद धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश की प्रति जब मुंबई (उपनगर) जिलाधिकारी कार्यालय को उपलब्ध करवाई, तब कहीं मामले में तेजी आई... यहां से आरआरसी के संदर्भ में तहसीलदार (अंधेरी) को आदेश हुआ, फिर तहसीलदार ने तलाठी (सांताक्रुज) को निर्देशित किया कि बकाएदार कंपनी को नोटिस देकर उसे आगे की कार्यवाही से अवगत कराया जाए। आखिर ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ के प्रबंधन को एक बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है... सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद कहीं मजीठिया अवॉर्ड को लेकर उस पर अवमानना का मामला न बन जाए, अतः कंपनी ने पिछले महीने की 25 तारीख को तहसीलदार कार्यालय में 16,90,802/- की डीडी जमा करवा दी।

वैसे डीडी की यह धनराशि अस्बर्ट गोंजाल्विस के अकाउंट में तुरंत आ गई हो, ऐसा भी नहीं था... अस्बर्ट बताते हैं- ...इसके लिए हमारी यूनियन के जनरल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने बहुत भागदौड़ की। यह धर्मेन्द्र ही थे, जिन्होंने लेबर आफिस में मेरा मजबूती से पक्ष रखा तो जिलाधिकारी, तहसीलदार और तलाठी तक से लगातार टच में रहते हुए मुझे रोजाना अपडेट दे रहे थे। इसीलिए अभी 23 अगस्त को फुल बैक वेजेस का मेरा अमाउंट जब मेरे अकाउंट में क्रेडिट हुआ, तब सबसे पहले मैंने उन्हीं को फोन करके आभार व्यक्त किया... बहरहाल, माननीय न्यायालय के माध्यम से अस्बर्ट गोंजाल्विस को मिले इस न्याय को लेकर भारत के समस्त मजीठिया क्रांतिकारियों में उत्साह की लहर है।

शशिकांत सिंह 

पत्रकार और मजिठिया क्रांतिकारी 

9322411335





Friday 16 August 2024

मजीठिया: अवैध सेवा समाप्‍ति के मामले में दिव्य हिमाचल अखबार की बड़ी हार




माली को सौ फीसदी वेतनमान व अन्य सेवालाभ के साथ बहाली के आदेश

हिमाचल प्रदेश के दैनिक समाचार पत्र दिव्य हिमाचल के प्रबंधन की लेबर कोर्ट धर्मशाला में चल रहे अवैध सेवा समाप्‍ति के मामले में बड़ी हार हुई है। सुनील कुमार बनाम मैसर्ज दिव्य हिमाचल प्रकाशन प्राईवेट लि. मामले में कोर्ट ने माली के पद पर तैनात सुनील कुमार के मौखिक सेवा समाप्‍ति और उसे अपना कर्मचारी ना स्वीकारने के मामले में लेबर कोर्ट धर्मशाला ने 31 जुलाई को फैसला सुनाया था। 

लेबर कोर्ट में माली के पद पर तैनात इस गरीब कर्मचारी के मामले की पैरवी वरिष्ठ  पत्रकार एवं न्यूज पेपर इम्लाइज यूनियन आफ इंडिया के अध्यक्ष रविंद्र अग्रवाल ने बतौर एआर की। उन्होंने वादी श्रमिक का पक्ष मजबूती के साथ रखा और एक लैंडमार्क जजमेंट हासिल करने में सफलता पाई। ज्ञात रहे कि सुनील कुमार को प्रतिवादी कंपनी ने माली के पद पर बिना किसी नियुक्ति पत्र के जुलाई 2011 में अपने मुख्यालय में रखा था, मगर उसका नाम नियमित कर्मचारियों के रिकार्ड में शामिल नहीं किया था। ना तो उसे सेलरी स्लिप दी जाती थी और ना ही पीएफ व अन्य  वेतनलाभ दिए जाते थे। सेलरी उसे कैश इन हैंड ही दी जाती थी। एक छदम रिकार्ड के जरिये कई अन्‍य कर्मचारियों की तरह उसे भी तैनात करके रखा गया था ताकि उसे नियमित अखबार कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों और श्रमजीवी पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मचारियों के लिए घोषित मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान से महरूम रखा जाए। 

वादी ने अपने क्‍लेम में यह भी वाद उठाया था कि उसकी सेवासमाप्‍ति मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान मांगे जाने के चलते की गई। उसने 24 अप्रैल 2018 को मजीठिया वेजबोर्ड के तहत संबंधित प्राधिकारी के पास वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट की धारा 17(1) के तहत रिकवरी का केस फाइल किया था। कंपनी को 3 मई 2018 को संबंधित प्राधिकारी ने नोटिस जारी करके जवाब मांगा, तो प्रतिवादी ने वादी पर रिकवरी का केस वापस लेने का दबाव बनाया, मगर वह नहीं माना। इस पर प्रतिवादी ने 15 मई 2018 को वादी को नौकरी से हटा दिया और वादी का संस्‍थान में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया।  

वादी के लेबर कोर्ट में दाखिल क्‍लेम के जवाब में कंपनी का लिखित उत्‍तर था कि वादी उसका कर्मचारी है ही नहीं, उसे तो कंपनी के सीएमडी ने घर पर निजी नौकर के तौर पर रखा था और वही उसे अपनी जेब से ही मेहनताना देते थे। जबकि इस केस में अहम साक्ष्य के तौर पर वादी द्वारा लोन लेने के लिए कंपनी से मांगी गई फरवरी 2012 की एक मात्र सेलरी स्लिप ने डूबते के लिए तिनके का सहारा बनने का काम किया। यह सेलरी स्लिप भी उस बैंक के रिकार्ड में लगी हुई थी, जिससे उसने लोन लिया हुआ था। सेलरी स्‍लीप को लेकर प्रतिवादी ने अजीब तर्क था कि यह तो वादी को लोन देने के लिए  मानवीय आधार पर जारी की गई थी। 

वहीं बैंक के मैनेजर ने वादी के गवाह के तौर पर कोर्ट में उपस्‍थित होकर इस सेलरी स्लिप को प्रूव किया, जिसमें सुनील कुमार के नाम और पद के अलावा उसकी डेट ऑफ ज्वाेइनिंग नवंबर 2011, विभाग का नाम और वेतनमान लिखा गया था और कंपनी की अथॉरिटी के हस्ताक्षर व मुहर भी लगी हुई थी।

इसके अलावा वादी कर्मचारी ने तीन पूर्व कर्मचारियों की गवाही भी करवाई। वहीं इन गवाहों में से एक पूर्व कर्मचारी ने अपनी गवाही में बताया कि किस तरह कंपनी अपने कर्मचारियों का छद्म रिकार्ड बनाती है, जैसा कि उसके साथ किया गया था। कंपनी ने गवाह के इसी लेबर कोर्ट में लंबित मामले में यह तो स्वीकार किया था, वह उसका कर्मचारी है, मगर कर्मचारियों के रिकॉर्ड में ना तो उसका नाम था और ना ही उसे बैंक के माध्यम से सेलरी दी जाती थी। उसे पहले बैंक अकाउंट के माध्यम में सेलरी दिए जाने के बाद अचानक बंद कर दिया गया था और कैश इन हैंड सेलरी दी जाने लगी थी। इससे साबित हुआ कि कंपनी ने कर्मचारियों का रिकॉर्ड नियमानुसार नहीं रखा है। साथ ही कंपनी के स्टैंडिंग ऑर्डर भी सत्यापित नहीं हैं। वहीं जो रिकॉर्ड कोर्ट में दाखिल किया गया वो भी नियमानुसार नहीं तैयार किया गया था। 

इस तरह कोर्ट ने सभी गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर पाया कि कर्मचारी ने खुद को प्रतिवादी कंपनी का कर्मचारी साबित करने के लिए जरूरी प्रारंभिक सक्ष्या मुहैया करवाने का अपना भार या दायित्व पूरा किया है। वहीं कंपनी की ओर से कोर्ट में प्रस्तुत एकमात्र गवाह के माध्‍यम से कंपनी अपना पक्ष रखने में विफल रही। वहीं जिस गवाह को कोर्ट में उतारा गया, उसकी नियुक्‍ति ही कर्मचारी की सेवा समाप्‍ति के बाद हुई थी, जिसनेे जिरह में ही स्‍वीकार कर लिया था कि वह अपनी नियुक्‍ति से पूर्व के कंपनी के मामलों के बारे में परिचित नहीं है। उसकी नियुक्‍ति अक्टूबर 2019 में हुई है। 

वहीं कंपनी यह भी साबित नहीं कर पाई कि वादी को कंपनी के सीएमडी ने निजी नौकरी के तौर पर रखा था। इस फैसले में लेबर कोर्ट ने वादी को जहां आईडी एक्‍ट की धारा 2(एस) के तहत कर्मचारी माना तो वहीं वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट की धारा 2(डीडी) की धारा के तहत गैर पत्रकार अखबार कर्मचारी मानाते हुए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान का हकदार भी बताया है। 

कोर्ट ने अपने फैसले में कर्मचारी की 15.5.2018 सेे की गई सेवासमाप्‍ति को निरस्‍त करते हुए वादी को वरिष्‍ठता और सेवा में निरंतरता के लाभ सहित 15.5.2018 सेे लेकर नौकरी बहाली तक की पूरा वेतनमान तीन माह के भीतर जारी करने के आदेश दिए हैं। ऐसा ना करने पर प्रतिवादी को अवार्ड की तिथि से लेकर आदेश के पालन तक 6 फीसदी ब्‍याज के साथ ये लाभ देने पड़ेंगे।

जारी कर्ता: शशिकांत

Wednesday 19 June 2024

टीयूडब्लूजे के सम्मेलन में जनसंपर्क मंत्री ने पत्रकारों के हित में की घोषणाएं

 


आईजेयू राष्ट्रीय पदाधिकारी और अन्य राज्यों के अध्यक्ष, सचिव भी हुए शामिल

खम्मम (तेलंगाना), 20 जून। पत्रकारों के देश के सबसे बड़े और पुराने संगठन इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन से सम्बद्ध तेलंगाना यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स का तीसरा राज्य सम्मेलन कल 19 जून को खम्मम जिला मुख्यालय में शुरु हुआ।


उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रदेश के जनसम्पर्क, राजस्व तथा आवास मंत्री पोंगुलेती श्रीनिवास रेड्डी थे। उन्होने पत्रकारों की आवास समस्या को हल करने के लिए तथा पत्रकारों के पेंशन की पुरानी मांगों को पूरा करने के लिए घोषणाएं की। कार्यक्रम की अध्यक्षता के. श्रीनिवास रेड्डी अध्यक्ष, तेलंगाना मीडिया कौन्सिल एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन ने की। राज्य यूनियन के निवर्तमान अध्यक्ष नानूगुरी शेखर ने कार्यक्रम का संचालन किया।



प्रदेश के 9000 से अधिक सदस्यों के जिला स्तर पर चुने गए स्टेट कौन्सिल प्रतिनिधियों, जिला अध्यक्ष, महासचिव तथा राज्य पदाधिकारियों, कार्यकारिणी सदस्यों की बड़ी संख्या में उपस्थिति इस सम्मेलन स्थल पर थी।


तेलंगाना यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स  के अध्यक्ष नागुनुरी शेखर ने अपने संबोधन में भारतीय पत्रकार संघ (आईजेयू) के अध्यक्ष, तेलंगाना मीडिया अकादमी के अध्यक्ष के. श्रीनिवास रेड्डी, महासचिव बलविंदर सिंह जम्मू, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, संचालन समिति के सदस्य एस.एन. सिन्हा, देवुलपल्ली अमर, एम.ए. माजिद, राष्ट्रीय सचिव वाई. नरेंद्र रेड्डी, डी. सोमसुंदर, राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य के. सत्यनारायण, अलापति सुरेश कुमार, विभिन्न राज्यों के पर्यवेक्षक तेलंगाना राज्य श्रमजीवी पत्रकार संघ राज्य परिषद सदस्य, आईजेयू राष्ट्रीय परिषद सदस्य, 33 जिला अध्यक्ष, सचिव, विशेष आमंत्रितों का हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने कहा कि साथियों,यह बहुत खुशी की बात है कि हमारे संघ ने ट्रेड यूनियन गतिविधियों के केंद्र खम्मम शहर में अपनी तीसरी राज्य कांग्रेस सफलतापूर्वक मनाई। सबसे पहले, मैं टीयू डब्ल्यूजे खम्मम जिला शाखा को उनके प्रयासों के लिए इस सम्मेलन की मेजबानी के लिए बधाई देना चाहता हूं।



लगभग 65 वर्षों के इतिहास के साथ APUW द्वारा दी गई प्रेरणा और विरासत के साथ, TUWJ तेलंगाना राज्य में कामकाजी पत्रकारों के मूल प्रमुख प्रतिनिधि संघ के रूप में लगातार सेवा करने के उद्देश्य से उभरा। 19 अप्रैल 2015 को हमने नामपल्ली पब्लिक गार्डन में ललिता कला तोरण में लगभग 6 हजार कामकाजी पत्रकारों के साथ पहली टीडब्ल्यूजे महासभा का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इसके अलावा 2019 में हम नामपल्ली पब्लिक गार्डन में इंदिरा प्रियदर्शिनी ऑडिटोरियम में दूसरी महासभा और इव्याला खम्मम के आयोजन स्थल पर तीसरी महासभा का आयोजन कर रहे हैं। विगत लगभग दो वर्षों के पहले तक से, कोरोना महामारी राज्य में व्याप्त थी और हमारी सामुदायिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न कर रही थी।

इस वजह के परिणामस्वरूप, कई जिलों में महासभाएँ स्थगित रहीं। उस प्रक्रिया को पूरा करने और तीसरे राज्य सम्मेलन के आयोजन में कुछ देरी हुई। हमने सभी जिलों में संघ को मजबूत करने और नई कार्यकारिणी गठित करने के लिए कांग्रेस में लिए गए निर्णयों को सफलतापूर्वक लागू किया है। यद्यपि प्रदेश में नए जिलों के गठन की प्रक्रिया हो चुकी है, लेकिन आप सभी के प्रयास एवं सहयोग से हमने 30 जिलों में कांग्रेस का आयोजन कर कार्यदलों का गठन किया है। रंगारेड्डी, आदिलाबाद और नारायणपेट जिलों में एडोक समितियों के साथ गतिविधियां चल रही हैं। साथ ही, 33 जिलों में 9,570 सदस्यताएँ एकत्र की गईं। हम जल्द ही उन जिलों में भी कांग्रेस का आयोजन कर एक वर्किंग ग्रुप बनाने जा रहे हैं। आप जानते हैं कि टीडब्ल्यूजे एक ओर जहां पत्रकारों के अधिकारों के लिए लड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों और श्रम अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष और परोक्ष रूप से लड़ाई जारी रखे हुए है। इसके अलावा, पत्रकारिता की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए, हम पेशेवर रूप से पत्रकारों के बीच नैतिक मूल्यों को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। मुख्य रूप से हमारे समुदाय ने उन हजारों पत्रकारों और उनके परिवार के सदस्यों की सेवा की है जिन्हें कोरोना ने लील लिया है। मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि हमने कई पत्रकारों की जान बचाई है जो खतरे में थे।

अप्रैल 2021 को वरिष्ठ यूनियन नेता के. अमरनाथ की अचानक मृत्यु IJU और TWJ दोनों के लिए एक बड़ी क्षति है। हमारे नेता के. श्रीनिवास रेड्डी, देवुलपल्ली अमर, स्वास्थ्य समिति के संयोजक  रहे मुझे लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजेश और सभी ने कितने भी प्रयास किए हों, लेकिन साथी के अमरनाथ जो एपीयूडब्ल्यूजे के अध्यक्ष, आईजेयू के सचिव, स्क्रआइब न्यूज पत्रिका के संपादक और पीसीआई के सदस्य रहे उनकी इन रूपों में की गई सेवाएं अमूल्य हैं। 10 मई 2021 को हमने ज़ूम मीटिंग के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी क्योंकि उस समय कोविड का प्रभाव गंभीर था। हम इस महासभा के परिसर का नाम कामरेड अमरनाथ के नाम पर रखकर उनका स्मरण कर रहे हैं। परिसर को आकर्षक ढंग से सजाया गया था।


कार्यक्रम के दौरान अतिथियों तथा  छत्तीसगढ़ से अध्यक्ष पी सी रथ, पंडिचेरी से मारी महराज, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तामिलनाडु राज्यों के पदाधिकारियों ने भी इस सत्र को सम्बोधित किया. बीच बीच में प्रदेश के वरिष्ठ वयोवृद्ध पत्रकारों, बुजुर्ग राजनेताओं तथा विभिन्न प्रदेशों से आये प्रतिनिधियों का सम्मान वस्त्र, स्मृतिचिन्ह से किया गया. वर्तमान राज्य महासचिव विराहत अली ने आमंत्रितो का स्वागत किया।

उद्घाटन सत्र के पश्चात् संगठन का सत्र संचालित हुआ।

Wednesday 22 May 2024

बिहार वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के प्रयास से नवभारत टाइम्स के रिटायर्ड पत्रकारों की शानदार जीत

1995 में बंद होने के बाद पटना संस्करण के "नवभारत टाइम्स" से अलग हुए दो पत्रकारों - हरेंद्र प्रताप सिंह और शरद रंजन कुमार, पटना उच्च न्यायालय से उनके वेतन और अन्य लाभों के भुगतान के संबंध में बड़ी राहत मिली है। अपने हालिया फैसले में, पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए अभिषेक रेड्डी की एकल बेंच ने 2008 में दिए श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा है, प्रबंधन (एम/एस बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड) को उन्हें उचित रूप से बहाल करने और उनके वेतन और अन्य लाभों के खिलाफ बकाया का भुगतान करने का निर्देश दिया है, उन्हें माना जाता है कि वे 2008 में दिए गए श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार सेवा में रहना, छंटनी की तारीख से जारी रखना।


पटना हाईकोर्ट ने "नवभारत टाइम्स" के पटना संस्करण को 1995 में बंद करने को अवैध घोषित किया है। समाचार पत्र का प्रकाशन औपचारिक रूप से बंद करने से पहले प्रबंधन द्वारा कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। नवभारत टाइम्स के सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने श्रम न्यायालय, पटना में इसके बंद होने के बाद अपील की थी और उन्हें 2008 में राहत मिली थी, लेकिन प्रबंधन ने इसे पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, इसके तुरंत बाद 16 साल के लंबे इंतजार के बाद इसका फैसला आया। उच्च न्यायालय ने प्रबंधन को निर्देश दिया है कि हरेंद्र प्रताप सिंह और शरद रंजन कुमार दोनों को छंटनी की तारीख के बाद से सभी बैकलॉग वेतन और अन्य लाभों का भुगतान उनकी स्थिति के अनुसार करें। अवकाश प्राप्ति की आयु प्राप्त करने के मामले में, वे अवधि के दौरान अर्जित सभी प्रकार के बकाये के खिलाफ वित्तीय लाभ प्राप्त करने के हकदार होंगे। हाईकोर्ट ने प्रबंधन को आदेश का पालन चार सप्ताह में भुगतान और अन्य लाभ देकर करने के निर्देश दिए हैं। बिहार कार्य पत्रकार संघ (बीडब्ल्यूजेयू) द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों और सहायता के बाद नवभारत टाइम्स के पटना संस्करण के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की यह एक बड़ी जीत थी। इस महान क्षण में BWJU पटना हाईकोर्ट से बड़ी राहत पाने वालों को बधाई देता है। BWJU पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए वास्तविक मांगों को बढ़ाता रहेगा।

Monday 20 May 2024

अडानी समझौता: मजीठिया क्रांतिकारी पत्रकारों ने हाईकोर्ट में भास्कर के वकील की बोलती बंद


डीबी पॉवर की याचिका में दैनिक भास्कर ने हाईकोर्ट में लगा दिया अपने मैनेजर का शपथपत्र, पत्रकार तरुण भागवत व अरविंद आर. तिवारी ने बहस के दौरान खुली कोर्ट में बेनकाब किया अखबार का झूठ, देखें वीडियो...


दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों को अलग-अलग यूनिट और डीबी कॉर्प. लि. के दूसरे धंधों का अलग अस्तित्व बता रही वकील की बोलती हुई बंद 


दैनिक भास्कर के हजारों कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान की लड़ाई में मिलेगी मदद 


इंदौर। मजीठिया वेतनमान देने की जगह अपने कर्मचारियों को कोर्ट के चक्कर लगाने के लिए मजबूर करने वाला दैनिक भास्कर अखबार मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में अपने ही दांव में उलझ गया है। अडाणी समूह को डीबी पॉवर कंपनी बेचने पर लेबर कोर्ट से लगी रोक हटवाने के चक्कर में दैनिक भास्कर ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। पत्रकारों के एक आवेदन के जवाब में डी.बी. कॉर्प समूह की कंपनी डी.बी. पॉवर ने हाईकोर्ट में अपनी ओर से प्रस्तुत किए जवाब में दैनिक भास्कर अखबार के मैनेजर राजकुमार साहू का शपथ पत्र लगा दिया।


शुक्रवार को आवेदन पर बहस के दौरान मजीठिया क्रांतिकारी व पत्रकार तरुण भागवत और अरविंद आर. तिवारी ने हाईकोर्ट में दैनिक भास्कर की यह करतूत उजागर कर अपने तर्कों से साबित कर दिया कि डीबी पॉवर भी दैनिक भास्कर की ही इकाई है। याचिका में गलत शपथ-पत्र और पत्रकारों के तर्कों पर डीबी पॉवर की वकील निरुत्तर हो गई और बहस ही बंद कर दी। इस तरह कर्मचारियों के लिए खोदी कानूनी खाई में अब दैनिक भास्कर समूह स्वयं ही गिरता हुआ नजर आ रहा है। इस केस के फैसले का लाभ केस लड़ रहे पत्रकारों के अलावा दैनिक भास्कर के हजारों कर्मचारियों को भी मिल सकता है। 


दरअसल, साल 2022 में अडानी ग्रुप ने दैनिक भास्कर समूह से उसकी छत्तीसगढ़ में स्थित थर्मल पॉवर प्लांट कंपनी डीबी पॉवर के अधिग्रहण का सौदा सम्पूर्ण कैश में करने का सौदा किया था। दैनिक भास्कर समूह से मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों तरुण भागवत और अरविंद आर. तिवारी ने इस सौदे की खबर लगते ही अडाणी समूह, डीबी पॉवर और दैनिक भास्कर ग्रुप के समक्ष आपत्ति जताई और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को भी शिकायत कर दी। पैसे और पॉवर के मद में चूर दैनिक भास्कर समूह और अडाणी ग्रुप ने इस आपत्ति पर घमंड से भरा हुआ दम्भपूर्ण जवाब दिया, वहीं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने पत्रकारों की आपत्ति को गंभीरतापूर्वक लेते हुए अडाणी ग्रुप और भास्कर समूह को नोटिस जारी कर दिए। इससे मजबूर होकर अडाणी ग्रुप ने नोटिसों का जवाब देने का जिम्मा 100 साल से ज्यादा पुरानी लॉ फर्म खेतान एंड कंपनी को सौंप दिया।


100 साल से ज्यादा पुरानी लॉ फर्म खेतान एंड कंपनी भी नहीं दिलवा सकी राहत


खेतान एंड कंपनी ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को भेजे जवाब की कॉपी डीबी पावर कंपनी और पत्रकारों की ओर से नोटिस जारी करने वाले अधिवक्ता श्री केतन विश्नार को ई-मेल पर भेजी। अडाणी ग्रुप की ओर से बेहद अहंकारयुक्त जवाब दिया गया। इस पत्राचार के दौरान भी अडाणी और डीबी कॉर्प ग्रुप अपनी डील आगे बढ़ाते रहे। हालांकि अडाणी ग्रुप डीबी पॉवर को अधिग्रहित नहीं कर सका। इसी दौरान पत्रकारों ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में डील कैंसिल करवाने के लिए रिट लगा दी।


उच्च न्यायालय ने रिट निराकृत कर दी कि पहले लेबर कोर्ट में आवेदन करें, वहां राहत नहीं मिले तो हाई कोर्ट का रुख करें। पत्रकारों ने इसके तुरंत बाद डीबी पावर और अडाणी की डील पर रोक के लिए लेबर कोर्ट में आवेदन किया। तत्कालीन पीठासीन अधिकारी निधि श्रीवास्तव ने प्रस्तुत आवेदन, साक्ष्यों और पत्रकारों के तर्कों से सहमत होकर अडाणी पावर द्वारा अधिग्रहित की जा रही दैनिक भास्कर समूह की डीबी पावर कंपनी की डील पर रोक लगा दी। अडानी पावर और डीबी पावर के बीच यह डील 7017 करोड़ रुपए में होने वाली थी।  


डीबी पॉवर ने गुमराह किया, हाईकोर्ट के स्टाफ ने भी की बड़ी गलती


7 हजार करोड़ की डील पर लेबर कोर्ट के स्टे से तिलमिलाए दैनिक भास्कर समूह ने आव देखा न ताव और स्टे लेने की जल्दी में असत्य कथनों और अधूरे तथ्यों से ओत-प्रोत रिट याचिका से हाई कोर्ट को गुमराह कर एकपक्षीय स्टे ले लिया। लेबर कोर्ट के स्टे पर कैवियट के बावजूद रिट याचिका की बिना अग्रिम सूचना मिले सुनवाई हो जाने से पत्रकार भी अचंभित रह गए। उन्होंने पड़ताल की तो पता चला ना केवल दैनिक भास्कर समूह ने असत्य कथनों से हाईकोर्ट को गुमराह किया है बल्कि हाईकोर्ट के स्टाफ ने भी कैवियट की जांच में गलती की है। 


शपथ-पत्र में असत्य कथन प्रस्तुत करने पर 7 साल जेल 


मामले में पत्रकार स्वयं पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने भास्कर समूह के मालिकों द्वारा हाईकोर्ट को गुमराह करने के साथ ही शपथ-पत्र पर झूठे कथन प्रस्तुत करने की शिकायत कर प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की गुहार भी लगाई है। इन पत्रकारों की मानें तो दैनिक भास्कर समूह के कर्ताधर्ताओं का यह कृत्य आईपीसी के तहत दण्डनीय अपराध है। इसमें दोष सिद्ध होने पर अधिकतम 7 साल तक की जेल और कड़ा आर्थिक जुर्माना दोनों हो सकता है। 


भास्कर की वकील अनुपस्थित थी तो शपथ-पत्र कैसे आया?


पत्रकारों के मुताबिक हाईकोर्ट में विचाराधीन रिट याचिका में अडाणी समूह और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को पक्षकार बनाए जाने के आवेदन पर बहस हो चुकी है। जिस पर इसी हफ्ते फैसला आने वाला है। चूंकि पत्रकारों के उक्त आवेदन के जवाब में डी.बी. पॉवर ने दैनिक भास्कर अखबार के मैनेजर राजकुमार साहू का शपथपत्र लगा दिया है, जिस पर डी.बी. कॉर्प के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता की सील भी लगी हुई है।


ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अपने सभी संस्करणों और उद्योग-धंधों को अलग-अलग इकाई बताने वाले दैनिक भास्कर समूह के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता का शपथ-पत्र डीबी पावर की ओर से कैसे फाइल हो गया? जबकि दोनों ही कंपनियों की पैरवी अलग-अलग महिला वकील कर रही हैं। दैनिक भास्कर की वकील तो डेढ़ साल में सिर्फ दो-तीन सुनवाई में ही कोर्ट में उपस्थित हुई है और जिस दिन डी.बी. पॉवर की ओर से दैनिक भास्कर अखबार के मैनेजर राजकुमार साहू का शपथपत्र प्रस्तुत किया उस दिन भी डी.बी. कॉर्प की महिला वकील अनुपस्थित थी।

Wednesday 15 May 2024

बड़ी खबरः हाईकोर्ट के आदेश के बाद सहारा ने दो कर्मियों को सौंपे 3-3 लाख के डीडी




साथियों, नोएडा से एक बड़ी खबर आ रही है। सहारा मीडिया को दो महिला उप-संपादकों को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद तीन-तीन लाख के डीडी सौंपने पड़े हैं।

मालूम हो कि सहारा मीडिया ने कई कर्मचारियों को अवैध रूप से नौकरी से निकाल दिया था। सहारा के प्रिंट में कार्यरत गीता रावत और रमा शुक्ला भी उन कर्मचारियों में शामिल थीं, जिन्होंने अपने पिछले कई महीनो का बकाया वेतन और मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने की मांग की थी।

जिसके बाद इन्होंने नोएडा डीएलसी में अवैध सेवा समाप्ति को लेकर वाद दायर किया था और वहां से केस नोएडा लेबर कोर्ट को रेफर हो गया। लेबर कोर्ट ने 20 अक्टूबर 2023 को दोनों कर्मचारियों को पुरानी सेवा की निरन्तरता के साथ पूर्व पूर्ण वेतन व अन्य समस्त हित लाभ समेत अवार्ड प्रकाशन के एक माह के अंदर सेवा में बहाल करने का आदेश दिया था।

इस अवार्ड के खिलाफ सहारा प्रबंधन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें इस अवार्ड को चुनौती दी गई थी और उसपर अमल करवाने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना। जिसके बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पहले प्रबंधन 15 दिन के भीतर गीता रावत और रमा शुक्ला को नौकरी पर बहाल करे और ज्वाइनिंग के समय दोनों को 3-3 लाख रुपये का डीडी दे, इसके बाद स्टे प्रभावी होगा।

सहारा प्रबधन ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद दोनों कर्मियों को तीन-तीन लाख का डीडी सौंप दिया है।

लेबर कोर्ट में गीता रावत और रमा शुक्ला की तरफ से एआर राजुल गर्ग ने मजबूत तर्क रखे। वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील मनमोहन सिंह इनकी तरफ से लड़ रहे हैं।

Sunday 28 April 2024

मजीठिया: HC में भास्कर व पत्रिका को झटका, 20जे पर कहा...

IN THE HIGH COURT OF MADHYA PRADESH

AT JABALPUR

BEFORE 

HON'BLE SHRI JUSTICE GURPAL SINGH AHLUWALIA

ON THE 22nd OF APRIL, 2024

MISC. PETITION No. 5093 of 2022

लेबर कोर्ट के आदेश के खिलाफ लगाई गई याचिकाएं खारिज

कोर्ट ने कहा मजीठिया के अनुसार वेतन के बिना काम कराना बेगार कराने जैसा

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी मजीठिया वेजबोर्ड के बकाए भुगतान से बचने की जुगत में लगे दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका प्रबंधन को मप्र उच्च न्यायालय से जोर का झटका लगा है। कोर्ट ने होशंगाबाद की लेबर कोर्ट द्वारा कर्मचारियो को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार बकाया राशि का भुगतान करने के आदेश के खिलाफ की गई प्रबंधन की अपील को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही न्यायालय ने अपने आदेश में कईं महत्वपूर्ण टिप्पणियां की भी की हैं। इनसे समाचार पत्र प्रबंधन द्वारा मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से बकाया राशि का भुगतान रोकने के लिए अपनाए जा रहे हथकंड़ों को भी गलत ठहराया है। इतना ही नहीं न्यायालय ने कम वेतन पर काम कराने को बेगार बताया है।


जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने मामले ने सुनवाई करते हुए सिलसिलेवार समाचार पत्र प्रबंधन द्वारा उठाए गए मुद्दों का निराकरण किया और उनकी याचिकाओं को खारिज करते हुए होशंगाबाद लेबर कोर्ट के मजीठिया वेजबोर्ड के बकाए के भुगतान के आदेश का यथावत रखा है। दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका प्रबंधन ने याचिका में कर्मचारी का क्लैम रेफरल से लेकर 20 जे की डिक्लेरेशन तथा इसे बाद के प्रश्न में न शामिल किए जाने से लेकर कर्मचारियों के प्रबंधकीय और सुपरवाइजरी प्रकृति के काम किए जाने को आधार बनाते हुए लेबर कोर्ट के आदेश और उसके अधीन चल रही बकाए वेतन की वसूली की प्रक्रिया को रोकने की मांग की थी।


याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि जब 20 जे की डिक्लेरेशन को वाद के प्रश्न में शामिल नहीं किया गया था तो फिर श्रम न्यायालय ने इस पर अपनी राय कैसे दे दी? इसके साथ ही यह भी कहा कि कर्मचारी ने पहले तो 20जे पर अपने हस्ताक्षर होने से इंकार किया लेकिन जब प्रबंधन की ओर से डिक्लेरेशन को हस्ताक्षर विशेषज्ञ के पास भेजने की मांग की गई तो उसने पल्टी मारते हुए हुए स्वीकार किया कि इस पर उसी के हस्ताक्षर हैं। साथ ही प्रबंधन के वकील ने कहा कि कर्मचारी ने कहा कि 20जे पर उसके हस्ताक्षर धोखे से लिए गए हैं लेकिन उसने इसके समर्थन में कोर्ट में कोई साक्ष्य नहीं दिया। साक्ष्य अधिनियम की धारा 101, 102 के अनुसार यह साबित करने की जिम्मेदारी कर्मचारी की थी।


मैनेजमेंट को साबित करना है 20जे पर हस्ताक्षर धोखे से नहीं लिए

इस जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि यह बात सही है कि कर्मचारी ने 20जे की डिक्लेरेशन के बारे में अपनी प्लीडिंग में नहीं बताया और न ही श्रम न्यायालय ने इस वाद के प्रश्न में शामिल तिया था लेकिन याचिकाकर्ता ने श्रम न्यायालय में 20जे को अपने बचाव के लिए इस्तेमाल किया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि श्रम न्यायालय ने इसे वाद के प्रश्न में शामिल किया या नहीं। जहां तक याचिकाकर्ता का यह कहना कि कर्मचारी को यह साबित करना था कि 20जे पर हस्ताक्षर धोखे से लिए गए हैं। इस मामले पर जस्टिस अहलूवालिया ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 111 के हवाले से कहा कि दोनों पक्षों में से जो Active Confidance की स्थिति में हो वो ये साबित कर सकता है कि हस्ताक्षर सद्भावना से किए गए हैं। इस मामले मे नियोजक एक्टिव कांफीडेंस की स्थिति में था और वो ये साबित कर सकता था कि हस्ताक्षर धोखे से नहीं सद्भाव से कराए गए हैं।


इस आधार पर प्रबंधन ने कर्मचारी को मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसाओं के बारे में बताना था और यह भी स्पष्ट करना था कि मजीठिया वेज बोर्ड के अधीन वेतन तथा उसे मिल रहे वेतन के बीच कितना अंतर है। ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं है कि कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसाओं के बारे में जानकारी दी गई थी।


अनुचित प्रभाव से लिया 20जे ?

इसके साथ ही जस्टिस अहलूवालिया ने लाडली पार्षद जायसवाल विरुद्ध करनाल डिस्टलरी के रिपोर्टेड निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि अनुबंध अधिनियम की धारा 16 में अनुचित प्रभाव का उपयोग करके अनुबंध करने के बारे में बताया गया है। जब एक व्यक्ति दूसरे की इच्छा को प्रभावित करने की स्थिति में होता है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर होती है जो प्रभावित करने की स्थिति में होता कि वह अनुबंध अनुचित प्रभाव का उपयोग कर नहीं किया गया है। इसके चलते 20 जे की डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर स्वैच्छिक किए गए हैं यह साबित करने कि जिम्मेदारी याचिकाकर्ता यानी अखबार प्रबंधन की है और कोर्ट का मानना है कि याचिकाकर्ता इस मामले में अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में विफल रहा है। याचिककर्ता 20 जे के डिक्लेरेशन पर कर्मचारी को श्रम न्यायालय में क्रॉस एक्जामिन कर चुका है।


जो अधिक वेतन ले सकता है वो कम पर सहमति क्यों देगा?

साथ ही जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि जो व्यक्ति ज्यादा वेतन प्राप्त कर सकता है वो कम वेतन पर अपनी सहमति कैसे देगा? इस मामले में जस्टिस अहलूवालिया ने मिनिमम वेज एक्ट और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि कर्मचारी को उचित वेतन नहीं तो कम से कम न्यूनतम वेतन प्राप्त करने का अधिकार है। उसे किसी भी तरह से सीमित नहीं किया जा सकता है। इस मामले में उन्होंने मजीठिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला भी दिया। 20जे के प्रावधान से यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि नियोक्ता एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करा लेने से मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने से बच जाएगा।


जस्टिस अहलूवालिया ने इस मामले में गुजरात उच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि न्यूनतम वेतन से कम या वेजबोर्ड की अनुशंसाओं से कम वेतन पर काम कराना बेगार की श्रेणी में आता है। उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 23 का भी उल्लंघन है। इस अनुच्छेद के हिसाब से 20जे को संवैधानिक नहीं माना जा सकता है।


ऐसे तय होगा प्रबंधक या सुपरवाइजर

प्रबंधकीय / सुपरवाइजर के रूप में नियुक्त किए जाने के मामले पर जस्टिस अहलूवालिया ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के हवाले से कहा कि किसी भी कर्मचारी के प्रबंधक या सुपरवाइजर के रूप में नियुक्ति का प्रश्न उसके द्वारा किए जा प्रमुख कार्यों के आधार पर तय होगा। किसी को प्रबंधक या सुपरवाईजर तब माना जाएगा जबकि उसे  नियुक्ति और प्रमोशन करने के अधिकार मिले हों। चुंकि सारे दस्तावेज नियोक्ता के पास होते हैं ऐसे में सुपरवाईजर या प्रबंधकीय कार्य को सिद्ध करने का दायित्व भी उसी पर है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के अंतर्गत कि जिस व्यक्ति की अभिरक्षा में प्रमाण है यदि वो उसे प्रस्तुत नहीं करता है तो कोर्ट को यह मानने का अधिकार है यदि वे प्रमाण प्रस्तुत किए जाते तो वो उसी के खिलाफ होते।


इसके अलावा समाचार पत्र प्रबंधन ने हर यूनिट के टर्नओवर के आधार पर संस्थान की श्रेणी तय किए जाने की मांग की इसके अलावा सी फॉर्म जमा करने के पहले 15 दिन का नोटिस न दिए जाने तथा डिप्टी लेबर कमिश्नर के मजीठिया के मामले लेबर कोर्ट ट्रांसफर करने के अधिकार पर भी सवाल उठाए गए जिन्हें जस्टिस अहलूवालिया ने खारिज कर दिया।